Friday - 5 January 2024 - 1:04 PM

डंके की चोट पर : मरते हुए कोरोना ने ओमिक्रान को यह क्यों समझाया कि …

शबाहत हुसैन विजेता

सड़कें भीड़ से दबी जा रही थीं. पार्कों में पाँव रखने की जगह नहीं थी. गाड़ियों के हार्न का शोर दिमाग की नसें फाड़ डालने को आमादा थे. सड़क के बीच बने डिवाइडर पर डेल्टा की उंगली थामे ओमिक्रान इस डर से कहीं भागा चला जा रहा था कि कहीं इस बेपरवाह भीड़ के पाँव तले न कुचल जाए.

सड़कों पर शोर था, गाड़ियों का धुआं था, एम्बुलेंस, पुलिस और मंत्रियों की कारों के एक जैसे साइरन थे. चौराहों पर चालान की शक्ल में वसूली हो रही थी. अस्पतालों के बाहर लाश गाड़ियों के ड्राइवर बड़ी बेसब्री से किसी के मरने का इंतज़ार कर रहे थे. नेताओं के वादों से लबरेज़ भाषण कानों में शीरीनी घोल रहे थे.

किसानों के कर्जे माफ़ हो रहे थे, लड़कियों की पढ़ाई मुफ्त हो रही थी. बड़ी क्लास पास कर लेने वालों को मुफ्त में टैबलेट और लैपटॉप बंट रहे थे. 80 करोड़ लोगों को मुफ्त के खाने के वादे के साइनबोर्ड लगे थे. माहौल इतना अच्छा था कि दूर से ही नज़र आ रहा था कि अगला मोड़ पार होते ही सतयुग आ जाएगा.

सतयुग वाले रास्ते पर ओमिक्रान डेल्टा को लेकर भागा चला जा रहा था. एक अस्पताल के बाहर आक्सीजन सिलेंडर की दुकान थी. बड़ी तादाद में आक्सीजन सिलेंडर वहां रखे थे. एक साफ़ सुथरे आक्सीजन सिलेंडर पर चेहरे पर मास्क लगाए कोरोना चिपका हुआ था. कोरोना की आँखों में अजीब किस्म का डर देखने को मिल रहा था. डरे हुए कोरोना को देखकर ओमिक्रान डेल्टा को लेकर उसी की तरफ बढ़ गया. तीनों की नजरें आपस में मिलीं. आँखों में रिश्तेदारों से मुलाक़ात वाली चमक उभरी. कोरोना ने उन्हें भी आक्सीजन सिलेंडर पर ही बुला लिया ताकि एक दूसरे की खैरियत आराम से पूछी जा सके.

ओमिक्रान : अरे कोरोना चाचा आपकी आँखों में डर. आप तो डर का पर्याय माने जाते थे. आप तो हर तरफ लाशें बिछा देते थे. आपके तो नाम पर ही सड़कें खाली हो जाती थीं. आप ही की वजह से आक्सीजन सिलेंडर की कीमत कई गुना बढ़ गई थी. हमने तो आपके कसीदे सुनते हुए ही आँख खोली थी. आज मुलाक़ात हुई तो आँखों में डर और चेहरे पर मास्क. आखिर यह माजरा क्या है ?

कोरोना : बेटा, सब वक्त-वक्त की बात है. कभी हमारा भी वक्त था. वह हम ही थे जिसने दुनिया के चेहरे पर मास्क चढ़ा दिया था मगर वक्त पलटा है तो मास्क हमारे चेहरे पर चढ़ गया है. बेटा, हमारी तो चला चली की बेला है. जो ज़िन्दगी बची है वह चेहरे पर मास्क चढ़ाकर काट लेंगे लेकिन अच्छा हुआ तुम लोग मिल गए. तुम्हें तो अभी लम्बा संफर तय करना है. तुम्हें कैसे रहना है, कैसे जीना है और कैसे अपना नाम रौशन करना है उसकी सीख मुझसे ले लो तो फायदे में रहोगे.

ओमिक्रान : जी चाचाजी, आपके एक्सपीरियंस से ज़िन्दगी को जीने का सलीका सीखने ही तो हम आपके पास आये हैं. वर्ना तो हम आगे न बढ़ गए होते.

कोरोना : देखो बेटा, आम आदमी पर अटैक करना मगर सियासी लोगों से दूर रहना.

ओमिक्रान : सियासी लोगों में जान नहीं होती क्या ?

कोरोना : जान तो होती है मगर उनकी खाल बहुत मोटी होती है. वह बीमार होते हैं तो उन्हें इलाज जल्दी मिलता है. वह पहले से अपनी इम्युनिटी इतनी स्ट्रांग रखते हैं कि उन पर जल्दी किसी वायरस का असर नहीं होता. असर हो गया तो दुनिया भर के डॉक्टर उन्हें बचाने में लग जाते हैं.

ओमिक्रान : चाचा, आक्सीजन वाली कहानी सुनाइये ना, सुना है कि आपके दौर में आक्सीजन के दाम कई गुना बढ़ गए थे.

