Saturday - 15 November 2025 - 8:13 PM

क्या है महाराष्ट्र और एमपी का फॉर्मूला? जिसकी चर्चा बिहार में तेज है

जुबिली स्पेशल डेस्क

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और इस बार बीजेपी ने दमदार प्रदर्शन करते हुए सभी को चौंका दिया है। पार्टी ने 89 सीटें जीतकर आरजेडी की ‘लालटेन’ को लगभग बुझा दिया है। वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपनी राजनीतिक पकड़ साबित करते हुए 85 सीटों पर जीत दर्ज की है।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि नई सरकार का नेतृत्व कौन करेगा। हालांकि नीतीश कुमार का नाम स्वाभाविक तौर पर सबसे आगे माना जा रहा है, लेकिन बिहार में बीजेपी लंबे समय से अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहती रही है।

मौजूदा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद बीजेपी के स्थानीय नेता भी इस मुद्दे पर अपने विकल्पों और रणनीतियों पर गंभीरता से चर्चा कर रहे हैं। अगले कुछ दिनों में होने वाली एनडीए की बैठकों में साफ़ होगा कि बिहार की सत्ता की कमान किसके हाथ में जाएगी।

बिहार के नए राजनीतिक गणित में कई संभावनाएँ उभरकर सामने आ रही हैं। मौजूदा परिस्थितियों में तीन ऐसे विकल्प हैं, जिनके सफल होने की संभावना ज़्यादा मानी जा रही है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि बीएसपी और आईआईपी को बीजेपी के समर्थन की संभावित धारा में देखा जा रहा है, क्योंकि पिछली विधानसभा में भी बीएसपी का एकमात्र विधायक सत्ता पक्ष में शामिल हो गया था।

पहला विकल्प: छोटे दलों में सेंध

लेफ्ट और AIMIM को तोड़ने की बात theoretically संभव है, लेकिन बेहद कठिन मानी जा रही है।

लेफ्ट पार्टियाँ अपनी विचारधारा के प्रति दृढ़ होती हैं, इसलिए इनके विधायकों को अपने पाले में लाना बेहद मुश्किल है।

AIMIM अपेक्षाकृत आसान लक्ष्य मानी जाती है, लेकिन इस बार उसके विधायकों को प्रभावित करना भी उतना सरल नहीं लग रहा है।

छोटे दलों के कुछ विधायकों का पाला बदलना भारतीय राजनीति में असामान्य नहीं है, लेकिन फिलहाल यह विकल्प कमज़ोर माना जा रहा है।

दूसरा विकल्प: कांग्रेस में टूट

कांग्रेस के पास केवल 6 विधायक हैं, और संख्या कम होने के कारण इस दल में सेंध लगाना तुलनात्मक रूप से आसान माना जा रहा है।
कुछ विधायकों के इस्तीफे या समर्थन परिवर्तन से राजनीतिक गणित तेजी से बदल सकता है।

तीसरा विकल्प: जेडीयू या आरजेडी में हलचल

जेडीयू और आरजेडी को प्रत्यक्ष तौर पर तोड़ना लगभग असंभव है, लेकिन
कुछ विधायकों के इस्तीफे या अनुपस्थित रहने से विधानसभा की कुल संख्या कम हो सकती है, जिससे बहुमत का आंकड़ा भी नीचे आ जाएगा।
यह वही मॉडल है जिसका उपयोग कुछ अन्य राज्यों में पूर्व में देखा गया है। इस तरह सरकार गठन आसान बन सकता है।

क्या ये विकल्प वास्तविक रूप से संभव हैं?

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार दूसरा और तीसरा विकल्प अधिक व्यावहारिक माने जा रहे हैं।
हालाँकि, इसमें सबसे बड़ा पेच यह है कि केंद्र की सरकार जेडीयू के समर्थन पर टिकी है, जिसके कारण बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व किसी भी जोखिमभरी कार्रवाई को तुरंत हरी झंडी देने के मूड में नहीं दिखता।
लेकिन यह भी सच है कि बीजेपी नीतीश कुमार को नियंत्रित रखने की रणनीति पर जरूर कायम रहेगी।

महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश मॉडल क्या है?

महाराष्ट्र 2019 में पूर्ण बहुमत न मिलने के बावजूद बीजेपी ने बाद में शिवसेना और NCP के अलग-अलग गुटों के सहयोग से सत्ता समीकरण बदले।

मध्य प्रदेश 2018 में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी, लेकिन बाद में विधायकों के इस्तीफों और पुनर्संरेखण के बाद सत्ता परिवर्तन हो गया।

भारतीय राजनीति में यह कोई नया अध्याय नहीं है बीजेपी हो या कांग्रेस, दोनों ही दल विभिन्न समयों में ऐसी रणनीतियों का हिस्सा रह चुके हैं।

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