जुबिली स्पेशल डेस्क
पटना। वक्फ संशोधन बिल के संसद से पारित होने के बाद से ही सियासी घमासान तेज हो गया है। इस बिल को लेकर कुछ राजनीतिक दलों की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं। खासतौर पर नीतीश कुमार और नायडू जैसे नेताओं की राजनीतिक रणनीतियों पर विपक्ष लगातार हमला बोल रहा है।
बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में वक्फ संशोधन बिल को लेकर सियासी माहौल गरमा गया है। बिहार की राजनीति में एक बार फिर मुस्लिम समुदाय चर्चा का केंद्र बन गया है।
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जानकारी के मुताबिक, नीतीश कुमार द्वारा वक्फ संशोधन बिल का समर्थन उनकी पार्टी जेडीयू को आगामी चुनाव में नुकसान पहुंचा सकता है। आलम यह है कि पार्टी के कई मुस्लिम नेता उनसे नाराज हैं और कुछ ने तो जेडीयू से नाता तक तोड़ लिया है।

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हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम के बीच जेडीयू ने मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति से हटकर एक नई रणनीति अपनाई है। नीतीश कुमार के करीबी और मंत्री अशोक चौधरी ने साफ तौर पर कहा है कि “नीतीश को अब किसी मौलाना की जरूरत नहीं है।” उनका कहना है कि जेडीयू अब 17 प्रतिशत मुस्लिम वोटबैंक के चक्कर में 83 प्रतिशत बहुसंख्यक वोटबैंक को नाराज नहीं कर सकती।
संसद में वक्फ संशोधन बिल पर जेडीयू के समर्थन से यह साफ हो गया है कि पार्टी अब अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव कर चुकी है। यह बदलाव आगामी चुनाव में उसे फायदा पहुंचाएगा या नुकसान—यह देखना दिलचस्प होगा।
बिहार में लगभग 25 से 30 विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल हैं, जहां मुस्लिम प्रत्याशी उतरने के बाद चुनावी समीकरण बदल जाते हैं। विशेष रूप से सीमांचल और मिथिलांचल क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं और उनकी पहली पसंद आमतौर पर मुस्लिम उम्मीदवार ही होते हैं। प्रदेश में मुस्लिम आबादी करीब 17 से 20 प्रतिशत के बीच है।
सीमांचल और मिथिलांचल के अलावा भागलपुर, सिवान, गोपालगंज और बेगूसराय जैसे जिलों में भी मुस्लिम वोटर्स की मजबूत मौजूदगी है, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकती है। बिहार की करीब डेढ़ दर्जन विधानसभा सीटों पर 30 से 60 प्रतिशत तक मुस्लिम मतदाता हैं।
ऐसे में जेडीयू द्वारा वक्फ संशोधन बिल का समर्थन करने से मुस्लिम वोटों का आरजेडी, जनसुराज और कांग्रेस जैसे दलों में बंट जाना असंभव नहीं माना जा सकता। हालांकि, जेडीयू ने इन संभावित नुकसान की चिंता को दरकिनार करते हुए अपनी रणनीति स्पष्ट कर दी है।
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