जुबिली स्पेशल डेस्क
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर सुनवाई जारी है।
याचिकाकर्ताओं ने इस प्रक्रिया में गंभीर गड़बड़ियों का आरोप लगाते हुए इसे चुनौती दी है। उनका कहना है कि वर्ष 2003 की मतदाता सूची में शामिल करीब 5 करोड़ लोगों की दोबारा जांच की जा रही है, जबकि इसके लिए केवल कुछ महीनों का समय दिया गया है।
सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत को बताया कि इतने बड़े पैमाने पर पुनरीक्षण से लोगों को वोटिंग अधिकार से वंचित किया जा सकता है।
इस पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच ने आश्वासन दिया कि यदि सितंबर तक यह साबित हो जाता है कि प्रक्रिया अवैध है, तो इसे तत्काल रोक दिया जाएगा। कोर्ट ने कहा, “अगर 5 करोड़ लोगों को सूची से बाहर कर दिया गया, तो हम दखल देंगे। जरूरत पड़ी तो लगातार सुनवाई करेंगे।”
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नागरिकता तय करने के नियम संसद बनाती है और मौजूदा नियमों का पालन करना आवश्यक है। वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने दलील दी कि इस तरह की प्रक्रियाएं खासकर गरीब और हाशिए पर मौजूद लोगों को मतदाता सूची से बाहर करने का सबसे आसान तरीका बन सकती हैं।
उन्होंने बताया कि बड़ी संख्या में महिलाओं को ‘स्थानांतरित’ बताकर सूची से हटाया जा रहा है, जबकि पुरुषों का पलायन अधिक होता है।
योगेंद्र यादव ने अदालत में दो लोगों को भी पेश किया, जिन्हें ड्राफ्ट सूची में मृत घोषित किया गया था। हालांकि, चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने इन दावों का विरोध करते हुए कहा कि यह मुद्दा अदालत में कानूनी बहस से अधिक मीडिया में प्रचार का विषय बनाया जा रहा है। अदालत ने भी कहा कि ड्राफ्ट सूची से नाम हटने का मतलब यह नहीं है कि वह फाइनल सूची में वापस नहीं आ सकता।