अशोक कुमार
आज की दुनिया में शिक्षा का महत्व बहुत बढ़ गया है, और शिक्षण संस्थानों का बुनियादी ढाँचा इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
किसी भी शिक्षण संस्थान की स्थापना से पहले यह सुनिश्चित करना कि उसके पास आवश्यक बुनियादी ढाँचा है, शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने और छात्रों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। भारत में नए शिक्षण संस्थानों की स्थापना एक गंभीर मुद्दा है।
अक्सर देखा जाता है कि नए स्कूल, कॉलेज, और विश्वविद्यालय बिना पर्याप्त बुनियादी ढांचे के ही खोल दिए जाते हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए, यह अत्यंत आवश्यक है कि नए संस्थान तभी स्थापित किए जाएं जब उनके पास सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हों।
एक शिक्षण संस्थान केवल इमारत नहीं है, बल्कि एक ऐसा वातावरण है जहाँ ज्ञान का आदान-प्रदान होता है। एक अच्छी तरह से बनी हुई इमारत, हवादार क्लासरूम, और पर्याप्त रोशनी छात्रों को सीखने के लिए एक बेहतर माहौल प्रदान करते हैं। यह छात्रों की एकाग्रता और शिक्षकों के प्रदर्शन को भी बढ़ाता है।
आज के समय में सिर्फ सैद्धांतिक ज्ञान पर्याप्त नहीं है। विज्ञान, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, और अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए अत्याधुनिक प्रयोगशालाएं और कार्यशालाएं आवश्यक हैं। बिना इनके, छात्र केवल किताबी ज्ञान तक सीमित रह जाते हैं और उन्हें व्यावहारिक अनुभव नहीं मिल पाता।
वर्तमान स्थिति और समस्याएं
वर्तमान में, भारत में शिक्षा क्षेत्र में मात्रा (Quantity) पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, जबकि गुणवत्ता (Quality) को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है।
अधूरी इमारतें: कई संस्थानों के पास पूरी तरह से बने हुए भवन नहीं होते। क्लासरूम, लाइब्रेरी, और प्रशासनिक कार्यालय आधे-अधूरे होते हैं।
शिक्षकों की कमी: सबसे बड़ी चुनौती योग्य और पर्याप्त शिक्षकों की कमी है। कई संस्थान सिर्फ कागजों पर ही चलते हैं, और वहां पढ़ाने वाले शिक्षक या तो अनुपलब्ध होते हैं या फिर उन्हें सही वेतन नहीं मिलता, जिससे उनका मनोबल कम होता है।
प्रयोगशाला और पुस्तकालय का अभाव: विज्ञान और तकनीकी शिक्षा के लिए प्रयोगशालाएं और सभी विषयों के लिए पुस्तकालय अत्यंत आवश्यक हैं। बिना पर्याप्त उपकरणों और किताबों के, छात्रों को केवल सैद्धांतिक ज्ञान मिलता है, जो उनके भविष्य के लिए पर्याप्त नहीं होता।
कर्मचारियों की कमी: शिक्षण संस्थानों को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रशासनिक और सहायक कर्मचारियों की भी आवश्यकता होती है, जिनका अक्सर अभाव होता है।
यह स्थिति न केवल छात्रों के भविष्य को खतरे में डालती है, बल्कि पूरे शिक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता को भी कम करती है।
वर्तमान में प्रमुख समस्याएं
भारत में कई नए शिक्षण संस्थान बिना पर्याप्त तैयारी के खोले जाते हैं। इसके कुछ प्रमुख कारण हैं:
निजीकरण और मुनाफाखोरी: कई बार, निजी संस्थान शिक्षा को एक व्यवसाय के रूप में देखते हैं, और जल्द से जल्द मुनाफा कमाना चाहते हैं। इस प्रक्रिया में, वे लागत कम करने के लिए बुनियादी ढाँचे पर खर्च नहीं करते।
