Saturday - 6 January 2024 - 2:07 AM

370 हटने के बाद भी अब निराश क्यों होने लगे हैं कश्मीरी पंडित ?

उत्कर्ष सिन्हा

बीते 5 अगस्त को जब देश की संसद में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने की घोषणा हुई थी , तो देश के दूसरे हिस्सों में विस्थापन का दर्द सह रहे कश्मीरी पंडितों के चेहरे पर मुस्कान थी । उन्हे लग रहा था कि सरकार के इस कदम के बाद अब वे न सिर्फ अपने घर जा सकेंगे बल्कि एक बार फिर से वे अपनी कश्मीरियत की पहचान से अपने अगली पीढ़ी को रुबरू कर सकेंगे ।

लेकिन करीब 45 दिनों के बाद शरणार्थी कैंपों में रह रहे इन पंडितों की फिक्र फिर से बढ़ने लगी है । वे समझ नहीं पा रहे कि आखिर उनके मामले में सरकार खामोश क्यों है ?

1989- 90 में कश्मीर की घाटी में पाकिस्तानी आतंकियों ने अपना वर्चस्व बना लिया था और उसके बाद ही घाटी से पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ । उस वक्त काफी पंडित जम्मू गए , कुछ यूपी , एमपी सहित भारत के दूसरे हिस्सों में जा कर बसने की कोशिश करने लगे ।

माया कौल भी इनमे से एक हैं । 5 अगस्त को माया बहुत खुश थी । करीब तीस साल के बाद उन्हे अपने घर जाने की उम्मीद दिखाई दे रही थी । हिंसा के निर्मम दौर में बारामूला का घर छोड़ कर माया अपने दो छोटे बच्चों और पति के साथ के साथ मध्यप्रदेश के होशंगाबाद अ गई थी । उनका बेटा मानव कौल  अब बालीवुड मे अभिनेता के तौर पर स्थापित हो चुका है । । 5 अगस्त को माया ने कहा था – ‘मैं आपको कैसे बताऊं कि आज मैं कितनी खुश हूं ।  हालांकि, मुझे सुखद आश्चर्य भी हो रहा है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 आखिर किस तरह हट गया?’

माया और उनके साथी परिवारों ने आतिशबाजी की और खुशिया मनाई । इन कश्मीरी पंडितों ने जश्न के दौरान यह उम्मीद भी जतायी कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में उनके समुदाय के लोगों की वापसी की राह आसान हो सकेगी।

लेकिन फिलहाल सूरत ए हाल कुछ जुदा है । कश्मीरी पंडितों की वापसी का कोई ठोस रोड मैप अब तक नहीं आया है । कश्मीर में अजीब माहौल है । बाजार तकरीबन बंद है और संचार अभी भी पूरी तरह शुरू नहीं हो सका है । मीडिया में भी कभी कभार जो खबरे चल रही हैं वे असलियत सामने लाने में कामयाब नहीं हो रही । कुछ न्यूज पोर्टल्स और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के अलावा कोई ऐसा जरिया नहीं बन पा रहा है कि कश्मीर की गलियों की हलचल पूरे देश को पता चल सके ।

इस बीच बीबीसी की हिन्दी साईट ने जम्मू में रह रहे कश्मीरी पड़ितों पर जो रिपोर्ट जारी की है वो चिंता पैदा करनेवाली है । इस रिपोर्ट के अनुसार जम्मू के शरणार्थी कैंपों मे बचैनी बढ़ रही है । इन कैंपस में रहने वाले पंडित सरकार के रुख से निराश होने लगे हैं । लंबे समय से कैपस में रहने वाले करीब 15 हजार पंडितों को सरकार अभी भी पक्का घर नहीं दे पाई है । वे टीन शेड वाले कमरों में रहने को मजबूर हैं जहां अगल बगल गंदगी का भंडार है ।

“आल स्टेट कश्मीरी पंडित कांफ्रेंस”  कश्मीरी पंडितों की सबसे पुरानी संस्था है जो 1931 में बनी थी । फिलहाल इसके अध्यक्ष रविंदर राणा है। रविंदर राणा भी निराश है । वे कहते हैं – “गृह मंत्री और केंद्र सरकार ये नहीं बता रही कि कश्मीरी पंडित क्या अपने घर वापस लौटेंगे? किस तरह वापस लौटेंगे और फिर लौटने के बाद उनका क्या होगा? इसका मतलब ये हुआ कि अनुच्छेद 370 हटे या ना हटे इसका कश्मीरी पंडितों पर अभी तक तो कुछ असर पड़ता हुआ नज़र नहीं आ रहा है । ”

कश्मीरी पंडित अब एक नई समस्या से जूझ रहे हैं । 30 साल पहले आतंकवाद के कहर से घर छोड़ कर निकले इन पंडितों के रिश्ते अपने पुश्तैनी गावों में फिर बनने शुरू हो गए थे। घाटी से पाकिस्तानी आतंकियों की सफाई के बाद वे अपने पड़ोसियों के संपर्क में आने लगे थे । कईयों ने घाटी में अपने पुश्तैनी गाँव आना जाना भी शुरू कर दिया था पड़ोसियों से उनके रिश्ते इतने सामान्य होने लगे थे कि वे एक दिन वो अपने गाँव लौट सकें ।

मगर ताजा हालत इस तरह हो गए हैं कि खाई एक बार फिर बढ़ने के खतरे खड़े हो रहे हैं । घाटी में मौजूद लोगों के साथ उनके संबंध सामान्य कैसे होंगे ये फिक्र बढ़ रही है , क्योंकि जिस तरह केंद्र सरकार ने कश्मीर के मामले को हैंडल किया है उसमे पंडित अनायास ही एक मुद्दा बन गए है , जो कश्मीरियों की नई पीढ़ी को खटक रहा है । ये वो पीढ़ी है जिसने घाटी के समरस समाज को नहीं देखा , और आतंक के साये में जवान हुई है ।

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राष्ट्रवाद के उन्माद में कश्मीरी पंडितों का दर्द पूरे देश में एक राजनतिक मुद्दा तो बन चुका है, लेकिन उस दर्द पर न ही असरदार मरहम लगाने की कोई ठोस कोशिस हो रही है , और न ही इस दर्द को जड़ से मिटाने की को ठोस योजना सामने है ।

इस पूरे माहौल के बीच कश्मीरी पंडितों की आँखों में फिलहाल वही निराशा गहराने लगी है जो तीस सालों से थी और जिंदगी टीन शेड वाले दड़बेनुमा कमरों में वैसे ही रेंग रही है जैसे 5 अगस्त 2019 के पहले थी ।

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