स्पेशल डेस्क
लखनऊ। सरकारी नौकरी की चाहत हर किसी को होती है। इतना ही नहीं मौजूदा समय में पढ़े-लिखे नौजवान भी सरकारी नौकरी की ललक में कोई भी पद हासिल करने के लिए तैयार हो जाते हैं। आलम तो यह है कि सरकारी नौकरी अगर किसी स्नातक को चपरासी की भी मिल जाये तो वह हंसी-खुशी हासिल कर लेता है लेकिन कुछ लोग सरकार को गलत जानकारी देकर सरकारी पद जा बैठते हैं।

जाति की आड़ में दी जाती है गलत सूचना
कुछ लोग सरकारी नौकरी पाने के लिए अक्सर सरकार को गलत सूचना देने में माहिर होते हैं। पहले सरकारी नौकरी हासिल करने के लिए जाति का गलत इस्तेमाल करना कोई नई बात नहीं थी। यूपी के नागरिक सुरक्षा अनुभाग में ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसमें सहायक उपनियंत्रक के पद पर तैनात छींतर लाल मीणा ने साल 1990 में नौकरी हासिल करने के लिए सरकार को अंधेरे में रखा है। बरसों नौकरी करने के बाद अब पता चला है कि छींतर लाल मीणा जिस जाति की आड़ में खुद को अनुसूचित जनजाति का बताकर नौकरी हासिल की वह यूपी में अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं है। इसके बाद लम्बी जांच के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया है।

मीणा जाति होकर कैसे मिली यूपी में नौकरी
बता दें कि छींतर लाल मीणा जाति से आते हैं जो कि राजस्थान की अनुसूचित जाति से आते हैं जबकि यूपी में पांच अनुसूचित जनजाति है जिसमें भोटिया, बुक्सा, जौनसारी, राजी और थारू शामिल है। ऐसे में मीणा जनजाति उत्तर प्रदेश राज्य के लिए चिन्हित नहीं है। शासनादेश में मीणा जाति को अनुसूचित जनजाति के रूप में सम्मिलत नहीं किया गया है।

सहायक उपनियंत्रक के पद के लिए योग्य नहीं
इस पूरे प्रकरण में पता चला है कि छींतर लाल मीणा की मूल रूप से सीधी भर्ती सहायक उपनियंत्रक के पद की गई नियुक्ति उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित की गई थी जबकि वह उत्तर प्रदश राज्य लिए चिन्हित अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत नहीं थी।

लम्बी जांच प्रक्रिया के बाद हुआ खुलासा
इस पूरे मामले में जब सवाल उठा तो लम्बी जांच प्रक्रिया हुई तब जाकर पता चला कि छींतर लाल मीणा की नियुक्ति पूरी तरह से गलत है। इस मामले में राम कुमार अग्रवाल जो कि पूर्व सेक्टर वॉर्डन मेरठ ने भी अपने पत्र में इस बात का उल्लेख साल 2015 में कराया गया कि छींतर लाल मीणा राजस्थान के मूल निवासी है और उनका संबंध मीणा जाति से है। इससे साफ हो जाता है कि मीणा जाति उत्तर प्रदेश राज्य में आरक्षित श्रेणी में नहीं आती है।

नियुक्ति की पत्रावली भी गायब
इसके बाद से जांच कराने के आदेश में दिये गये। तब यह स्पष्ठï हो गया कि उनकी नियुक्ति यहां पर गलत हुई है। इतना ही नहीं छींतर लाल मीणा जिस पद पर तैनाती हुई है उसके चयन से सम्बन्धित पत्रावली गायब पायी गई थी। इसके बाद जांच के आदेश भी दिये गए। जांच करने वाले सत्यप्रकाश सिंह सहायक उपनियंत्रक ने पाया कि छींतर लाल मीणा की वर्ष 1990 में सहायक उपनियंक पद पर सीधी भर्ती सम्बंधी पत्रावली साल 1999 से ही गायब है और इसकी एफआईआर हजरतगंज में करायी गई है।

छींतर लाल मीणा की सफाई
उधर इस पूरे मामले में छींतर लाल मीणा ने अपनी सफाई लम्बा चौड़ा तक दिया है। उनके अनुसार नागरिक सुरक्षा विभाग उत्तर प्रदेश ने इस पद के लिए जो विज्ञापन प्रकाशित किया था उसमें उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की सूची में मीणा जनजाति अधिसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा सहायक उपनियंत्रक के पद पर चयन हेते आवेदन नहीं किया जायेगा। इस विज्ञापन में किसी प्रकार की शर्त नहीं रखी गई है।

कार्मिक एवं न्याय विभाग ने अयोग्य पाया
वहीं तथ्यों, प्रकरण के संबंध में कार्मिक एवं न्याय विभाग ने साफ कर दिया है कि परामर्श एव छींतर लाल मीणा द्वारा उपलब्ध कराये गए स्पष्टीकरण के बाद पाया गया है कि मीणा जनजाति उत्तर प्रदेश में जनजाति के रूप में अधिसूचित नहीं है। इसके बाद राज्यपाल ने उन्हें पद से बर्खास्त कर दिया है।

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