जुबिली न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। कोरोना के दौर ने अमीर, गरीब, खास और आम सभी को इससे त्रस्त कर दिया है। हालात अब लॉकडाउन से ज्यादा ख़राब हो रहे है। भले ही सरकार ने सारी आर्थिक गतिविधियों को शुरू कर दिया हो, लेकिन फिर परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही है।
आज ऐसे ही मजबूर बाप, पति या बेटे की दास्ता आपको बताने जा रहे है, जो लॉकडाउन के बाद इतने बेबस हुए कि उन्हें परिवार का पेट पालने के लिए घर से बाहर निकलना पड़ा। उत्तर प्रदेश के जौनपुर में चाट का एक पुराना कारोबारी भूखमरी से बचने के लिये झोले में चाट की दुकान लेकर निकल पड़ा।
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काेरोना बीमारी भी क्या-क्या करिश्मा दिखा रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने मॉल, शापिंग कम्पलेक्स तथा दुकानों को खोलने की बनुमति दे दी है लेकिन सड़क किनारे खान- पान सामान को बेचने पर पाबंदी लगा रखी है।
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झोले में चाट इसका जीता जागता उदाहरण है। शहर के सब्जी मंडी मोहल्ले में रहने वाले जितेंद्र कुमार केसरवानी सब्जी मंडी के एक कॉर्नर पर पिछले 20 साल से चाट का ठेला लगाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। उनसे पहले करीब 30 साल तक इनके पिता श्याम मोहन केसरवानी चाट का ठेला लगाया करते थे। उनकी मृत्यु के बाद जितेन्द्र ने व्यवसाय को संभाला।
लॉकडाउन में जब सारा शहर बंद हो गया तो ऐसे में उनका परिवार भुखमरी की स्थिति में आ गया कोई रास्ता न सूझता देख उसने एक झोले में चाट का कुछ सामान फुलकी वगैरह रखा और पैदल ही लॉक डाउन खुलने के बाद शहर में घूम घूम कर डोर-टू-डोर चाट बेचना शुरू किया इनके परिवार में इनकी पत्नी एवं इनकी बुजुर्ग माताजी और एक छोटा बेटा रहता है।
जितेंद्र के अनुसार दिनभर झोले में घूम- घूम चाट बेचता हूं और उससे डेढ़ सौ से 200 रुपये की आमदनी रोज हो जाया करती है, जिससे परिवार चलता है। शासन से सहयोग तो मिल रहा है मगर राशन के अलावा इन्हें कहीं से कोई सहयोग नहीं मिला। एक हजार रुपये की सरकारी सहायता इन्हें अभी तक मिली है। उसके बाद कुछ नहीं मिला। जितेन्द्र का कहना है क्या इतने में परिवार चल सकता है?
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