जुबिली स्पेशल डेस्क
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का हर कदम चर्चा का विषय बन जाता है — चाहे वो किसी बयान का लहजा हो या किसी नेता के घर जाना। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार छठ पर्व के मौके पर एलजेपी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान के घर पहुंचे।
चिराग के घर पहुंचे नीतीश
नीतीश कुमार के अचानक पहुंचे दौरे ने सबको चौंका दिया।खरना के दिन मुख्यमंत्री चिराग पासवान के आवास पर पहुंचे, प्रसाद ग्रहण किया और परिवार से मुलाकात की। चिराग ने भी सोशल मीडिया पर तस्वीरें साझा करते हुए लिखा“धन्यवाद माननीय मुख्यमंत्री जी जो आज आप मेरे आवास पर आए और मेरे परिवार के सदस्यों से मुलाकात कर छठ महापर्व की शुभकामनाएं दीं।”यह मुलाकात जितनी शालीन दिखी, उतनी ही सियासी सरगर्मी भी बढ़ा गई।

2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने नीतीश कुमार को सीधी चुनौती दी थी। तब एलजेपी ने एनडीए से अलग होकर कई सीटों पर जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ प्रत्याशी उतारे थे। उस समय नीतीश और चिराग के रिश्ते काफी तनावपूर्ण हो गए थे।लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है एनडीए में इस बार एलजेपी (रामविलास) को 29 सीटें दी गई हैं और चिराग ने साफ कहा है:“मैं प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश कुमार दोनों से खुश हूं, मेरे पास असंतोष का कोई कारण नहीं है।”
हाल ही में समस्तीपुर की रैली में भी दोनों नेताओं के बीच गर्मजोशी देखने को मिली। मंच पर जैसे ही नीतीश पहुंचे, चिराग झुककर उनके पैर छूते नजर आए।
नीतीश ने मुस्कराकर कहा —“क्या जी… हम तो ऐसे ही दर्शन करने चले आए।”यह संवाद अब बिहार की सियासत में नया संकेत माना जा रहा है।
क्या नीतीश को अब भी ‘चिराग’ से डर है?
2020 की तुलना में हालात बिल्कुल अलग हैं।
अब चिराग न सिर्फ एनडीए के साथ हैं, बल्कि नीतीश के खिलाफ कोई अलग मोर्चा भी नहीं बना रहे।
फिर भी, नीतीश का खुद चलकर उनके घर पहुंचना एक बड़ा संकेत माना जा रहा है।
क्या नीतीश कुमार चिराग को भविष्य का साथी नहीं, बल्कि संभावित उत्तराधिकारी के तौर पर देख रहे हैं?
बीजेपी की रणनीति और नीतीश का संतुलन
भले ही सीट बंटवारे में जेडीयू को 101 सीटें मिली हों, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के हालिया दौरे में नीतीश कुमार के प्रति स्पष्ट समर्थन देखने को मिला।भाजपा भी जानती है कि बिहार में चुनाव जीतने का सबसे स्थिर रास्ता नीतीश कुमार के नेतृत्व से होकर ही गुजरता है।
नीतीश कुमार और चिराग पासवान की मुलाकात भले छठ के बहाने हुई हो,पर इसका सियासी संदेश बहुत गहरा है।2020 की तल्खी अब “संकेतों की मिठास” में बदल रही है और बिहार की राजनीति एक बार फिर पूछ रही है:
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