अशोक कुमार
राष्ट्रीय शिक्षा नीति केवल एक दस्तावेज़ नहीं, एक शैक्षिक क्रांति है ! राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सफल कार्यान्वयन के लिए गहरी समझ, मानसिकता में बदलाव और प्रभावी क्षमता निर्माण की आवश्यकता है!
कई राज्यों मे राष्ट्रीय शिक्षा नीति को “केवल यांत्रिक रूप से” अपनाया गया है। यह एक कटु सत्य है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति सिर्फ नियमों और विनियमों का एक संग्रह नहीं है; यह भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक पाराडाइम शिफ्ट लाने का इरादा रखता है। इसका लक्ष्य छात्रों को रटने की प्रवृत्ति से बाहर निकालकर आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान, रचनात्मकता और बहु-विषयक दृष्टिकोण विकसित करने में सक्षम बनाना है। जब हम इसके पीछे की दर्शन और भावना को समझे बिना इसे लागू करते हैं, तो हम इसके मूल उद्देश्य से भटक जाते हैं।
हमने NEP 2020 को प्रस्तावित परिवर्तनों के पीछे के कारणों को समझे बिना केवल बुद्धि रहित रूप से अपनाया है। उदाहरण के लिए, अधिकांश प्रशासक जिनमें कुलपति भी शामिल हैं, सीबीसीएस (CBCS) प्रणाली के पीछे की भावना को नहीं समझते हैं। किसी विशेष पाठ्यक्रम को विशेष क्रेडिट क्यों आवंटित किया जाता है, अंक-आधारित मूल्यांकन से ग्रेड-आधारित मूल्यांकन में बदलने के क्या निहितार्थ हैं, आदि अधिकांश समय विश्वविद्यालय प्रशासकों और संकाय सदस्यों की समझ से परे होते हैं। चार साल का ग्रेजुएशन क्यों महत्वपूर्ण है, एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स क्यों महत्वपूर्ण है और कई अन्य बातें संस्थानों को चलाने वाले लोगों की समझ से बाहर रहती हैं। समस्या यह है कि हम नई प्रणाली को अपने पुराने तरीकों में फिट करना चाहते हैं जिससे परेशानी होती है।
आवश्यकता यह है कि पुरानी प्रणाली से पूरी तरह से बाहर निकलकर नई प्रणाली की भावना को समझा जाए। NEP 2020 को गलत समझा गया, विभिन्न राज्यों ने एक सामान्य पाठ्यक्रम का कार्यान्वयन का सुझाव दिया ! वास्तव में यह NEP जो कहता है, उसके बिल्कुल विपरीत है ! कुछ संस्थानों ने क्रेडिट को अंकों में बदलने के लिए सूत्र गढ़ना शुरू कर दिया, जो स्वयं प्रणाली के प्रति उनकी अज्ञानता को दर्शाता है। इसलिए, NEP को पूरी तरह से अपनाने से पहले हमें उसके पीछे की भावना को समझने की आवश्यकता है। अन्यथा यह एक आपदा होगी।
CBCS (Choice Based Credit System) की भावना: CBCS का उद्देश्य छात्रों को अपने सीखने के पथ में स्वायत्तता और लचीलापन देना है। यह छात्रों को अपनी रुचियों और करियर लक्ष्यों के अनुसार पाठ्यक्रम चुनने की अनुमति देता है, जिससे वे अधिक व्यस्त और प्रेरित महसूस करते हैं। यदि प्रशासक और संकाय क्रेडिट आवंटन के पीछे के तर्क या विभिन्न विषयों को जोड़ने के महत्व को नहीं समझते हैं, तो CBCS केवल एक जटिल प्रशासनिक बोझ बन जाता है।
अंक से ग्रेड-आधारित मूल्यांकन में बदलाव: अंक-आधारित प्रणाली अक्सर केवल अंतिम उत्तर पर ध्यान केंद्रित करती है, जबकि ग्रेड-आधारित प्रणाली छात्र की व्यापक समझ, प्रदर्शन और प्रगति का मूल्यांकन करने का प्रयास करती है। यह सीखने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करती है न कि केवल परीक्षा में अच्छे अंक लाने को। यदि इस बदलाव के पीछे का शैक्षिक दर्शन स्पष्ट नहीं है, तो संस्थान क्रेडिट को अंकों में बदलने जैसे हास्यास्पद ‘फॉर्मूले’ ईजाद करेंगे, जो पूरी अवधारणा को कमजोर करता है।
