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जंगलों को बचाने की जिम्मेदारी किसकी?

  • 30 सालों में 17.8 करोड़ हेक्टेयर जंगल हुए खत्म
  • वर्ष 2019 में आपदा के कारण 2.49 करोड़ लोग अपने ही देश के भीतर शरणार्थी बन गए
  • दुनिया के करीब 54 फीसदी जंगल केवल पांच देशों  में  हैं
  • पृथ्वी के के करीब 406 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र पर फैले हैं जंगल

अभिनव सिंह

मानव जीवन के लिए जंगल कितना जरूरी है इससे सभी वाकिफ हैं, बावजूद इसके जंगलों का अस्तित्व दांव पर लगा हुआ है। सरकारों को पर्यावरण की चिंता नहीं है। वे विकास की अंधी दौड़ में शामिल होकर जंगलों को ही मिटाने पर लगे हुए हैं। इसी का नतीजा है कि 1990 से लेकर अब तक दुनिया भर में करीब 17.8 करोड़ हेक्टेयर में फैले जंगल खत्म हो चुके हैं, जो अफ्रीकी देश लीबिया के क्षेत्रफल के लगभग बराबर है।

पूरी दुनिया क्लाइमेट चेंज का खामियाजा भुगत रही है। शहरों के विकास ने सबसे ज्यादा किसी को नुकसान पहुंचाया है तो वह हैं जंगल। दुनिया भर के पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक पृथ्वी को बचाने को गुहार लगा रहे हैं। सरकारों से अनुरोध कर रहे हैं कि इस दिशा में ध्यान दें, तब भी इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।

पिछले एक दशक में सैकड़ों ऐसी रिपोर्ट आ चुकी है जिसमें बताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से आने वाले कुछ सालों में पृथ्वी के कई देश संकट में आ सकते हैं। 2050 तक कई देशों के डूबने की भविष्यवाणी की जा चुकी है। बीते दिनों प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 2070 में दुनिया की एक तिहाई आबादी भीषण गर्मी में रहने को मजबूर होगी। ये वो आबादी होगी जो एयर कंडीशन का खर्चा वहन नहीं कर पायेगी।

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जाहिर है ये सब जो समस्याएं भविष्य में आने वाली है इसमें मिटते जंगलों की बड़ी भूमिका है। दुनिया के तमाम देश हर साल प्राकृतिक आपदा की विभीषिका से दो-चार होते हैं। इस आपदा करोड़ों-अरबों का नुकसान तो होता ही है साथ करोड़ों लोग अपने ही देश में विस्थापित होने को मजबूर होते हैं, और सबसे बड़ी बात हम सभी यह जानते हैं कि प्राकृतिक आपदा की वजह क्या है।

जेनेवा स्थित इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) के अनुसार वर्ष 2019 में आपदा के कारण 2.49 करोड़ लोग अपने ही देश के भीतर शरणार्थी बन गए। यह आंकड़ा 2012 के बाद सबसे अधिक है। ऐसा पहली इतनी बड़ी संख्या में लोगों में अपने देश के भीतर ही घर छोड़कर रिफ्यूजी की तरह रहना पड़ रहा है। प्राकृतिक आपदाओं की वजह से बहुत से लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हए।

आईडीएमसी की रिपोर्ट में भारत, बांग्लादेश और मोजांबिक जैसे देशों में पिछले साल आए चक्रवाती तूफान का जिक्र किया गया है। वहीं अफ्रीका में आई बाढ़ के कारण भी भारी संख्या में लोग रिफ्यूजी बनने को मजबूर हुए।

संयुक्त राष्ट्र  के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा शुक्रवार 8 मई को जारी रिपोर्ट ‘ग्लोबल फारेस्ट रिसोर्स एसेस्समेंट 2020’ में जंगलों को लेकर हैरान करने वाले आंकड़े जारी हुए हैं।

1990 से लेकर अब तक दुनिया भर में करीब 17.8 करोड़ हेक्टेयर में फैले जंगल खत्म हो चुके हैं। यह अफ्र्रीकी देश लीबिया के क्षेत्रफल के लगभग बराबर है। हालांकि पहले की तुलना में देखें तो जंगलों के विनाश की गति में कुछ कमी आई हैं, पर वो भी अभी
इतनी धीमी नहीं हैं कि उससे जंगलों को बचाया जा सके।

दुनिया के करीब 73 फीसदी जंगल सरकार के आधीन हैं7 जबकि 22 फीसदी निजी हाथों में हैं7 बाकी बचे 5 फीसदी जंगलों के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

वैश्विक स्तर पर इंसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों को काट रहा है, पर पिछले 5 सालों में उसकी गति में कुछ कमी आयी है। 2010 से 2015 के बीच हर साल करीब 1.2 करोड़ हेक्टेयर जंगलों को काट दिया जाता था, जोकि पिछले पांच सालों (2015-2020) में 1 करोड़ हेक्टेयर प्रति वर्ष कि दर से काटे जा रहे हैं। अनुमान है कि दुनिया भर में 1990 से लेकर अब तक 42 करोड़ हेक्टेयर जंगल काट दिए गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र, यह रिपोर्ट हर पांच साल के अंतराल पर प्रकाशित करता है। इस रिपोर्ट को एफएओ ने दुनिया भर के 700 विशेषज्ञों की मदद से तैयार किया है। इस रिपोर्ट में 236 देशों में मौजूद वन सम्पदा को 60 से अधिक कारकों के आधार पर विश्लेषित किया गया है।

