स्पेशल डेस्क
मजदूरों को लेकर कहा जाता है कि भूख उन्हें शहर लेकर आई थी और अब भूख ही उन्हें वापस अपने घर जाने पर मजबूर कर रही है। दरअसल ये सब कोरोना वायरस की वजह से हुआ है। कोरोना और लॉकडाउन के चलते मजदूरों की जिदंगी भी अब खतरे में नजर आ रही है।
130 करोड़ की आबादी वाले इस देश में बीते कुछ दिनों से देश के कई इलाकों से जो तस्वीरें सामने आ रही है, उससे एक बात तो तय है कि ये वो भारत नहीं है जिसके बारे में पहले कहा जाता था।
अब सबकी जहन में एक ही सवाल है कि आखिर कब सडक़ों पर बेबस मजदूरों का दर्द कब होगा खत्म?
प्रवासी मजदूरों को लेकर देश की सियासत में घमासान मचा हुआ है। आलम तो यह है कि मदद देने के नाम पर उनके साथ खेल किया जा रहा है। प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलायी जा रही है लेकिन वो भी एक मजाक बनकर रह गई।

श्रमिक स्पेशल ट्रेनें अपना रास्ता भटक जा रही है और नौ-नौ दिन तक अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पा रही है। ये भी बड़ा रोचक है कि ज्योति की साइकिल सात दिन का सफर तय कर गुडग़ांव से दरभंगा पहुंच गई लेकिन मोदी जी की रेल प्रवासी मजदूरों को उनके जिलें तक छोडऩे के लिए नौ दिन तक समय ले रही है।
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रेलवे का ये हाल होगा किसी ने नहीं सोचा था। इतना ही नहीं श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में खाना तक नहीं दिया जा रहा है और न ही पानी कोई इंतेजाम है। नतीजा यह हो रहा है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में लोग भूखे-प्यासे भी मर रहे हैं। भूख और प्यास की वजह से इन्हें लुटेरा तक बना डाला है।

प्रवासी मजदूरों को इन ट्रेनों ने और किया परेशान
जानकारी के मुताबिक गुजरात के सूरत से करीब 6000 श्रमिकों को लेकर सीवान के लिए निकलीं दो ट्रेन निकली थी लेकिन वहां पहुंचने के बजाये ये ट्रेनें उड़ीसा के राउरकेला और बेंगलुरु पहुंच गईं। बता दें कि इन्हें 18 मई को सीवान पहुंचना था।
वहीं गुजरात के सूरत से 1966 मजदूरों को लेकर सीवान के लिए चली ट्रेन रास्ता भटक गई और वह सीवान आने की बजाय उड़ीसा के राउरकेला चली गई। इसके बाद काफी खोजबीन के बाद यह नौ दिनों बाद सीवान पहुंची है।

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इसी तरह से कई और ट्रेनें है जो सफर में भटक रही है। आलम तो यह है कि 30 घंटे के बजाये चार दिन में इनका सफर पूरा हो रहा है। इसके साथ ही रास्तें में इन मजदूरों का बुरा हाल है। पुणे से निकली एक ट्रेन चार दिन बाद समस्तीपुर पहुंची है।
मजदूरों का कहना है कि उनका ये सफर भी मुसिबत बन गया है
दिल्ली से मोतिहारी जाना था लेकिन ट्रेन चार दिनों बाद समस्तीपुर पहुंच गई। इस दौरान एक महिला ने एक बच्ची को जन्म प्लेटफॉर्म पर दिया। प्रवासी मजदूरों का कहना है कि ट्रेन कई स्टेशनों पर कई-कई घंटे रूकी रहती है और इस दौरान न तो खाना मिलता है और न ही पानी। ऐसे में इस प्रचंड गर्मी में दम निकलने का डर रहता है। इससे पहले सूरत से सासाराम पहुंची एक ट्रेन से उतरने के बाद एक महिला की अपने पति के सामने ही मौत हो गई। बरौनी में भी एक मुंबई के बांद्रा टर्मिनस से लौटे एक व्यक्ति की पानी लेने के दौरान स्टेशन पर जान चली गई।
बिहार के मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन दृश्य रूह को काँपा देगी ।
माँ की मौत गुजरात से चली ट्रेन में भूख से हो गई। बच्चों को पता ही की माँ अब नही रही ।बार-बार माँ को उठाने का प्रयास कर रहे है ।कौन जिम्मेदार है इस हत्या का? pic.twitter.com/9xFi7uqC1R
— Bihar Congress (@INCBihar) May 27, 2020
मुजफ्फरपुर स्टेशन में नाजारा देखकर हर किसी की रूह काप गई। दरअसल माँ की मौत गुजरात से चली ट्रेन में भूख से हो गई। बच्चों को पता ही की माँ की मौत हो चुकी लेकिन वो बार-बार उसे जगाने की कोशिश कर रहा है। कुल मिलाकर देखा जाये तो प्रवासी मजदूरों का दर्द कम होने के बजाये और बढ़ गया है। सरकारी मदद के नाम पर आखिर कब तक इनको परेशान किया जाएगा।
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