Sunday - 7 January 2024 - 11:56 AM

आर्थिक मंदी की आहट से उबरने का उतावलापन है बजट 2019-20

योगेश बंधु

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की आर्थिक नीतियो को बहुत सफल नही कहा जा सकता इस बात की पुष्टि ख़ुद सरकार द्वारा कल सदन में प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण से किया जा सकता है , जिसके मुताबिक 2014 के बाद से औसत विकास दर 7.5% थी जो पिछले साल ये कम होकर 6.8% रहगई है।

आर्थिक सर्वेक्षण में इस साल देश की आर्थिक विकास दर का अनुमान भी 7% ही रखा गया है। जबकि अगर भारत को 2024-25 तक 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है, तो 8% की विकास दर की जरूरत होगी। कृषि क्षेत्र में धीमापन और सर्विस सेक्टर की ग्रोथ में गिरावटविकास दर ना बढ़ने की अहम वजहों में एक है. इसके अलावा वित्तीय संस्थानों की खराब हालत भी आर्थिक विकास की रफ्तार में बड़ी रुकावट रहीहै। सर्वे में कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के सहयोग से देशभर में पर्याप्त निजी निवेश लाना वास्तवकि चुनौती है। ऐसे में 5 ट्रिलियन डॉलरइकोनॉमी का लक्ष्य पाने और आठ फीसदी विकास दर हासिल करने के लिए न सिर्फ सरकार को नीतिगत परिवर्तन करने होंगे, बल्कि नए विजन केसाथ चुनौतियों से भी पार पाना होगा।

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बजट प्रस्तुत करते समय सरकार के समक्ष एक तरफ आर्थिक वृद्धि की दर को गति देने और राजकोषीय स्थिति को मजबूत बनाने की चुनौती थी तो दूसरी तरफ चुनावों में जनता से किये गये वादों को पूरा की नैतिक ज़िम्मेदारी भी थी।

बजट के शुरुआत में ही वित्तमंत्री ने बताया कि 2014 में जब हम सत्ता में आए थे तब हमारी अर्थव्यवस्था 1.85 ट्रिलियन डॉलर की थी जो 2019 में2.70 ट्रिलियन डॉलर हो गया और इस साल के आखिर तक इसके 3 ट्रिलियन डॉलर इकॉनोमी बनने का अनुमान है।

5 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था तक पहुंचने के लिए अपनी कार्य योजना एक तीन मुख्य बिंदू बताए- पहला- बुनियादी ढांचे में भारी निवेश, दूसरा- डिजिटल अर्थव्यवस्था, तीसरा- रोज़गार निर्माण और लोगों की आशा, विश्वास और आकांक्षाएं।

सरकार के लिए जहाँ एक ओर बढ़ते राजकोषीय घाटे की चिंताए है तो वही कुछ उत्साहित करने वाली उपलब्धियाँ भी हैं। देश में प्रत्यक्ष कर संग्रह में78 प्रतिशत की बढ़ोत्‍तरी हुई है तहा यह वर्तमान में 6.38 लाख करोड़ से बढ़कर 11.37 लाख करोड़ हो गया है, इसी प्रकार भारत पर विदेशीऋण जीडीपी के 5 फीसदी से कम हो गया है। बैंकों के एनपीए में भी 1 लाख करोड़ रुपए की गिरावट हुई है। आईबीसी और अन्य कदमों के चलतेभी सरकार को 4 लाख करोड़ की रिकॉर्ड वसूली हुई है।

आयकर के डरो को स्थिर रखते हुए बजट में एक तरफ़, 2022 तक सबके लिए घर और पीएम आवास योजना के तहत 1.95 करोड़ आवासों केनिर्माण को मंजूरी, छोटे दुकानदारों को पेंशन, प्रत्येक ग्रामीण परिवार में बिजली का कनेक्शन और स्वच्छ ईधन आधारित रसोई प्रधानमंत्री ग्रामसड़क योजना के तहत 80,250 करोड़ रुपए की लागत से सडके ऐसे उपाय है।

जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देंगे लेकिन वही दूसरी तरफ़ जहाँ 2से 7 करोड़ की आय पर अतिरिक्त कर, बैंक अकाउंट से 1 करोड़ रुपए से ज्‍यादा पैसा निकालने पर 2% टीडीएस, 400 करोड़ तक की कंपनियोंको 25% कर दायरे में लाने से सरकार की आय में वृद्धि होगी वही पेट्रोल डीजल पर अतिरिक्‍त उत्पाद शुल्क, सड़क संरचना उपकर के रूप में 1 रुपए की बढ़ोत्तरी, सोना-चांदी के आयात पर कस्टम ड्यूटी में 2% की वृद्धि, पेट्रोल और डीजल पर 1 रुपए का सेस आदि बजट के ऐसे उपाय है जो बिना अहसास कराए सीधे सीधे आम आदमी की जेब को ढीला करेंगे।

