Monday - 16 June 2025 - 11:23 AM

ईरान-इजरायल युद्ध में नया मोड़, अमेरिका ने उतारे 24 टैंकर एयरक्राफ्ट

जुबिली न्यूज डेस्क 

वॉशिंगटन: ईरान और इजरायल के बीच जारी युद्ध अब वैश्विक मोड़ लेता नजर आ रहा है। इसी बीच अमेरिका ने एयर रिफ्यूलिंग टैंकर विमानों की इतिहास की सबसे बड़ी तैनाती शुरू कर दी है। रविवार देर रात तक मिली जानकारी के मुताबिक, अमेरिका ने कम से कम 24 KC-135 और KC-46 टैंकर विमानों को अटलांटिक पार कर यूरोप की ओर रवाना कर दिया है। यह तैनाती अब भी जारी है।

अमेरिका ने नहीं किया तैनाती का खुलासा

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने इस बड़े मूवमेंट को लेकर फिलहाल कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह तैनाती मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव के मद्देनज़र की जा रही है। ऐसे टैंकर विमान अक्सर नाटो सहयोगी देशों के साथ मिलकर लॉजिस्टिक और हवाई समर्थन देने में इस्तेमाल होते हैं।

इससे पहले भी सीरिया और इराक में अमेरिकी वायुसेना ने इसी तरह की टैंकर सपोर्ट से लंबे हवाई अभियानों को अंजाम दिया था।

लंबे समय तक चलने वाले सैन्य ऑपरेशन की तैयारी?

विश्लेषकों का मानना है कि इतनी बड़ी संख्या में टैंकर विमानों की तैनाती सिर्फ एहतियातन नहीं हो सकती। यह संकेत देता है कि अमेरिका एक लंबे और बहुस्तरीय सैन्य अभियान के लिए तैयारी कर रहा है। खासकर ऐसे समय में जब ईरान और इजरायल के बीच मिसाइल और ड्रोन अटैक लगातार तेज हो रहे हैं।

क्या करते हैं एयर रिफ्यूलिंग टैंकर?

इन टैंकर विमानों का इस्तेमाल उन लड़ाकू विमानों को हवा में ईंधन भरने के लिए किया जाता है जो लंबे रेंज की उड़ान में शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, इजरायल के वे फाइटर जेट्स जो ईरान के अंदर गहराई तक सटीक हमले कर रहे हैं — उन्हें रास्ते में एक से अधिक बार रिफ्यूलिंग की जरूरत पड़ती है।इन टैंकर विमानों की मदद से फाइटर जेट्स की रेंज और ऑपरेशन टाइम दोनों बढ़ जाते हैं।

इजरायल-ईरान युद्ध: हालात गंभीर

बीते कुछ दिनों में इजरायली वायुसेना ने ईरान के सैन्य ठिकानों पर कई लंबी दूरी के हमले किए हैं। जवाब में, ईरान ने भी ड्रोन और मिसाइल अटैक तेज कर दिए हैं। जानकारों का कहना है कि इस बार की लड़ाई सीमित संघर्ष नहीं बल्कि क्षेत्रीय युद्ध की दिशा में बढ़ती जा रही है।

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अमेरिका की यह रणनीतिक तैनाती साफ तौर पर दर्शाती है कि वैश्विक शक्तियां इस संघर्ष को गंभीरता से ले रही हैं। अब यह देखना होगा कि अमेरिका सिर्फ लॉजिस्टिक सपोर्ट तक सीमित रहेगा या इस युद्ध में सीधी सैन्य भागीदारी भी करेगा।

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