Tuesday - 24 June 2025 - 4:40 PM

शिक्षा का बदलता चेहरा: पारंपरिक बनाम दूरस्थ शिक्षा

अशोक कुमार

औपचारिक शिक्षा विषयों के कारण महाविद्यालयों में विद्यार्थी प्रवेश नहीं ले कर दूरस्थ शिक्षा केन्द्र में प्रवेश ल रहे हैं ! महाविद्यालय बंद हो रहे हैं या बंद होने की कगार पर हैं ! यह समकालीन शिक्षा प्रणाली की एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति को दर्शाता है: छात्रों का पारंपरिक महाविद्यालयों की बजाय दूरस्थ शिक्षा केंद्रों की फीस लगभग समान होने का भी एक कारण है ! यह बदलाव केवल एक आकस्मिक घटना नहीं है, बल्कि कई अंतर्निहित कारकों का परिणाम है जिन्हें समझना आवश्यक है।

क्यों बदल रही है छात्रों की प्राथमिकता?

पहले यह माना जाता था कि उच्च शिक्षा का अर्थ केवल कॉलेज परिसर में जाकर पढ़ाई करना है। लेकिन अब यह धारणा तेजी से बदल रही है। इसके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:

उपस्थिति की बाध्यता का अभाव: यह शायद सबसे बड़ा कारण है। पारंपरिक कॉलेजों में कक्षाओं में निश्चित उपस्थिति (जैसे 75%) अनिवार्य होती है। यह नियम उन छात्रों के लिए एक बड़ी बाधा बन जाता है जो:
पार्ट-टाइम या फुल-टाइम नौकरी करते हैं: अपनी आजीविका कमाने के साथ-साथ पढ़ाई करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है।

पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाते हैं: विशेषकर विवाहित महिलाएं या ऐसे छात्र जिनके परिवार में देखभाल की आवश्यकता होती है, वे नियमित रूप से कॉलेज जाने में असमर्थ होते हैं।

अन्य कौशल या रुचियों को आगे बढ़ाना चाहते हैं: खेलकूद, कला, या किसी अन्य व्यावसायिक प्रशिक्षण में लगे छात्र अपने समय को अपनी इच्छानुसार उपयोग करना चाहते हैं।

शारीरिक अक्षमताएं या स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ: कुछ छात्रों के लिए रोज़ाना कॉलेज आना शारीरिक रूप से मुश्किल हो सकता है।

दूरस्थ शिक्षा उन्हें अपनी सुविधानुसार, कहीं से भी और किसी भी समय पढ़ाई करने की स्वतंत्रता देती है।

पाठ्यक्रम सामग्री की उपलब्धता: दूरस्थ शिक्षा केंद्र अक्सर छात्रों को डिजिटल और/या मुद्रित पाठ्यक्रम सामग्री का एक पूरा सेट प्रदान करते हैं। इसका मतलब है कि छात्रों को नोट्स बनाने या किताबों के लिए भागदौड़ करने की चिंता नहीं करनी पड़ती। उनके पास संदर्भ के लिए हमेशा एक तैयार संसाधन होता है, जिससे स्व-अध्ययन आसान हो जाता है। पारंपरिक कॉलेजों में भी सामग्री उपलब्ध होती है, लेकिन दूरस्थ शिक्षा में यह एक प्राथमिक और संगठित रूप में मिलती है।

वित्तीय समानता और अन्य बचत: यदि कुल फीस समान है, तो दूरस्थ शिक्षा और भी आकर्षक हो जाती है। इसके अलावा, छात्रों की अन्य अप्रत्यक्ष लागतों में भी कमी आती है:

परिवहन लागत: रोज़ाना कॉलेज आने-जाने का किराया या ईंधन का खर्च बचता है।

आवास लागत: यदि छात्र को दूसरे शहर में जाकर पढ़ाई करनी पड़ती है, तो हॉस्टल या किराये के कमरे का खर्च बच जाता है।

समय की बचत: आने-जाने में लगने वाला समय पढ़ाई या अन्य उत्पादक गतिविधियों में लगाया जा सकता है।
लचीलापन और व्यक्तिगत गति से सीखना: हर छात्र की सीखने की गति अलग होती है। कुछ छात्र तेजी से सीखते हैं, जबकि कुछ को अवधारणाओं को समझने में अधिक समय लगता है। दूरस्थ शिक्षा में, छात्र अपनी गति से सीख सकते हैं। वे किसी विषय को जितनी बार चाहें उतनी बार दोहरा सकते हैं, या यदि उन्हें लगता है कि वे एक अवधारणा को पहले ही जानते हैं, तो वे उसे छोड़ कर आगे बढ़ सकते हैं। यह व्यक्तिगत सीखने के अनुभव को बढ़ावा देता है।

प्रौद्योगिकी का बढ़ता प्रभाव: इंटरनेट, ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफॉर्म (जैसे एलएमएस – लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम), वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और डिजिटल लाइब्रेरी ने दूरस्थ शिक्षा को पहले से कहीं अधिक सुलभ और प्रभावी बना दिया है। छात्र उच्च-गुणवत्ता वाले ऑनलाइन व्याख्यान, इंटरैक्टिव क्विज़, चर्चा मंचों और विशेषज्ञों से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं, जो उन्हें पारंपरिक कक्षा के अनुभव के करीब लाते हैं।

पारंपरिक महाविद्यालयों के लिए चुनौतियाँ और अवसर

यह रुझान पारंपरिक महाविद्यालयों के लिए एक चुनौती प्रस्तुत करता है, लेकिन साथ ही अवसर भी पैदा करता है:
चुनौती: यदि पारंपरिक कॉलेज अपने दृष्टिकोण में बदलाव नहीं लाते हैं, तो वे अपनी छात्र संख्या में गिरावट देख सकते हैं, खासकर उन पाठ्यक्रमों में जिनमें उपस्थिति की बाध्यता बहुत अधिक है।

अवसर: यह पारंपरिक संस्थानों को अपनी पेशकशों पर पुनर्विचार करने और उन्हें आधुनिक छात्र की आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने का अवसर देता है।

आगे की राह: संतुलन और एकीकरण

शिक्षा के भविष्य में लचीलेपन, पहुंच और गुणवत्ता का मेल होगा। संस्थान जो इन तीनों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, वे ही सफल होंगे। पारंपरिक महाविद्यालयों को दूरस्थ शिक्षा के सफल पहलुओं को आत्मसात करना चाहिए, जबकि दूरस्थ शिक्षा केंद्रों को भी छात्र अनुभव को बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयास करने चाहिए।यह स्पष्ट है कि शिक्षा केवल एक भौतिक स्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक गतिशील प्रक्रिया है जिसे व्यक्तिगत जरूरतों और तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बिठाना चाहिए।

(लेखक पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर रह चुके हैं)

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