कोरोना : अरे छोड़ो उसे. मैं उसी वजह से ही तो मास्क लगाए हूँ. मैंने रात-दिन मेहनत की थी. सड़कों पर सन्नाटा छा गया था. दूर-दूर तक कोई दिखता नहीं था. क्राइम खत्म हो गया था क्योंकि क्रिमनल भी बुरी तरह से डर गया था. उस दौर में सिर्फ पुलिस और सियासत ही लूटमार में लगी थी.

अस्पतालों में डॉक्टर लूट रहे थे, सड़कों पर पुलिस लूट रही थी. तुम्हें क्या बताएं बेटा बड़े -बड़े क्रिमनल मामूली-मामूली पुलिस सिपाही से लुटे जा रहे थे. पुलिस चालान के नाम पर लूट रही थी. चालान न कटाने पर अपनी जेबें भरने में लगी थी.

एक अजीब सा माहौल था. आक्सीजन सिलेंडर की लूट मची थी. एक डीएम साहब की माँ बहुत बीमार थीं. उन्हें फ़ौरन आक्सीजन की ज़रूरत थी. कहीं आक्सीजन थी नहीं. डीएम साहब दूसरे शहर में पोस्टेड थे. उन्होंने अपने शहर के एसडीएम को फोन किया. एसडीएम ने सिलेंडर वाले से बात की. सात हज़ार वाला सिलेंडर पचास हज़ार में तय हुआ. एसडीएम ने डीएम साहब को बता दिया. डीएम साहब ने अपने बेटे को फोन किया कि फ़ौरन पचास हज़ार लेकर जाओ और सिलेंडर लाकर अपनी दादी को बचाओ. लड़का जब तक पहुँचता कोई दूसरा पचहत्तर हज़ार देकर वह सिलेंडर ले गया. डीएम साहब की माँ की सांस टूट गई.

ओमिक्रान : ओह…, यह तो बुरा हुआ. उसे तो बच जाना चाहिए था.

कोरोना : नहीं उस रात तो मैंने जश्न मनाया था. मेरी कोशिश इतनी शानदार थी कि डीएम साहब और उनका पैसा दोनों हार गए थे.

ओमिक्रान : फिर दिक्कत क्या है ?

कोरोना : दिक्कत… अरे मत पूछो बेटा… उस दिन सियासी लोग मीटिंग में बैठे तो एलान किया कि आक्सीजन की कमी से एक भी मौत नहीं हुई. इस मीटिंग में भी मैं था. मैंने अपने कानों से सुना. तब मुझे अहसास हुआ कि अब यह तय करना मुश्किल है कि बड़ा नीच कौन है कोरोना या सियासत. मगर तब तो मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गई जब उसी बड़े अफसर ने उस कागज़ पर दस्तखत किये जिस पर लिखा था कि आक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा. जो डीएम रहा था और जिसकी माँ आक्सीजन की कमी से मर गई थी.

ओमिक्रान : मतलब सियासत से बचकर रहना चाहिए.

कोरोना : हाँ बेटा सही समझे. यह तुम्हारा दौर है. चुनाव सर पर हैं. बड़ी-बड़ी रैलियां हो रही हैं. बड़े-बड़े वादे हो रहे हैं. इन रैलियों में वह लोग जमा हैं जो मुर्दों से बदतर ज़िन्दगी जीते हैं. इनके पास पढ़ाई है मगर नौकरी नहीं है. यह ज़ात-बिरादरी में बंटे लोग हैं. इन्हें बड़े-बड़े वादों से मोहब्बत है. यह जानते हैं कि कोरोना से बच गए तो भूख से मरेंगे. रैली में वह ऐसी सियासी शख्सियत को तलाश रहे हैं जो उन्हें नौकरी देगा. जो अस्पतालों में फ्री इलाज देगा. जो महंगाई कम करेगा. जो पेट्रोल और सरसों का तेल सस्ता करेगा. जो पढ़ाई भी सस्ती करेगा और कढ़ाई भी सस्ते में चढ़वायेगा.

वह रैली में नहीं जाएगा तो कैसे अपना मुस्तकबिल संवारेगा. यह तुम्हारे सीखने का वक्त है. भीड़ में घुसोगे तो कुचले जाओगे. मंच पर जाओगे तो वहां तुमसे बड़ा ओमिक्रान और डेल्टा पहले से है. तुम किनारे-किनारे जाओ. मंच के पास लगी बल्लियों पर बैठो, जिन गाड़ियों से लोग रैली में आयें उन्हें छूकर चले जाओ. भीड़ जिन चीज़ों को छूते हुए चलती है उन सबको तुम भी छुओ. भीड़ के हाथों में लहराते झंडों में, रैली में बंटती पूड़ी-सब्जी में, सड़कों पर लगे हैन्डपम्प में, कोई जगह खाली मत छोड़ो.

ओमिक्रान ने डेल्टा की उंगली फिर से पकड़ी. कोरोना का शुक्रिया अदा किया. अपनी मंजिल पर रवाना होने के लिए आक्सीजन सिलेंडर से उतरा. और उस गाड़ी पर सवार हो गया जिस पर लिखा था सोच इमानदार-काम दमदार. डेल्टा ने ओमिक्रान को लाउडस्पीकर की तरफ इशारा करते हुए कहा सुनो. लड़की हूँ लड़ सकती हूँ. दोनों मुस्कुराए और बढ़ गए अपने मिशन की तरफ.

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