जुबिली न्यूज डेस्क
किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं है। सरकार चाहे जितने दावे कर ले कि उसने कृषि क्षेत्र में क्रांति कर दी है लेकिन असल में ऐसा है नहीं।
पिछले साल जब कोरोना महामारी की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो रही थी तो कृषि क्षेत्र ने उसे सहारा दिया, बावजूद इसके किसानों की समस्याओं को लेकर सरकार गंभीर नहीं है।

सरकार की उपेक्षा का ही नतीजा है कि किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। सरकारें आती-जाती रहती है लेकिन किसानों की समस्या जस की तस बनी हुई है। साल 2020 में भी भारी संख्या में किसानों ने आत्महत्या की।
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साल 2020 में 2019 की तुलना में किसानों की अधिक आत्महत्याओं की संख्या देखी गई है। एनसीबीआरबी की रिपोर्ट की मानें तो किसानों की आत्महत्या के मामलों में 18 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
2020 में 4006 किसानों की आत्महत्याओं के साथ महाराष्ट्र इस सूची में शीर्ष पर बना हुआ है। इसके बाद कर्नाटक (2016), आंध्र प्रदेश (889), मध्य प्रदेश (735) और छत्तीसगढ़ (537) ने कुल 10,677 आत्महत्याएं दर्ज की हैं।
यहां बताना जरूरी है कि महाराष्ट्र ,कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश 2019 की सूची में टॉप चार राज्य थे।
कुल मिलाकर भारत में 2020 में 10677 किसानों ने आत्महत्या की है, जो देश में कुल आत्महत्याओं (1,53,052) का 7 प्रतिशत है।
जिन किसानों ने आत्महत्या की है उनमें 5,579 किसानों (जिनके पास अपनी जमीन है) और 5,098 खेतिहर मजदूरों की आत्महत्याएं शामिल हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने गुरुवार को इन आंकड़ों को जारी किया।
कृषि मजदूरों की आत्महत्या की संख्या में वृद्धि की वजह है कि भूमिहीन किसानों को पीएम किसान के तहत वित्तीय सहायता नहीं मिलती है और उन्हें सामने परिवार चलाने का संकट होता है।
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अधिकांश भूमिहीन किसानों को पट्टे की भूमि पर खेती का विकल्प चुनने के लिए साधन के अभाव में मजदूर के रूप में काम करना पड़ता है। सरकारी सहायता न मिलने की वजह से भी वे संकट में फंस जाते हैं और आत्महत्या के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचता।
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वहीं, केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों आंदोलन का केंद्र बने पंजाब और हरियाणा में क्रमश: 257 और 280 किसानों ने आत्महत्या की।
इसके अलावा पश्चिम बंगाल, बिहार, नागालैंड, त्रिपुरा उत्तराखंड, चंडीगढ़, दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश, लद्दाख, लक्षद्वीप और पुडुचेरी जैसे कुछ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने किसानों के साथ-साथ खेतिहर मजदूरों की शून्य आत्महत्या की सूचना दी है।
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