Friday - 1 August 2025 - 3:19 PM

उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025: बीजेपी के दिग्गज नेताओं को बड़ा झटका

जुबिली न्यूज डेस्क 

उत्तराखंड में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 के नतीजे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए चौंकाने वाले साबित हुए हैं। चुनाव में बीजेपी समर्थित उम्मीदवारों की करारी हार ने पार्टी की जड़ों को हिला दिया है। हैरानी की बात यह है कि जिन नेताओं के परिवार के सदस्य मैदान में थे, उनमें से अधिकतर को हार का सामना करना पड़ा है।

लैंसडाउन विधायक दिलीप रावत की पत्नी की हार

पौड़ी जिले से बीजेपी विधायक दिलीप रावत की पत्नी नीतू देवी को जिला पंचायत सदस्य पद के चुनाव में 411 वोटों से हार मिली। चुनाव जीतने पर उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने की योजना थी, लेकिन परिणाम ने रावत परिवार और बीजेपी—दोनों को बड़ा झटका दिया है।

सल्ट विधायक महेश जीना के बेटे की हार

अल्मोड़ा जिले के स्याल्दे ब्लॉक में विधायक महेश जीना के बेटे करन जीना को 50 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। उन्हें ब्लॉक प्रमुख पद का दावेदार माना जा रहा था। इस हार ने 2027 के विधानसभा चुनाव में महेश जीना की संभावनाओं पर भी असर डाल दिया है।

नैनीताल विधायक सरिता आर्या के बेटे को कांग्रेस समर्थित यशपाल आर्य ने 1200 वोटों से हराया। सरिता आर्या 2022 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आई थीं, लेकिन अब उनके बेटे की हार से उनकी राजनीतिक स्थिति पर भी सवाल उठने लगे हैं।

अल्मोड़ा: पति-पत्नी दोनों चुनाव हारे

भैसियाछाना ब्लॉक, अल्मोड़ा में बीजेपी अनुसूचित जाति मोर्चा के मंडल अध्यक्ष संतोष कुमार राम को 267 वोटों से और उनकी पत्नी पूजा देवी को तीसरा स्थान मिला। एक ही परिवार से दोनों की हार ने स्थानीय स्तर पर बीजेपी की स्थिति को कमजोर किया है।

चमोली में पूर्व मंत्री की पत्नी को हार

पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र भंडारी की पत्नी और निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष रजनी भंडारी को रानों वार्ड से चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। ये हार भी पार्टी के लिए अप्रत्याशित और शर्मनाक मानी जा रही है।

नैनीताल में भी बड़ा झटका

रामड़ी आन सिंह सीट, नैनीताल से बीजेपी प्रत्याशी और निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष बेला तोलिया को निर्दलीय उम्मीदवार छवि बोरा कांडपाल ने 2000 से अधिक वोटों से हरा दिया। यह सीट बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी हुई थी, लेकिन हार ने गहरे घाव दिए हैं।

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चुनाव नतीजों से क्या संकेत मिलते हैं?

इन परिणामों से यह स्पष्ट है कि स्थानीय स्तर पर बीजेपी की पकड़ कमजोर हो रही है। जहां एक ओर कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार जीत रहे हैं, वहीं निर्दलीयों की बढ़ती ताकत ने भी संकेत दिए हैं कि जनता अब पुराने चेहरों या पार्टी झंडे से ज्यादा स्थानीय काम और छवि को तरजीह दे रही है।

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