चार साल का स्नातक कार्यक्रम: चार साल के स्नातक कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों को गहन अध्ययन के साथ-साथ इंटर्नशिप, अनुसंधान और कौशल विकास के अवसर प्रदान करना है। यह उन्हें अधिक समग्र और उद्योग-तैयार बनाता है। इसके अलावा, यह उन्हें एक वर्ष के बाद प्रमाण पत्र, दो वर्ष के बाद डिप्लोमा और तीन वर्ष के बाद डिग्री प्राप्त करने का लचीलापन प्रदान करता है, जिससे ड्रॉपआउट दर कम हो सकती है।
अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स (ABC): ABC छात्रों को विभिन्न संस्थानों से अर्जित क्रेडिट को एक डिजिटल खाते में जमा करने की अनुमति देता है। यह छात्रों को अपनी गति से और अपनी पसंद के अनुसार सीखने की सुविधा देता है, जिससे शिक्षा अधिक सुलभ और लचीली बनती है। यह “कहीं भी, कभी भी, किसी भी स्तर पर” सीखने के विचार को बढ़ावा देता है। यदि यह अवधारणा स्पष्ट नहीं है, तो संस्थान इसे केवल एक प्रशासनिक सुविधा मानेंगे, न कि छात्र-केंद्रित सीखने के उपकरण के रूप में।
सामान्य पाठ्यक्रम का उदाहरण: NEP की भावना को गलत समझा गया। NEP बहु-विषयक और अंतर-अनुशासनात्मक शिक्षा पर जोर देती है, जो स्थानीय संदर्भ और नवाचार को बढ़ावा देती है। एक सामान्य पाठ्यक्रम लागू करना इस विविधता और लचीलेपन के बिल्कुल विपरीत है, जो अंततः क्षेत्रीय आवश्यकताओं और छात्र की रुचियों को दबाता है।
समस्या का मूल: पुरानी मानसिकता में नई प्रणाली को फिट करना
हम नई प्रणाली को अपने पुराने तरीकों में फिट करना चाहते हैं जिससे परेशानी होती है ! भारतीय शिक्षा प्रणाली दशकों से एक निश्चित ढर्रे पर चल रही है – केंद्रीकृत, परीक्षा-केंद्रित और अक्सर रटने पर आधारित। NEP 2020 इस ढर्रे को तोड़ना चाहता है, लेकिन यदि कार्यान्वयनकर्ता अभी भी पुरानी मानसिकता के साथ काम कर रहे हैं, तो संघर्ष होना तय है। यह ऐसा है जैसे आप एक पुरानी, पेट्रोल से चलने वाली कार में इलेक्ट्रिक इंजन फिट करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन फिर भी उसे पेट्रोल से चलाने की उम्मीद कर रहे हों।
NEP 2020 को केवल एक प्रशासनिक आदेश के रूप में लागू नहीं किया जा सकता है। यह एक शैक्षिक सुधार का प्रयास है जिसे तभी सफलता मिलेगी जब इसे लागू करने वाले लोग इसके पीछे की भावना, उद्देश्य और दर्शन को समझेंगे और अपनाएंगे। हमें पुरानी लकीरों को छोड़कर एक नई, छात्र-केंद्रित और भविष्य-उन्मुख शिक्षा प्रणाली का निर्माण करना होगा। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो जैसा कि आपने ठीक ही कहा, यह एक आपदा होगी, जो हमारे युवाओं के भविष्य और देश के विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी।
कई रिपोर्टें और विशेषज्ञ NEP 2020 के कार्यान्वयन में विश्वविद्यालयों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों और कुछ हद तक अनियोजित या अपर्याप्त तैयारी को इंगित करते हैं। यहां कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं:
बुनियादी ढांचे की कमी (Lack of Infrastructure): NEP 2020 बहु-विषयक शिक्षा, लचीले पाठ्यक्रम और प्रौद्योगिकी के उपयोग पर जोर देती है। इसके लिए डिजिटल कक्षाओं, आधुनिक प्रयोगशालाओं, और पर्याप्त तकनीकी उपकरणों सहित महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है। कई विश्वविद्यालयों, विशेषकर टियर-2 और टियर-3 शहरों में, इन बुनियादी ढांचागत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बजट और संसाधनों की कमी है।
