राजेन्द्र कुमार
 ब्यूरोक्रेसी में अच्छे और खराब दोनों ही तरह के अफसर होते हैं। आपदाकाल में अच्छे और खराब अफसरों की पहचान होती है। ऐसे समय में अच्छे अफसर तो अच्छा काम करते ही हैं, अधिकांश बदनाम अफसर भी अच्छा काम करने लगते हैं।
ब्यूरोक्रेसी में अच्छे और खराब दोनों ही तरह के अफसर होते हैं। आपदाकाल में अच्छे और खराब अफसरों की पहचान होती है। ऐसे समय में अच्छे अफसर तो अच्छा काम करते ही हैं, अधिकांश बदनाम अफसर भी अच्छा काम करने लगते हैं।
लेकिन कुछ खराब अफसर ऐसे भी होते हैं जिनमें आपदा के समय भी मानवता का भाव नही पनपता। वह जिम्मेदारी से काम करने के बजाय लोगों को राहत पहुँचाने संबंधी कार्यों में अपना स्वार्थ साधने से बाज नही आते। और कुछ ऐसे भी अफसर होते हैं जो बिलावजह भ्रम फैला कर ठीक कार्य कर रहे लोगों के खिलाफ अभियान चलाते हैं।
ऐसे ही खुराफाती अफसरों ने सूबे की फजीहत देशभर में करा दी। हुआ यह कि कोरोना वायरस के खिलाफ जारी अभियान में सरकार ने डाक्टरों पैरामेडिकल स्टाफ और अन्य कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) किट खरीदें का आदेश दिया। तो यूपी मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन ने पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) किट खरीद कर उसे अस्पतालों में भेजने का व्यवस्था की। और सबसे पहले ग्रेटर नोएडा में इंस्ट्रीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (जिम्स) को पीपीई किट भेजी गई।
जिम्स के निदेशक डॉ. विकास गुप्ता और मेरठ मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य के पीपीई किट की गुणवत्ता पर सवाल उठाया और शासन को एक पत्र लिखा। इस पत्र में कारपोरेशन द्वारा आपूर्ति की गई पीपीई किट व अन्य सामग्री को अधोमानक बताया है।
संस्थानों की आपत्ति के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग के महानिदेशक डॉ. केके गुप्ता ने सभी मेडिकल कॉलेज व संस्थानों को पत्र जारी कर कार्पोरेशन द्वारा भेजी गई किट व सामग्री के उपयोग पर रोक लगा दी। इसके साथ ही जल्द से जल्द इन्हें वापस करने के निर्देश भी जारी कर दिया। और भारत सरकार की गाइड लाइन के हिसाब से पीपीई किट व अन्य सामान मंगाने को कहा।

केके गुप्ता के इस एक्शन पर मीडिया ने पीपीई किट खरीद में धांधली होने का समाचार छाप कर देश भर में सूबे की फजीहत करायी। इस पर चिकित्सा शिक्षा विभाग के कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि पूरे मामले की जांच कराई जाएगी। और घटिया पीपीई किट सप्लाई करने वाली कंपनी पर महामारी एक्ट के तहत कार्रवाई की जाएगी।
इसी बीच पता चला कि एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज मेरठ व जीआइएमएस मेडिकल कॉलेज नोएडा में गलती से स्वाइन फ्लू की किट भेज दी गई थी। पीपीई किट खरीद में कोई धांधली नही हुई थी। और यूपी मेडिकल सप्लाई कारपोरेशन लिमिटेड ने प्रदेश भर के सभी ड्रग वेयर हाउस को निर्देश दिए हैं कि वह प्राइम वीयर हाइजीन इंडिया प्रोडक्ट लिमिटेड द्वारा भेजी गई पीपीई किट को अस्पतालों से मंगाकर वेयर हाउस में जमा करवा लें।
इसकी जगह कोरोना वायरस से संक्रमण के बचाव के लिए खरीदी गईं पीपीई किट भेज दें। ऐसे में अब इस मसले को लेकर कई सवाल हो रहें है। पूछा जा रहा है कि स्वाइन फ्लू की किट कैसे इन अस्पतालों को भेजी गई? इसमें किसकी गलती थी? और दो बड़े अस्पतालों के डाक्टर स्वाइन फ्लू की किट और कोरोना से बचाव वाली पीपीई किट में अंतर क्यों नही पहचान सके? और इस मामले में डॉ. केके गुप्ता का लिखा पत्र मीडिया को किसने लीक कर सूबे की फजीहत करायी।
फ़िलहाल इस मामले में सूबे के आला अफसर चुप्पी साधें हैं। दूसरी तरफ डॉ. केके गुप्ता के तमाम कारनामों का ब्यौरा सोशल मीडिया पर दिखाया जाने लगा है।
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