Thursday - 18 January 2024 - 12:04 AM

संकटकाल में योगी सरकार का तीसरे यूटर्न की वजह बने प्रवासी मजदूर

जुबिली न्यूज डेस्क

पहले संदेश फिर आदेश और उसके बाद अपने फैसलों से यूटर्न। बीते कुछ दिनों से  यूपी की योगी सरकार कुछ ऐसे ही चलते दिखाई दे रही है।

ताजा मामला प्रवासी मजदूरों से जुड़ा हुआ है जिनके बारे में अभी कुछ दिनों पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि अब यूपी से बाहर जाने वाले मजदूरों को राज्य से एनओसी लेनी पड़ेगी।

योगी सरकार के इस फैसले के बाद खूब राजनीति हुई । उत्तर भारतियों के खिलाफ महाराष्ट्र में हमेशा मोर्चा खोले रहने वाले राज ठाकरे ने भी इस पर बयान जारी कर कहा कि अगर यूपी के कामगार मुंबई आएंगे तो उनका भी रिकार्ड रखा जाएगा। कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को जोर शोर से उठाते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया।

कांग्रेस का सवाल था कि क्या अपने ही देश में कहीं काम के लिए जाने पर इस तरफ के प्रतिबंध जायज होंगे। सियासत तेज हुई तो सरकार को भी इसका एहसास हुआ।

यूपी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि सरकार अब इस नियम से पीछे हट गई है और “ माईग्रेशन कमीशन” में इस तरह  का कोई नियम नहीं लाया जाएगा।

हालकि इस बात पर अधिकारी साफ तौर पर कुछ बोलने से बच रहे हैं मगर विश्वसनीय सूत्रों ने साफ कर दिया है कि अब ये प्रस्ताव व्यवहार और नियम में नहीं लाया जाएगा।

ये पहली बार नहीं है जब सरकार किसी विवादास्पद मुद्दे पर कदम पीछे खींच रही है।

बीते दिनों अफसरों ने एक निर्देश जारी करके आईसोलेशन में रहने वाले लोगों के पास मोबाईल फोन को प्रतिबंधित कर दिया था। तब सरकार ने कहा था कि मोबाईल फोन से कोरोना संक्रमण फैल सकता है। इस पर जब बवाल मचा तो अगले ही दिन इस आदेश को संशोधित कर दिया गया।

ऐसा ही विवाद सरकार द्वारा लेबर ला में परिवर्तन करने पर उठा था। श्रमिक संगठनों से ले कर राजनीतिक दलों ने सरकार पर श्रमिक विरोधी होने का आरोप लगाया। आरएसएस के मजदूर संगठन ने तो इसके खिलाफ़ संगठित रूप से विरोध भी किया ।

सरकार ने अपने कदम यहाँ भी पीछे खींचे और अब कहा जा रहा है कि ये कानून पुराने उद्योगों पर लागू नहीं होंगे, सिर्फ नए उद्योगों को कुछ समय के लिए छूट दी जाएगा।

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विश्लेषकों का कहना है कि इस तरफ के फैसले अफसरों की एक टीम कर रही है जो राजनीतिक रूप से सरकार के लिए मुश्किलें पैदा कर देती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी फिलहाल अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों की बजाए अफसरों के राय को ज्यादा महत्व दे रहे हैं , इसलिए राजनीतिक लड़ाई में उन्हे कई बार बैकफुट पर आना पड़ रहा है।

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