जुबिली स्पेशल डेस्क
पटना।बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है। एनडीए हो या महागठबंधन। दोनों गठबंधन अपने-अपने तरीके से जनता को लुभाने में जुटे हैं। लेकिन एक बात दोनों में समान है नज़र “आधी आबादी” यानी महिला मतदाताओं पर टिकी है।
नीतीश कुमार का ‘महिला कार्ड’ फिर चला
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करीब दो दशक से बिहार की राजनीति के शीर्ष पर बने हुए हैं। उनके लंबे राजनीतिक करियर में महिला मतदाताओं ने निर्णायक भूमिका निभाई है। शराबबंदी, साइकिल योजना और जीविका दीदियों के सशक्तिकरण जैसी योजनाओं ने उन्हें इस वर्ग का मजबूत समर्थन दिलाया है।
अब 2025 के चुनाव में भी नीतीश ने “महिलाओं और मनी” यानी M² (Double M) पर बड़ा दांव खेला है। राज्य सरकार ने घोषणा की है कि मुख्यमंत्री रोजगार योजना के तहत हर परिवार की एक महिला सदस्य को ₹10,000 की आर्थिक सहायता दी जाएगी। यह राशि लौटानी नहीं होगी। छह महीने के बाद सरकार लाभार्थियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन कर ₹2 लाख की अतिरिक्त सहायता देने पर भी विचार कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम एनडीए का गेमचेंजर साबित हो सकता है। आंकड़ों के अनुसार बिहार में लगभग 3.41 करोड़ महिला मतदाता हैं, जिनमें से 1.36 करोड़ महिलाएं जीविका दीदी के रूप में सीधे राज्य सरकार की योजनाओं से जुड़ी हुई हैं। माना जा रहा है कि करीब 1.21 करोड़ महिलाओं के खातों में ₹10,000 की डायरेक्ट ट्रांसफर एनडीए के वोटबैंक को मजबूत कर सकता है।
तेजस्वी यादव का पलटवार, ‘जीविका दीदियों को मिलेगा सरकारी दर्जा’
नीतीश कुमार के इस “महिला-मनी” मास्टरस्ट्रोक के जवाब में तेजस्वी यादव ने भी बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने घोषणा की है कि महागठबंधन की सरकार बनने पर जीविका दीदियों को ₹30,000 मासिक वेतन दिया जाएगा और उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलेगा।
तेजस्वी ने कहा कि जीविका दीदियों का ₹5 लाख का बीमा कराया जाएगा, हर महीने ₹2,000 भत्ता मिलेगा और सभी ऋणों का ब्याज माफ किया जाएगा। साथ ही उन्होंने “माई योजना” और “बेटी योजना” शुरू करने की भी बात कही है जो जन्म से लेकर रोजगार तक महिलाओं को आर्थिक सहयोग देने का वादा करती हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार ने जीविका दीदियों का शोषण किया है और कहा, “हम उनकी वास्तविक स्थिति समझकर ठोस कदम उठाने जा रहे हैं।”
कौन हैं ये जीविका दीदियां?
“जीविका योजना” बिहार सरकार की एक प्रमुख ग्रामीण आजीविका परियोजना है, जिसकी शुरुआत 2006 में विश्व बैंक की मदद से बिहार ग्रामीण आजीविका मिशन (BRLM) के तहत की गई थी।
इस योजना का उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है। आज राज्य में 1.36 करोड़ महिलाएं इस मिशन से जुड़ी हैं, जो स्व-सहायता समूहों के माध्यम से वित्तीय और सामाजिक सशक्तिकरण का प्रतीक बन चुकी हैं।
महिला वोट: चुनावों की दिशा तय करने वाला फैक्टर
बीते कुछ वर्षों के चुनाव परिणाम इस बात के गवाह हैं कि महिला मतदाताओं का समर्थन किसी भी सरकार की वापसी का रास्ता तय करता है।
मध्य प्रदेश की लाडली बहना योजना, झारखंड की माईया सम्मान योजना और महाराष्ट्र की लाडकी बहन योजना ने इन राज्यों में सत्ताधारी दलों की वापसी सुनिश्चित की थी।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार में भी यह ट्रेंड दोहराया जा सकता है।हालांकि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में यह समीकरण काम नहीं कर पाया, लेकिन बिहार की सामाजिक-राजनीतिक बुनावट अलग है — यहां महिला मतदाता न सिर्फ संख्या में भारी हैं बल्कि निर्णायक भी हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि बिहार की महिलाएं किस पर भरोसा करेंगी। उस सरकार पर जो अभी मदद दे रही है या उस गठबंधन पर जो भविष्य में देने का वादा कर रहा है? आने वाले महीनों में तय होगा कि “आधी आबादी” किसके ताज को मुकम्मल करती है और किसे बेनकाब करती है।