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शीला दीक्षित की मौत का कौन है जिम्मेदार ?

न्यूज डेस्क

दिल्ली में जनवरी माह में विधानसभा चुनाव होना है। आम आदमी पार्टी और बीजेपी चुनाव के लिए अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी हुई है तो वहीं कांग्रेस अंतर्कलह से जूझ रही है। कांग्रेसी नेता आपस में ही उलझे हुए हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित ने अपनी मां की मौत के लिए दिल्ली कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको को जिम्मेदार ठहराया है। दीक्षित ने आरोप लगाया है कि चाको के मानसिक उत्पीड़न से उनकी मां का निधन हुआ है।

गौरतलब है कि 20 जुलाई 2019 को शीला दीक्षित का निधन हो गया था। उनके निधन के ढ़ाई माह बाद उनकी मौत के कारण ने कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी को आरपार की लड़ाई बना डाला है।

संदीप ने पीसी चाको को नोटिस भेजकर मांग की है कि उनकी मां को दिए गए मानसिक उत्पीड़न के लिए चाको माफी मांगे या फिर कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहें।

इतना ही नहीं दीक्षित ने यह भी कहा है कि पीसी चाको के माफी नहीं मांगने की सूरत में चाको के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की भी बात कानूनी नोटिस में लिखी है।

गौरतलब है कि दिल्ली कांग्रेस में शीला दीक्षित के निधन से पहले ही घमासान मचा हुआ था। शीला दीक्षित ने खुद कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी के भीतर चल रही अंदरूनी गुटबाजी पर दुख जताते हुए परेशानी का सबब करार दिया था।

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शीला दीक्षित के लिखे पत्र की राजनीतिक गलियारों में भी खूब चर्चा हुई थी। हालांकि उनका लिखा गया वह कथित आखिरी पत्र अब तक सार्वजनिक नहीं हुआ है।

गौरतलब है कि शीला ने आरोप लगाया था कि प्रभारी पीसी चाको किसी वरिष्ठ नेता के इशारे पर कांग्रेस को कमजोर करने की साजिश रच रहे हैं। शीला के आखिरी दिनों में उनके मानसिक तौर पर परेशान रहने की बात उनके बेटे संदीप दीक्षित सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं।

संदीप दीक्षित ने शीला की मौत के बाद यह बयान भी दिया था कि पार्टी में कुछ लोग ओछी हरकतें कर रहे हैं, जिसका नुकसान भी हुआ। शीला दीक्षित ने मौत से पहले सभी ब्लॉक कमेटियों को भंग करने, तीनों कार्यकारी अध्यक्षों के कार्यभार में फेरबदल और सभी 280 ब्लॉक में आब्जर्वर नियुक्त करने का अहम फैसला लिया था।

शीला दीक्षित का यह फैसला लोकसभा चुनाव की हार पर समीक्षा कमेटी की सिफारिश के आधार पर लिया था। उनके इन अहम फैसलों को प्रभारी पीसी चाको ने अमल में लाने से इन्कार कर दिया था। चाको के फैसले के समर्थन में दो कार्यकारी अध्यक्ष हारून यूसुफ और देवेंद्र यादव नहीं थे। शीला दीक्षित का फैसला पलटने के बाद ही चाको और उनके बीच गहरा गतिरोध सार्वजनिक हो गया था।

सूत्रों के मुताबिक, संदीप दीक्षित के कानूनी नोटिस के बाद वेंटिलेटर पर पड़ी दिल्ली कांग्रेस को बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। पार्टी की अंदरुनी गुटबाजी पर दखल देते हुए आलाकमान ने सख्ती नहीं दिखाई तो प्रदेश कांग्रेस में बड़ी टूट की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

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