Thursday - 11 January 2024 - 6:07 PM

…तो नंदीग्राम तय करेगा पश्चिम बंगाल की राजनीति की दशा-दिशा

जुबिली न्यूज डेस्क

यूं तो देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहा है लेकिन चर्चा में सिर्फ और सिर्फ पश्चिम बंगाल का चुनाव है। बंगाल की हर राजनीतिक गतिविधि पर राजनीतिक पंडितों के साथ-साथ आम लोगों की नजरें बनी हुईं हैं।

यूं तो एक अप्रैल को दूसरे दौर में भी जंगलमहल इलाके की बाकी बची 30 सीटों के लिए वोटिंग होनी है लेकिन इनमें सबसे ज्यादा चर्चा पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम सीट की ही है।

जाहिर है चर्चा तो होगी ही क्योंकि यहां से मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही टीएमसी की उम्मीदवार हैं और तो और उनका मुकाबला भाजपा उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी से है जो भाजपा में शामिल होने से पहले ममता के सबसे करीबी रहे थे।

राजनीतिक पंडितों की माने तो नंदीग्राम सीट का नतीजा बंगाल ही नहीं बल्कि पूरे देश की राजनीति पर दूरगामी असर डाल सकता है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी रविवार शाम से ही यहां डेरा डाले हुए हैं।

फिलहाल ममता एक अप्रैल को मतदान खत्म होने तक वहीं रहेंगी। 10 मार्च को नामांकन पत्र दायर करने के बाद एक हादसे में घायल ममता बनर्जी रविवार शाम पहली बार नंदीग्राम पहुंचीं और वहां एक रैली को संबोधित किया।

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मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस इलाके में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। सोमवार को उन्होंने आठ किमी लंबी पदयात्रा के साथ ही दो रैलियां भी की।

वहीं बीजेपी ने भी इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। दरअसल इस सीट से जितना प्रतिष्ठïा भाजपा की जुड़ी हुई है उतनी ही शुभेन्दु की।

शुभेंदु पहले ही एलान कर चुके हैं कि अगर उन्होंने ममता बनर्जी को कम से कम पचास हजार वोटों के अंतर से नही हराया तो राजनीति से संन्यास ले लेंगे। इसीलिए बीजेपी ने भी इलाके में पूरी ताकत झोंक दी है।

प्रधानमंत्री मोदी से लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और बीजेपी प्रमुख जे.पी.नड्डा से लेकर पार्टी के तमाम नेता और अभिनेता इलाके में चुनावी सभाएं कर चुके हैं। चुनाव प्रचार के आखिरी दिन मंगलवार को अमित शाह एक बार फिर इस इलाके में रोड शो करेंगे।

फिलहाल यह कहना गलत नहीं होगा कि नंदीग्राम सीट राज्य विधानसभा चुनाव में सबसे हाई प्रोफाइल सीट बन गई है।

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दरअसल पिछले कुछ सालों से पश्चिम बंगाल राजनीति का केंद्र बनता हुआ दिख रहा है। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा, बंगाल केंद्र में रहा है।

2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद से भाजपा का राज्यों में तेजी से विस्तार हुआ है। पश्चिम बंगाल में भी अपने पांव मजबूत करने के लिए भाजपा लंबे समय से मेहनत कर रही है, लेकिन यहां भाजपा को ममता बनर्जी से तगड़ी चुनौती मिलती रही है। लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनावों में भाजपा की भारी-भरकम टीम को अकेले ममता ने कड़ी टक्कर दी है।

इस बार भी बंगाल के विधानसभा चुनाव मैदान में भाजपा का पूरा कुनबा डेरा डाले हुए हैं। प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री, मुख्यमंत्री व पार्टी पदाधिकारी ममता को हराने के लिए बंगाल का दौरा पिछले चार माह से कर रहे हैं। कई मंत्री, पदाधिकारी तो डेरा ही डाले हुए हैं। इतनी मेहनत के बावजूद भाजपा के लिए ममता बनर्जी का किला ढ़हाना आसान नहीं है।

भले ही भाजपा जीत के दावे कर रही हो लेकिन राजनीतिक पंडितों और ग्राउंड लेवल पर काम करने वालों का कहना है कि जीत के दावे करना भाजपा की पुरानी रणनीति है। वह इसी रणनीति पर बंगाल में काम कर रही है कि वह जीत रही है।

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नंदीग्राम का राजनीतिक समीकरण

नंदीग्राम सीट पर जीत को लेकर जितनी आशान्वित बीजेपी है उतनी ही टीएमसी। जहां भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं, “शुभेंदु अधिकारी इस सीट पर ममता बनर्जी को आसानी से पराजित कर देंगे। ममता को खुद भी यहां जीत की उम्मीद नहीं है।” तो वहीं तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि शुभेंदु अधिकारी ने ममता को सिर्फ नंदीग्राम से लडऩे की चुनौती दी थी। उनकी चुनौती स्वीकार कर ममता बनर्जी ने आधी लड़ाई तो पहले ही जीत ली है। यह ममता का मास्टरस्ट्रोक साबित होगा।

टीएमसी नेताओं के मुताबिक मुख्यमंत्री ममता के सत्ता में पहुंचने का रास्ता नंदीग्राम में हुए अधिग्रहण विरोधी आंदोलन से ही निकला था। वह अपने चुनाव अभियान के दौरान नंदीग्राम के लोगों से भावनात्मक संबंध मजबूत करने में कामयाब रही हैं। ममता ने नंदीग्राम में वर्ष 2007 में हुए आंदोलन को मौजूदा किसान आंदोलन से भी जोड़ दिया है।

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वहीं राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नंदीग्राम में 12 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं। यहां पीरजादा अब्बासी के नेतृत्व वाले इंडियन सेक्यूलर फ्रंट (आईएसएफ) का कोई उम्मीदवार नहीं है। इस वजह से अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध की आशंका बहुत कम है। इसके अलावा ममता ने इलाके में रहने के लिए हिंदू-बहुल इलाके को चुना है और नियमित रूप से मंदिरों में जाती रही हैं। इससे वे यह संदेश देने में कामयाब रही हैं किवे हिंदू विरोधी नहीं हैं जैसा कि बीजेपी उन पर आरोप लगाती रही है।

एक और बड़ी वजह है ममता के जीतने की। लेफ्ट ने यहां एक कमजोर उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। वरिष्ठï पत्रकार सुरेन्द्र दुबे कहते हैं, “लेफ्ट ने इसके जरिए यह संदेश देने की कोशिश की है वह नंदीग्राम में ममता की हार नहीं चाहती। उसके लिए टीएमसी से बड़ी दुश्मन बीजेपी है। किसान आंदोलन के नेता भी बीजेपी के खिलाफ नंदीग्राम में महापंचायत का आयोजन कर भगवा पार्टी को वोट नहीं देने की अपील कर चुके हैं।”

लेकिन इसके इतर ममता के खिलाफ भी कई चीजें हैं। मसलन इलाके में रोजगार के अवसर और विकास नहीं होना। भाजपा ममता के खिलाफ इन मुद्दों पर ही ज्यादा जोर दे रही है। भाजपा प्रत्याशी शुभेंदु को स्थानीय होने का लाभ मिल सकता है। वे ममता पर लगातार बाहरी होने के आरोप लगाते रहे हैं।

फिलहाल किसके दावों में कितना दम है यह तो 2 मई को पता चलेगा लेकिन एक बात तो तय है कि नंदीग्राम की जीत या हार ममता और भाजपा के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

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