Wednesday - 10 January 2024 - 3:58 AM

कोरोना काल में हो रही आत्महत्याओं का जिम्मेदार कौन?

जुबिली न्यूज डेस्क

कोरोना महामारी ने देश को कितना नुकसान पहुंचाया है इसका हिसाब-किताब आने वाले वक्त में होगा। लेकिन ये तो तय है कि इस महामारी और सरकारी व्यवस्था ने बहुतों की ऐसा जख्म दिया है जिसकी टीस उनके परिजनों को ताउम्र महसूस होगी। कोरोना महामारी और उसकी वजह से हुई तालाबंदी की वजह से जो हालात उपजे हैं उसने लोगों की मुश्किलों को काफी हद तक बढ़ा दिया है। आलम यह है कि कुछ लोगों के लिए जिंदगी से बढ़कर ये मुश्किलें लग रही है, इसीलिए मौत को गले लगाना उनके लिए आसान लग रहा है।

जी हां, कोरोना काल में आत्महत्या के मामले बढ़ गए हैं। काम-धाम ठप होने और आर्थिक मुफलिसी ने लोगों की जिंदगी को मुश्किल बना दिया है।

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भारत में आत्महत्या की दर वैसे भी ग्लोबल एवरेज से 60 प्रतिशत से भी ज़्यादा है। ऐसे में हालात तो पहले ही मुश्किल थे लेकिन कोरोना के बाद बीमारी के जिस भय और जिन आर्थिक विषमताओं का सामना लोगों को करना पड़ा है, उसने कई लोगों को हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया है। अक्सर सुनने को मिल रहा है कि किसी ने हॉस्पिटल की छत से कूदकर जान दे दी तो किसी ने पैसे के अभाव में। ऐसी घटनाएं हर दिन अखबारों की सुर्खिया बन रही हैं।

हाल ही में सुसाइड प्रिवेंशन इंडिया फाउंडेशन (एसपीआईएफ) ने ‘कोविड19 ब्लूज’ नामक ऑनलाइन सर्वे के तहत भारत में काम कर रहे 159 मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारियों और थेरेपी विशेषज्ञों से विस्तृत बातचीत की। मीडिया को सर्वे का नजीता बताते हुए एसपीआईएफ के संस्थापक नेल्सन विनोद मोजेस ने कहा कि कोरोना के बाद से देश में ख़ुद को चोट पहुंचाने (स्लेफ हार्म), अपनी मृत्यु की कामना करने और ख़ुद अपनी जान लेने की प्रवृत्ति कई गुना बढ़ी हुई पाई गई है।

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संस्थापक नेल्सन विनोद मोजेस ने कहा कि सर्वे के नतीजों के अनुसार कोरोना के बाद से तकरीबन 65 प्रतिशत लोगों ने ख़ुद को मारने के बारे में सोचा या ऐसे प्रयास किए। साथ ही तकरीबन 71 प्रतिशत लोगों में कोरोना के बाद मरने की इच्छा बढ़ी हुई पाई गई है।

उन्होंने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारियों ने एसपीआईएफ को यह भी बताया कि अवसाद के शिकार पुराने ठीक हो चुके मरीज दोबारा अवसाद की गिरफ्त में जा रहे हैं। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए मदद मांगने आने वाले मरीजों की संख्या में भी 68 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

कई शहरों में बढ़ा आत्महत्याओं का मामला

कोरोना महामारी और उसके प्रसार को रोकने के लिए हुई तालाबंदी के बाद से देश के कई शहरों में आत्महत्या के मामलों में बढ़ोत्तरी देखी गई है। पिछले महीने मध्य प्रदेश का खंडवा अचानक तब सुखिर्यों में आ गया था, जब स्थानीय पुलिस ने मात्र डेढ़ महीने के अंतराल में यहां आत्महत्याओं में 25 फीसदी की बढ़त दर्ज की।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 1 जून से 16 जुलाई के बीच खंडवा में 47 लोगों ने ख़ुद अपनी जान ली। वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1 जून से 19 जून के बीच जिले में दर्ज हुई 26 आत्महत्याओं ने सभी को चौंका दिया। इस घटना से स्थानीय प्रशासन भी चौकन्ना हुआ और आनन-फानन में प्रशान ने मानसिक तनाव से जूझ रहे लोगों के लिए ‘पुलिस मित्र’ नाम से एक हेल्प लाइन शुरू की।

ऐसा ही कुछ पंजाब के लुधियाना शहर में देखने को मिला। लुधियाना पुलिस की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक तालाबंदी के

बाद अप्रैल-मई और जून के महीनों में जिले में आत्महत्या दर में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस दौरान हुई 76 आत्महत्याओं के लिए पुलिस ने अवसाद के साथ-साथ घरेलू कलह और आर्थिक विषमताओं को भी प्रमुख कारण बताया।

जिले के पुलिस आयुक्त राकेश अग्रवाल के मुताबिक तालाबंदी खुलने के बाद से हालात में सुधार हो रहा है। उन्होंने कहा कि “कोरना और तालाबंदी ने यहां सभी के जीवन को गहरे तक प्रभावित किया है, लेकिन लोगों की मदद के लिए हमने पुलिस का हेल्पलाइन नंबर शुरू किया है और धीरे-धीरे चीजों के वापस नॉर्मल होने की उम्मीद है।”

हर चार मिनट में एक अनुमानित आत्महत्या

भारत में आत्महत्या के आंकड़े हमेशा से चौकाने वाले रहे हैं, पर कोरोना काल में इसमें इजाफा हो गया है। 2019 में अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्था ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज’ की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर साल 2.3 लाख लोग आत्महत्या कर रहे हैं। जिसका मतलब है कि हर चार मिनट में एक व्यक्ति अपनी जान ले रहा है।

वहीं, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने अपने सरकारी आंकड़ों में 3.6 प्रतिशत की बढ़त दर्ज करते हुए बताया कि 2018 में देश में 1 लाख 34 हजार 516 लोगों ने ख़ुद अपनी जान ली है, जबकि 2017 में यह आंकड़ा 1 लाख 29 हजार 887 था।

भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ से जूझ रहे लोगों की संख्या बढऩे की आशंका जताई जा रही है। हालांकि इस मामले में अभी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कोई ठोस बयान जारी नहीं किया गया है, लेकिन विश्व के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे शोध अवसाद और आत्महत्याओं के बढ़ते मामलों पर कोरोना के संभावित असर को दर्ज करते हैं।

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