उत्कर्ष सिन्हा
अपने जिस चरखा दांव के जरिए राजनीति के दंगल में मुलायम सिंह यादव ने राज किया, अब उसी चरखा दांव का इस्तेमाल उनके उत्तराधिकारी और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव कर रहे हैं।
यूपी में होने वाले राज्यसभा की 10 सीटों की जंग में जिस तरीके से अखिलेश यादव ने बसपा-भाजपा की गोलबंदी तोड़ी है, वो ये साबित करने के लिए काफी है कि अखिलेश यादव सियासी दंगल के बड़े पहलवान हो चुके है।
राज्य सभा की 9 सीटों के लिए पर्याप्त संख्या बल होने के बाद भी भाजपा ने 8 उमीदवार ही उतारे और उसके फौरन बाद जब महज 15 विधायकों के बावजूद बसपा ने अपना उम्मीदवार उतार दिया था, तभी से सियासी हलकों में बसपा- भाजपा के बीच किसी अघोषित समझौता होने की चर्चा शुरू हो गई थी।

यह भी पढ़े: राज्यसभा चुनाव: मायावती को लगा झटका, वोटिंग से पहले बसपा में बगावत
मंगलवार को दोपहर 3 बजे नामांकन दाखिल करने का वक्त खत्म होने वाला था और ऐसा लगने लगा था कि यह चुनाव निर्विरोध हो जाएगा, लेकिन समय समाप्त होने के कुछ ही देर पहले निर्दलीय प्रत्याशी प्रकाश बजाज ने अपना पर्चा दाखिल कर दिया। प्रकाश के प्रस्तावकों में दस के दस नाम सपा विधायकों के थे।
प्रकाश बजाज के नामांकन के साथ ही 10 सीटों के लिए 11 उम्मीदवार मैदान में आ गए और इसके बाद वोटों का गुणा गणित लगाया जाने लगा।

लेकिन समाजवादी खेमे के भीतर कुछ और ही हलचल चल रही थी। बसपा प्रत्याशी राम जी गौतम के प्रस्तावको में शामिल 5 बसपा विधायक की मंगलवार की देर रात गोपनीय मुलाकात सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से हुई । बुधवार की सुबह ये सारे विधायक विधानसभा पहुंचे और उन्होंने बसपा प्रत्याशी से अपना समर्थन वापस लेने का पत्र निर्वाचन अधिकारी को दे दिया।
समर्थन वापसी के फौरन बाद ये विधायक सीधे समाजवादी पार्टी कार्यालय पहुँच गए जहां उनके साथ अखिलेश यादव की मुलाकात हुई। अब इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ये सभी विधायक अब समाजवादी पार्टी में शामिल होंगे।
यह भी पढ़े: क्या इशारा कर रही है बिहार मे तेजस्वी की रैलियां !

ये पूरी कार्यवाही इस कदर गोपनीयता के साथ हुई कि बसपा और भाजपा के रणनीतिकारों को इसकी भनक भी नहीं लग सकी। अखिलेश यादव के इस दांव ने यूपी की सियासी फिजाँ में कई संदेश छोड़े हैं तो दूसरी तरफ बसपा और भाजपा को बड़ा झटका लगा है।
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती पर पहले से आरोप लगने लगे हैं कि वे भाजपा के खिलाफ आक्रामक नहीं हो रही। यूपी कांग्रेस तो उनपर भाजपा की बी टीम की तरह खेलने का आरोप अक्सर ही लगती रही है।

यह भी पढ़े: किस मामले में होगी सीएम त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ सीबीआई जांच ?
राज्यसभा प्रत्याशी की घोषणा के वक्त एक बार फिर यह चर्चा होने लगी थी कि बसपा को भाजपा की शह है और इसी वजह से उसने इतने कम संख्या बल के बावजूद दूसरे विपक्षी दलों से बात किये बिना प्रत्याशी उतार दिया।
राज्यसभा चुनावों में मिली इस असफलता के बाद मायावती की मुश्किल बढ़ेंगी तो वही समाजवादी पार्टी और भी मजबूत होती दिखाई देगी।यूपी के विधानसभा चुनावों में अब मजह 15 महीनों का ही वक्त बचा है और समाजवादी पार्टी में दूसरे दलों के असंतुष्टों की आमाद तेज हो गई है। कयास ये हैं कि जैसे-जैसे चुनावों और नजदीक आएगा वैसे-वैसे बसपा और भाजपा से कई असन्तुष्ट विधायक सपा में शामिल होंगे।
Jubilee Post | जुबिली पोस्ट News & Information Portal
