Friday - 12 January 2024 - 10:50 AM

सावधान, कहीं आप “सेल्फाइटिस” के शिकार तो नहीं..!

राजीव ओझा

सावधान! अगर बार बार सेल्फी लेने का मन करता है तो सम्भाल जाएं। हो सकता है आप गंभीर मनोरोग के शिकार हों। वैसे तो अमेरिकन साईकियाट्रिक असोसिएशन कई वर्षों पहले ही इसकी आधिकारिक घोषणा कर चुका है कि अकेले में बार बार सेल्फी लेना और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करना गंभीर मनोरोग “सेल्फाइटिस” है। मनोचिकित्सा की भाषा में इसे ओब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर यानी ओसीडी कहते हैं। यानी एक ही चीज को बार बार करना। चिंता की बात है कि सेल्फी लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही। इसके साथ ही हमारे ऊपर दोहरा खतरा बढ़ता जा रहा। एक मनोरोगी होने का, दूसरा जान जाने का।

सेल्फी के चक्कर में सबसे ज्यादा मौत भारत में

गंभीर चिंता की बात है कि भारत, सेल्फी से होने वाले हादसों में दुनिया में पहले नंबर पर है। इंडिया जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसीन एंड प्राइमरी केयर की रिपोर्ट के अनुसार 2011 से 2017 तक भारत 259 लोग सेल्फी लेने की चक्कर में अपनी जान गवां बैठे हैं। वर्ष 2018 में भी मौतों का आंकड़ा 105 तक पहुंच गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है।

सेल्फी के कारण मौत के आंकड़े में भारत सबसे आगे है। अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि सेल्फी लेने के दौरान सबसे ज्यादा मौतें झील, नदी या समुद्र में डूबने के दौरान हुईं। उसके बाद चलती ट्रेन के सामने या हिंसक जानवरों के साथ सेल्फी लेने के दौरान हुई मौतों का स्थान है। शोधकर्ताओं का कहना है कि देश में 30 साल से कम उम्र के युवक-युवतियों की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा होना भी इन मौतों की एक बड़ी वजह है। मरने वालों में से 50 फीसदी यानी आधे लोग 20 से 29 आयुवर्ग के थे।

अध्ययन में पर्यटन केंद्रों, खासकर पहाड़ की चोटियों, ऊंची इमारतों की छतों और झील, नदी व समुद्र के किनारों पर नो सेल्फी जोन बनाने का सुझाव दिया गया था। लेकिन सेल्फी के शौकीन लोग नए-नए खतरनाक ठिकाने तलाश ही लेते हैं। अध्ययन के मुताबिक, सेल्फी लेने के दौरान हादसे का शिकार होकर जान गंवाने वालों में से 72.5 फीसदी पुरुष थे।

स्मार्टफोन के साथ आया “सेल्फाइटिस” का रोग

ध्यान देने की बात है कि स्मार्टफोन आने के बाद ही सेल्फी का चलन बढ़ा। अब तो सेल्फी का जुनून मनोरोग में तब्दील हो गया है। स्मार्टफोन बनाने वाली कम्पनियां इस बात का ख़ास ध्यान रखती हैं कि सेल्फी वाला फ्रंट कैमरा उच्च गुणवत्ता का हो।

अमेरिकन साईकियाट्रिक असोसिएशन के अनुसार वो लोग अपनी सेल्फी सोशल मीडिया पर ज्यादा डालते जिनमें स्वतः ऊर्जा की कमी होती और अकेलेपन की खाई को पाटने के लिए सोशल प्लेटफ़ोर्म पर लगातार सेल्फी झोंकते रहते हैं। जो लोग दिन में कम से कम तीन बार सेल्फी लेते लेकिन सोशल मीडिया पर नहीं डालते, ऐसे लोग भी सावधान हो जाएँ क्योंकि वो लोग “सेल्फाइटिस” बीमारी के बॉर्डर लाइन पर हैं।

लेकिन लोग हैं कि मानते नहीं, सब सुधबुध खोकर आत्ममुग्‍ध हैं। पहले युवाओं को आईने के सामने ‘स्टाइल मारने’ में बड़ा मजा आता था अलग अलग एंगल से। लेकिन वो अदा और उसका मजा अब सेल्फी में आने लगा है- “एक बार देखो, हजार बार देखो कि देखने की चीज हूं मैं” की स्टाइल में। आपने ध्यान दिया होगा कि वोट डालने के बाद लोग ज्यादा सेल्फियाना हो जाते हैं। वोट दिया और सेल्फी लिया।

अपनी छवि पर इतना मोहित कि हार्टफेल

सोचिए जब कैमरा या स्मार्टफोन नहीं थे तब अकेलापन दूर करने के लिए लोगों का काम कैसे चलता होगा। समय के साथ इंसान ने प्रगति की है लेकिन हमारी मूल सोच (बेसिक इंस्टिंक्ट) में बहुत बदलाव नहीं आया है। जब कैमरे नहीं थे तब लोग, चित्रकार के सामने सज संवर कर बैठ जाते थे और वो कैनवास पर उनकी तस्वीर उतारता था (जैसे टाइटेनिक में हीरो के सामने हीरोइन ने बैठ कर स्केच बनाया था)।

लोग तेजी से ‘सेल्फाइटिस’ के शिकार हो रहे हैं और प्राण न्योछावर कर रहे हैं। जैसा कि प्राचीन ग्रीस में नारसिसस के साथ हुआ था। कहा जाता है कि नारसिसस (नरगिस) नाम का खूबसूरत युवक पानी में अपना प्रतिबिंब देख, उस पर इतना मोहित हुआ कि उसका हार्ट फेल हो गया था। नारसिसस तो खूबसूरत युवक था लेकिन लगता है अब आम आदमी भी ”सेल्फाइटिस” बुखार की चपेट में आने लगा।

क्योंकि यह भी एक मनोवैज्ञानिक सच है की सब को अपना प्रतिबिम्ब अच्छा लगता है। लेकिन कब यह आत्ममुग्धता मनोविकार का रूप ले लेती है हमें पता ही नहीं चलता। आज जरूरत जागरूकता की है। बेहतर होता स्मार्टफोन में स्मार्ट सेल्फी कैमरा बनाने वाली मोबाइल कम्पनियां फोन के साथ में चेतावनी सन्देश भी दें कि अत्यधिक सेल्फी से ‘सेल्फाइटिस’ का भी खतरा है।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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