संकाय प्रशिक्षण और मानसिकता में बदलाव (Faculty Training and Attitudinal Shift): NEP परिणाम-आधारित शिक्षा, अनुभवात्मक शिक्षण और प्रौद्योगिकी के उपयोग पर जोर देती है। अधिकांश संकाय सदस्य इन आधुनिक शिक्षण पद्धतियों में प्रशिक्षित नहीं हैं। उन्हें बड़े पैमाने पर प्रशिक्षित करना एक बड़ी चुनौती है, और इसमें समय और संसाधनों की आवश्यकता होती है। कुछ शिक्षकों में बदलाव के प्रति प्रतिरोध भी देखा गया है।
पाठ्यक्रम पुनर्गठन और बहु-विषयक एकीकरण (Curriculum Restructuring and Multidisciplinary Integration): NEP संस्थानों को कठोर विभागीय सीमाओं को तोड़कर बहु-विषयक, लचीले शिक्षण की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। मौजूदा पाठ्यक्रम, क्रेडिट संरचनाओं और मूल्यांकन प्रणालियों को पूरी तरह से फिर से डिज़ाइन करने की आवश्यकता है, जो एक विशाल कार्य है। एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स (ABC) का कार्यान्वयन (Implementation of Academic Bank of Credits – ABC): ABC छात्रों को अकादमिक क्रेडिट को डिजिटल रूप से स्टोर और ट्रांसफर करने में सक्षम बनाता है, जिससे गतिशीलता और कई प्रवेश-निकास विकल्प मिलते हैं।
विश्वविद्यालयों को ABC के साथ एकीकृत करने और DigiLocker और NAD जैसे प्लेटफार्मों के साथ वास्तविक समय क्रेडिट सिंकिंग सुनिश्चित करने के लिए अपनी आंतरिक प्रणालियों को ओवरहाल करना होगा। कई के पास इस बदलाव को सुचारू रूप से प्रबंधित करने के लिए तकनीकी तैयारी या मानकीकृत ERP सिस्टम नहीं हैं।
वित्तीय बाधाएं (Funding Constraints): NEP के महत्वाकांक्षी उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता है। सरकार द्वारा शिक्षा बजट में वृद्धि के बावजूद, यह अक्सर कार्यान्वयन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होता है। निजी संस्थानों से अधिक छात्रवृत्तियां प्रदान करने की उम्मीद की जाती है, लेकिन इसके लिए कोई स्पष्ट तंत्र नहीं है।
स्वायत्तता और नौकरशाही बाधाएं (Autonomy and Bureaucratic Hurdles): NEP संस्थानों को अधिक स्वायत्तता देने की बात करती है, लेकिन कई विश्वविद्यालय अभी भी वित्तीय निर्भरता, नौकरशाही बाधाओं और आंतरिक सुधार के प्रति प्रतिरोध का सामना करते हैं। यह रणनीतिक योजना और कार्यान्वयन की क्षमता को बाधित करता है।
योजना की कमी और जल्दबाजी में कार्यान्वयन (Lack of Planning and Hasty Implementation): कुछ मामलों में, विश्वविद्यालयों ने पर्याप्त योजना और तैयारी के बिना NEP के कुछ प्रावधानों को लागू करने की कोशिश की है। उदाहरण के लिए, दिल्ली विश्वविद्यालय में चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम को “बिना सोचे-समझे प्रयोग” के रूप में वर्णित किया गया है, जिसमें पाठ्यक्रम के अनुमोदन, संकाय की कमी और बुनियादी ढांचे के अंतराल जैसी समस्याएं सामने आई हैं।
निष्कर्ष:
NEP 2020 एक दूरदर्शी और महत्वाकांक्षी नीति है जिसका उद्देश्य भारतीय शिक्षा प्रणाली में बड़े बदलाव लाना है। हालांकि, इसकी सफलता केवल नीति के इरादों पर निर्भर नहीं करती है, बल्कि इसके प्रभावी कार्यान्वयन पर भी निर्भर करती है। विश्वविद्यालयों द्वारा अपर्याप्त योजना, संसाधनों की कमी, संकाय की तैयारी में कमी, और मौजूदा ढांचों में बदलाव के प्रति प्रतिरोध जैसी चुनौतियां निश्चित रूप से इसके सफल कार्यान्वयन में बाधा डाल रही हैं।
नीति को सफल बनाने के लिए, विश्वविद्यालयों को अधिक व्यापक योजना, पर्याप्त धन, संकाय के लिए गहन प्रशिक्षण, और चरण-वार कार्यान्वयन दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। सरकार और नियामक निकायों को भी विश्वविद्यालयों की इन चुनौतियों का समाधान करने में सहायता प्रदान करनी होगी।
(लेखक पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर रह चुके हैं)