दुनिया के करीब एक तिहाई हिस्से पर आज भी जंगल मौजूद हैं, जो पृथ्वी के के करीब 406 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र पर फैले हुए हैं। यदि पृथ्वी पर हर इंसान के हिस्से में देखें तो प्रति व्यक्ति के हिसाब से 0.52 हेक्टेयर जंगल आता है।

दुनिया के आधे से ज्यादा (करीब 54 फीसदी) जंगल केवल पांच देशों- रूस, ब्राजील, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन में हैं। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो दुनिया के करीब 93 फीसदी वन प्राकृतिक रूप से पुनर्जीवित हुए जंगल हैं, जबकि केवल 7 फीसदी को इंसानों द्वारा लगाया गया है। इनमें से यह प्राकृतिक जंगल तो तेजी से कम हो रहें हैं, पर 1990 के बाद से कृत्रिम रूप से लगाए जंगल का क्षेत्र 12.3 करोड़ हेक्टेयर बढ़ गया है।

जंगल न केवल जैव विविधता के पनाहगार है, बल्कि यह इंसान के लिए भी अत्यंत जरुरी हैं। पिछले साल जब अमेजन के जंगल में आग लगी थी तो पूरी दुनिया में हाय-हाय होने लगा था, क्योंकि दुनिया को 20 प्रतिशत ऑक्सीजन इन्हीं वर्षावनों से मिलता है।

कभी अमेजन एक घना जंगल हुआ करता था। इस विशाल जंगल में हजारों जलधाराएं बहा करती थीं। इस जंगल का अपना एक ईकोसिस्टम था। यह अपना खुद का बादल बनाता था और बारिशे भी करता था। एक समय था जंगल में गगनचुंबी पेड़ों के चंदोवे धरती को इस तरह से ढंक लिया करते थे कि जमीन पर सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंच पाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अमेजन के जंगलों में लगने वाली आग की वजह से यह जंगल लगातार सिकुड़ता जा रहा है।

पर्यावरण के लिए जंगल कितने महत्वपूर्ण हैं इसे ऐसे समझा जा सकता है। अमेजन के जंगल को दुनिया का सबसे बड़ा जंगल माना जाता है। विश्व के एक तिहाई मुख्य वन यहां हैं, जो प्रति वर्ष 90 से 140 अरब टन कार्बन सोख रहे हैं। इससे ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने में मदद मिल रही है।
इस जंगल में 30 हजार प्रजाति के वृक्ष हैं। 2.5 हजार किस्म की मछलियां हैं तो वहीं 1.5 हजार किस्म के परिंदे रहते हैं। इसके अलावा इस जंगल में 500 स्तनधारी, 550 सरीसृप और करीब 25 लाख किस्म के कीट पाये जाते हैं। इस जंगल में बीते बीस साल में 2200 नए पौधे और जीव खोजे गए हैं। ये सब हमारे लिए बहुत जरूरी है।

अफ्रीका में तेजी से कम हो रहे हैं जंगल

यदि जंगलों में जारी गिरावट और नए लगाए जा रहे जंगलों के अंतर को देखें तो 2010 के बाद से हर साल करीब 47 लाख हेक्टेयर जंगल खत्म हो रहे है। वन क्षेत्र में होने वाली शुद्ध हानि 1990 से 2000 में प्रति वर्ष 78 लाख हेक्टेयर से घटकर 2000-2010 में 52 लाख हेक्टेयर और 2010-2020 में 47 लाख हेक्टेयर प्रति वर्ष हो गई है। यह नुकसान अफ्रीका फ्रीका में सबसे ज्यादा है।

2010 से 2020 के दौरान यहां सबसे ज्यादा करीब 39 लाख हेक्टेयर जंगलों को नुकसान हुआ, जोकि 1990 के बाद से लगातार जारी है। वहीं दक्षिण अमेरिका में इस अवधि में करीब 26 लाख हेक्टेयर जंगल नष्ट हुए हैं। ओशिनिया में भी नेट फारेस्ट एरिया घट रहा है, जबकि एशिया में शुद्ध वन क्षेत्र बढ़ रहा है। वहां 2000 से 2010 के बीच करीब 24 लाख हेक्टेयर और 2010 से 2020 के दौरान 12 लाख हेक्टेयर कि वृद्धि हुई है।

संरक्षित क्षेत्रों में मौजूद जंगलों में हुआ इजाफा

एफएओ की इस रिपोर्ट में सबसे अच्छी बात यह सामने आयी है कि 1990 के बाद से संरक्षित क्षेत्रों में मौजूद जंगलों में इजाफा हो रहा है। तब से लेकर अब तक इन जंगलों के क्षेत्र में 19.8 करोड़ हेक्टेयर का इजाफा हो चुका है। आज दुनिया के करीब 18 फीसदी जंगल इन संरक्षित क्षेत्रों में ही स्थित हैं।

दुनिया भर के संरक्षित क्षेत्रों में करीब 72.6 करोड़ हेक्टेयर जंगल हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा करीब 31 फीसदी जंगल दक्षिण अमेरिका के संरक्षित में हैं। एफएओ के वरिष्ठ वानिकी अधिकारी एन्सि पेककारिनन ने बताया कि इस बढ़ोतरी का मतलब है कि दुनिया जंगलों के लिए तय ‘आइची लक्ष्य’ को हासिल कर चुकी है। इस लक्ष्य के अंतर्गत 2020 तक 17 फीसदी हिस्से पर जंगलों को बचाने का लक्ष्य रखा गया था।”

(अभिनव,  पर्यावरण विशेषज्ञ हैं। वह लंबे समय से पर्यावरण संरक्षण के लिए करने वाली संस्था के साथ जुड़े हुए हैं। ) 

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