- बिहार में राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ का आगाज़, तेजस्वी यादव देंगे साथ
जुबिली स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली. बिहार की राजनीति में आज से एक नई सियासी जंग की शुरुआत हो रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के साथ मैदान में उतर चुके हैं। यह यात्रा लगभग 16 दिनों तक चलेगी और 1 सितंबर को पटना में होने वाली महागठबंधन की महारैली के साथ समाप्त होगी। खास बात यह है कि इस दौरान राहुल गांधी के साथ राजद नेता तेजस्वी यादव भी मौजूद रहेंगे।
यह यात्रा बिहार के 20 से अधिक जिलों से गुज़रेगी और करीब 1300 किलोमीटर का सफर तय करेगी। विधानसभा चुनाव से लगभग दो महीने पहले शुरू हुई यह यात्रा, वोटर लिस्ट में कथित धांधली और वोट चोरी जैसे मुद्दों को हवा देने वाली मानी जा रही है।
दलित वोट बैंक पर कांग्रेस की निगाह
राहुल गांधी की इस यात्रा के पीछे कांग्रेस की सबसे बड़ी रणनीति बिहार के दलित और पिछड़े वर्ग को साधने की है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि “दलितों, वंचितों और अल्पसंख्यकों से उनके वोट का अधिकार छीना जा रहा है।” इसी नैरेटिव के साथ पार्टी दलित-महादलित और अति पिछड़े तबकों में सेंध लगाने की कोशिश करेगी, जो अब तक NDA का मज़बूत वोट बैंक माना जाता रहा है।
यात्रा की शुरुआत सासाराम से हो रही है, जिसे दलित राजनीति का गढ़ माना जाता है। बाबू जगजीवन राम और मीरा कुमार जैसे बड़े नेताओं की विरासत से जुड़ा यह इलाका कांग्रेस के लिए बेहद अहम है। इसके बाद यात्रा गया, नालंदा, भागलपुर, पूर्णिया, कटिहार, दरभंगा, सीतामढ़ी, मधुबनी, चंपारण, सीवान और छपरा जैसे ज़िलों से गुज़रेगी।
यूपी मॉडल को बिहार में आज़माने की कोशिश
लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी ने बड़ा असर दिखाया था। दोनों ने संविधान बदलने के मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाया, जिसका नतीजा रहा कि कांग्रेस और सपा ने मिलकर 43 सीटें जीतीं।
अब उसी प्रयोग को बिहार में दोहराने की तैयारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार राहुल के साथ अखिलेश नहीं, बल्कि तेजस्वी यादव रहेंगे।
कांग्रेस की खोई जमीन तलाशने की जद्दोजहद
विशेषज्ञों का मानना है कि यह यात्रा दरअसल कांग्रेस के लिए बिहार में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने का प्रयास है। 90 के दशक के बाद से मुस्लिम और दलित वोट कांग्रेस से खिसककर आरजेडी और जेडीयू के पाले में चले गए थे। यही कारण है कि पिछले कई चुनावों में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट बेहद निराशाजनक रहा है।
2020 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को बहुत कम सीटें मिलीं, जबकि भाकपा माले जैसे छोटे दल ने शानदार प्रदर्शन किया था।
बड़ा सवाल: क्या बिहार में भी होगा ‘दो लड़कों’ का करिश्मा?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या बिहार में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यह साझेदारी वैसा ही असर दिखा पाएगी, जैसा यूपी में राहुल-अखिलेश की जोड़ी ने दिखाया था। महागठबंधन की कमान इस बार राजद के हाथ में है, जबकि कांग्रेस एक बार फिर खुद को मुख्य मुकाबले में साबित करने की कोशिश कर रही है।
आने वाले हफ्तों में यह साफ हो जाएगा कि ‘वोटर अधिकार यात्रा’ बिहार की राजनीति में नई हवा लाएगी या फिर यह महज़ एक सियासी दांव रह जाएगी।