सरकार की ढिलाई: नियामक निकाय (जैसे UGC और AICTE) द्वारा बनाए गए नियमों का सख्ती से पालन नहीं कराया जाता। निरीक्षण अक्सर कागजी कार्यवाही तक ही सीमित रह जाते हैं।
राजनीतिक दबाव: कुछ मामलों में, राजनीतिक प्रभाव के कारण भी संस्थानों को बिना पर्याप्त सुविधाओं के ही मान्यता मिल जाती है।
समाधान: सम्पूर्ण बुनियादी ढांचे के बाद ही स्थापना
समस्या का समाधान करने के लिए, सरकार और नियामक निकायों को कुछ कड़े कदम उठाने होंगे:
सख्त नियम और उनका पालन: नए शिक्षण संस्थानों को मान्यता देने से पहले सभी आवश्यक बुनियादी ढाँचों का भौतिक सत्यापन (physical verification) अनिवार्य किया जाना चाहिए।
शिक्षकों की भर्ती: यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि किसी भी संस्थान को मान्यता देने से पहले, वहाँ पर्याप्त संख्या में योग्य शिक्षकों की नियुक्ति हो चुकी हो। लोगों को भी इस विषय पर जागरूक होना चाहिए। छात्रों और अभिभावकों को किसी भी संस्थान में दाखिला लेने से पहले उसके बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं की जांच करनी चाहिए।
सरकार और नियामक निकाय (Regulatory Bodies) नए शिक्षण संस्थानों को तभी लाइसेंस या मान्यता दें, जब वे निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करें:
भवन और क्लासरूम: संस्थान के पास सभी आवश्यक क्लासरूम, प्रयोगशालाएं, पुस्तकालय, और प्रशासनिक कार्यालय पूरी तरह से तैयार हों।
योग्य शिक्षक: नियुक्ति प्रक्रिया पूरी हो चुकी हो और सभी शैक्षणिक पदों पर योग्य और अनुभवी शिक्षक नियुक्त हों। शिक्षकों की संख्या छात्रों के अनुपात (Student-Teacher Ratio) के अनुसार होनी चाहिए।
बिना उचित बुनियादी ढाँचे के योग्य शिक्षक उस संस्थान से जुड़ने में हिचकिचाते हैं। एक अच्छी तरह से सुसज्जित संस्थान, जिसमें शिक्षकों के लिए स्टाफ रूम, लाइब्रेरी और अन्य सुविधाएं हों, उन्हें बेहतर काम करने के लिए प्रेरित करती हैं।
पूर्ण कर्मचारी: प्रशासनिक और सहायक कर्मचारियों की भर्ती भी पूरी हो चुकी हो, ताकि संस्थान का दैनिक कामकाज सुचारू रूप से चल सके।
आधुनिक प्रयोगशालाएं: विज्ञान, इंजीनियरिंग, और अन्य विषयों के लिए अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित प्रयोगशालाएं हों।
पुस्तकालय और संसाधन: एक विशाल और सुव्यवस्थित पुस्तकालय हो जिसमें पर्याप्त किताबें, जर्नल्स और डिजिटल संसाधन उपलब्ध हों।
छात्रों के समग्र विकास के लिए: बुनियादी ढाँचे में सिर्फ क्लासरूम ही नहीं, बल्कि खेल के मैदान, कैफेटेरिया, सभागार और अन्य गतिविधियां शामिल होती हैं। ये सभी छात्रों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं।
संक्षेप में, “शैक्षणिक संस्थान बुनियादी ढाँचे स्थापित करने के बाद ही खोले जाएँ” का सिद्धांत केवल एक सुझाव नहीं है, बल्कि एक आवश्यकता है। यह शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने, छात्रों के भविष्य को सुरक्षित करने, और भारत को एक मजबूत ज्ञान अर्थव्यवस्था बनाने के लिए महत्वपूर्ण है।
(लेखक पूर्व कुलपति, कानपुर एवं गोरखपुर विश्वविद्यालय; पूर्व विभागाध्यक्ष, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर)