Wednesday - 13 August 2025 - 5:32 PM

यूक्रेन का 19% क्षेत्र रूस के कब्जे में, जेलेंस्की को क्या मिलेगा समझौते में?

जुबिली स्पेशल डेस्क

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच अलास्का में होने वाली संभावित बैठक से ज़्यादा उम्मीदें पूरी होती नज़र नहीं आ रही हैं। वजह साफ है—शांति की संभावना तभी है जब पुतिन की शर्तें मानी जाएं। उनकी मुख्य शर्त है कि यूक्रेन के कब्जाए गए इलाकों को आधिकारिक तौर पर रूस का हिस्सा माना जाए।

सूत्रों के मुताबिक, ट्रंप इस प्रस्ताव पर लगभग सहमत हैं और सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि रूस और यूक्रेन को अपने-अपने क्षेत्रों में समझौता करना चाहिए। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यूक्रेन के पास रूस के किसी भी हिस्से पर कब्जा नहीं है, जबकि रूस पहले ही यूक्रेन का एक बड़ा भूभाग अपने नियंत्रण में ले चुका है।

रूस के कब्जे की मौजूदा स्थिति

रूस-यूक्रेन युद्ध के ताज़ा मानचित्र के अनुसार, रूस अब तक यूक्रेन का करीब 1,14,500 वर्ग किलोमीटर इलाका अपने कब्जे में ले चुका है, जो यूक्रेन के कुल क्षेत्रफल का लगभग 19% है। इसमें क्रीमिया, डोनेट्स्क, लुहांस्क, जापोरिज्जिया और खेरसॉन जैसे क्षेत्र शामिल हैं।

  • क्रीमिया: 2014 में रूस ने कब्जा किया। 27,000 वर्ग किमी का यह इलाका रणनीतिक रूप से बेहद अहम है।

  • डोनबास (लुहांस्क व डोनेट्स्क): करीब 88% क्षेत्र रूस के नियंत्रण में, यूक्रेन के पास केवल 6,000 वर्ग किमी बचा।

  • जापोरिज्जिया व खेरसॉन: लगभग 74% इलाका रूस के पास, जो करीब 41,176 वर्ग किमी है।

इसके अलावा, खारकीव, सुमी, माइकोलेव और द्रिपोपेत्रोव्स्क जैसे क्षेत्रों में भी रूस की मौजूदगी है, हालांकि इनमें से कई इलाकों पर उसका सीमित नियंत्रण है।

पुतिन की शर्तें और रणनीति

पुतिन का कहना है कि अगर यूक्रेन विवादित क्षेत्रों से पीछे हट जाए और नाटो में शामिल होने का विचार छोड़ दे, तो वह शांति समझौते के लिए तैयार हैं। साथ ही, रूस ने सुमी में “बफर जोन” बनाने की घोषणा की है, ताकि अपने कुर्स्क क्षेत्र को यूक्रेनी हमलों से बचाया जा सके।

हालांकि, संयुक्त राष्ट्र महासभा पहले ही 2014 में क्रीमिया के रूस में विलय को अवैध घोषित कर चुकी है और अधिकांश देश इन क्षेत्रों को यूक्रेन का हिस्सा मानते हैं।

अलास्का बैठक से पहले ही स्पष्ट है कि अगर “यथास्थिति” पर समझौता होता है, तो यूक्रेन को अपने कब्जाए गए हिस्से को खोना पड़ेगा और बदले में उसे कोई क्षेत्र नहीं मिलेगा। इस स्थिति में शांति तो संभव है, लेकिन उसकी कीमत यूक्रेन के लिए बहुत भारी होगी।

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