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वर्तमान सरकार ने पानी के लिए जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया है जिसका प्रमुख लक्ष्य वर्ष 2024 तक हर घर तक जल पहुंचाने का है। इसकेलिए 1,592 ब्लॉक की पहचान की गई है। सरकार द्वारा जल के लिए एक नेशनल ग्रीड की बात भी की जा रही है, जो इजराइल से प्रभावित लगती है, लेकिन भारत जैसे बड़े देश में इसके पर्यावरण सहित तमाम विवादित पहलू हैं ।

सरकार के प्रमुख लक्ष्यों में भारत को मोस्ट फेवरेट FDI देश बना भी है। जिसके लिए बीमा ब्रोकरों को 100 प्रतिशत एफडीआई मंजूरी का प्रस्ताव है, इससे बीमा की पहुंच वर्तमान 3.4 प्रतिशत आबादी दे बढ़ाने की सम्भावना है, लेकिन वित्तीय क्षेत्र में अनियमितताओ पर लगाम लगाने की ज़रूरत भी होगी।

इसके अलावा सरकार ने मीडिया, विमानन और एकल ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नियमों को उदार करने का प्रस्तावकिया है। बीते वित्त वर्ष में देश में 64.37 अरब डॉलर का एफडीआई आया, जो पिछले वित्त वर्ष से केवल छह प्रतिशत अधिक है। जिसे बहुतउत्साहजनक नही कहा जा सकता।

सरकार नई शिक्षा नीति लाने के साथ साथ उच्च शिक्षा के लिए 400 करोड़ ख़र्च करने का प्रस्ताव है, जिसमें राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान के निर्माण के साथ कई अन्य प्रस्ताव भी है जो स्वागत योग्य है।

एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर में भी निवेश, दलहन के मामले में देश आत्मनिर्भरता और डेयरी व्यवसाय को बढ़ावा देना सर्वथा स्वागत योग्य है, लेकिन ऐसेसमय में जब देश में पहले से ही लाखों सहकारी समितियाँ कार्य का रही है तो 10 हजार नए किसान उत्पादक संघ बनाने का प्रस्ताव अटपटा लगता है।

पेट्रोल डीजल पर अतिरिक्‍त उत्पाद शुल्क, सड़क संरचना उपकर के रूप में 1 रुपए की बढ़ोत्तरी, सोना-चांदी के आयात पर कस्टम ड्यूटी में 2% की वृद्धि, पेट्रोल और डीजल पर 1 रुपए का सेस आदि बजट के ऐसे उपाय है जो बिना अहसास राए सीधे सीधे आम आदमी की जेब को ढीला करेंगे।

बैंकों की स्थिति में सुधार लाने के सरकार के प्रयासों से बैंकों की ऋण वृद्धि 13.8 प्रतिशत तक पहुंच गई। अंतरास्ट्रीय बेसल-3 मानकों के अनुसार पूँजी पर्यातता मानक को पूरा करने के लिए देश के बैंकों को 5 लाख करोड़ रुपए की ज़रूरत है, जिसे सरकारी पिछले बजटों में आवंटित करती रही है। इसके अलावा भी एनबीएफसी के लिए सरकार द्वारा अतिरिक्त वित्त की व्यवस्था और बैंकों को 70,000 करोड़ रुपये की पूंजी उपलब्ध कराने काप्रस्ताव , बैंकों की स्थिरता और विकास को बढ़ावा देंगे।

इस तरह कहा जा सकता है कि सरकार को इस बात का पूरा अहसास है कि आर्थिक मोर्चे पर ज़रा सी लापरवाही देश को मंदी की तरफ़ धकेल सकती है, इसलिए सरकार ने कम समय में वर्तमान वित्त वर्ष के बचे हुए काल के लिए अपनी ओर से भरपूर कोशिश की है, लेकिन इससे तत्काल कोई परिवर्तन होता दिखाई नही देता। इससे बेहतर होता अगर सरकार अर्थव्यवस्था के चुने हुए क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती और आने वाले 5 वर्षों के लीय दीर्घकालीन रणनीति बनाती।

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