Monday - 8 January 2024 - 3:58 PM

सपा-बसपा को बैकफुट पर लाएगी कांग्रेस

  • दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर फोकस कर रही कांग्रेस
  • सपा पर दबाव का कांग्रेसी हथियार बसपा
  • कांग्रेस-बसपा दोस्ती की आशंका सपा की मुसीबत

नवेद शिकोह @naved.shikoh

आगामी लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में किसी के सहारे के बिना कांग्रेस दो क़दम भी नहीं चल सकती। इस अहसास के बाद भी पार्टी की रणनीति उसे किसी के आगे झुकने पर मजबूर नहीं कर रही बल्कि वो सपा-बसपा को बैकफुट पर लाना चाहती है।

कांग्रेस संकेत देने लगी है कि वो बसपा को अपने गठबंधन का हिस्सा बनाना पसंद करेंगी। ये संकेत सपा को पसीने छुड़ाने वाले हैं। और ऐसे दबाव में सपा अपने गठबंधन में कांग्रेस को उसकी मनमाफिक सीटों देने का प्रस्ताव रखने पर मजबूर हो सकती है।

दूसरी तरफ बसपा सुप्रीमो मायावती यदि अपने पूर्व बयान के मुताबिक गठबंधन का साथ नहीं आती और कांग्रेस का ऑफर ठुकरा देती हैं तो उन पर भाजपा की बी टीम के आरोपों के रंग और भी गहरे हो जाएंगे। ऐसे में उन्हें सत्ता और बाजपा विरोधी ख़ासकर मुस्लिम वोट मिलने के आसार बहुत ही कम हों जाएंगे।

ये सच है कि लोकसभा चुनाव में मतदाताओं का झुकाव राष्ट्रीय पार्टियों की तरफ अधिक होता है। कांग्रेस सबसे बड़ा विपक्षी राष्ट्रीय दल है। यूपी में भले ही पार्टी बेहद कमजोर है लेकिन माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में मुस्लिम समाज पारंपरिक अंदाज में कांग्रेस पर विश्वास जता सकता है। ऐसे में सपा या बसपा इनमें से जो भी दल कांग्रेस के साथ समझौता करेगा उसे एकमुश्त अल्पसंख्यक समर्थन मिलने की संभावना है। और यदि कांग्रेस और क्षेत्रीय दल अलग-अलग लड़े तो मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो जाने की संभावना है।

बताते चलें कि बीते शनिवार को कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने बयान दिया कि कांग्रेस एक नया गठबंधन करके चौंकाने वाली है।

उनका संकेत था कि बसपा कांग्रेस गठबंधन में शामिल हो सकती है। साथ ही राष्ट्रीय लोकदल भी सपा का साथ छोड़कर कांग्रेस के साथ आ सकता है। ऐसे में अलग-थलग पड़ने और मुस्लिम समाज का बल्क जनसमर्थन खोने के खतरे के दबाव में सपा की घबराहट लाज़मी है।

उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार लोकसभा चुनाव के लिए पिछले काफी दिनों से कांग्रेस और सपा के बीच समझौते पर बातचीत में इस बात पर पेंच फंसा कि कांग्रेस यूपी में बीस से अधिक सीटें चाहती है और सपा दस से कम नहीं देना चाहती।

यही कारण है कि अब कांग्रेस की तरफ से ये इशारे हो रहे हैं कि वो अपने गठबंधन में बसपा को शामिल कर सकती है। जिससे कि यूपी में भी दोनों मिलकर भाजपा को टक्कर देने और सपा को सबक दिखाने की स्थिति में आ सकते हैं और कांग्रेस के लिए बसपा का साथ राष्ट्रीय परिवेश में लाभकारी साबित होगा।

लेकिन ये संभव कैसे होगा! जबकि बसपा सुप्रीमो मायावती बाकायदा ये एलान कर चुकी हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में वो किसी भी दल के साथ कोई भी समझौता नहीं करेंगी। हांलांकि ये भी सच है कि राजनीति और मोहब्बत में इंकार को इकरार और इकरार को इंकार भी समझा जाता है।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो यदि कांग्रेस के प्रस्ताव के बाद भी यदि बसपा अपने पिछले एलान के मुताबिक गठबंधन के साथ नहीं आईं तो बसपा का सफाया हो सकता है और यदि कांग्रेस गठबंधन के साथ बसपा आती है तो इससे यूपी ही नहीं राष्ट्रीय परिवेश में बसपा, कांग्रेस और गठबंधन के सभी विपक्षी दलों को फायदा हो सकता है।

ऐसे में मिलजुलकर मजबूती से चुनाव लड़ने पर दलित वोट बसपा में घर वापसी कर सकता है और इसका भाजपा को कुछ नुकसान हो सकता है।

 

कांग्रेस के साथ बसपा का ताल-मेल राष्ट्रीय स्तर पर दलित-मुस्लिम तालमेल की राजनीति का क़दम भी बन सकता है। ये प्रयोग जरा भी सफल हुआ तो ये भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण और यूपी में सपा के लिए घातक हो सकता है‌।

जानकारों का मानना है कि मायावती का विश्वास हासिल कर दलित-मुस्लिम तालमेल वाली राजनीति में कांग्रेस सफल हो गई तो आज जो हालत बसपा की है वैसी ही हालत कल सपा की हो सकती है।

ऐसे खतरे भांप कर भी सपा इसलिए भी कांग्रेस के मनमाफिक सीटें देना नहीं चाहती क्योंकि अखिलेश यादव जानते हैं कि यदि गठबंधन सफल भी साबित हुआ तो भी सपा को भविष्य में असफलता का मुंह देखना पड़ेगा। कांग्रेस स्पेस पाकर सपा का आधे से अधिक जनाधार पर क़ाबिज़ हो जाएगी। और फिर आगामी विधानसभा चुनाव (2027) में समान विचार वाली कांग्रेस ही सपा के लिए मुश्किल बन जाएगी।

लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए लगभग एक वर्ष शेष है। यूपी के सब से बड़े विपक्षी नेता अखिलेश यादव रामचरितमानस के विरोध और सॉफ्ट हिन्दुत्व के बीच कंफ्यूज नजर आ रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस बसपा के साथ गठबंधन करने के संकेत देकर सपा पर दबाव बना रही है।

अखिलेश यादव के सामने एक तरफ खाई है और एक तरफ कुंआ। वो कांग्रेस के साथ समझौता करें तो भविष्य में यूपी में कांग्रेस हावी हो जाएगी। समझौता नहीं करें तो कांग्रेस-बसपा मिलकल दलित-मुस्लिम कार्ड खेलने में सफल हो गए तो वर्तमान-भविषय सब सत्यानाश हो जाएगा।

(लेखक पत्रकार हैं) इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि  JubileePost या Jubilee मीडिया ग्रुप उनसे सहमत हो…इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है…
 

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