जुबिली न्यूज डेस्क
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष समारोह के तीसरे दिन का आयोजन प्रश्नोत्तर सत्र के रूप में हुआ। इस दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विभिन्न विषयों पर पूछे गए सवालों के बेहद स्पष्ट और संतुलित जवाब दिए।
सबसे महत्वपूर्ण सवालों में से एक था – “आधुनिक तकनीक और तेज़ी से बढ़ते डिजिटल युग में परंपराएं और संस्कार कैसे बचाए जाएं?” इस पर बोलते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि तकनीक और आधुनिकता का विरोध शिक्षा से नहीं है। बल्कि यह ज़रूरी है कि तकनीक मनुष्य की सहायता करे, न कि मनुष्य तकनीक का गुलाम बन जाए।
“तकनीक का मालिक इंसान ही रहना चाहिए”
भागवत ने कहा, “जैसे-जैसे मनुष्य का ज्ञान बढ़ता है, नई तकनीकें सामने आती हैं। लेकिन तकनीक का इस्तेमाल मनुष्य के हाथ में है। उससे होने वाले दुष्परिणामों से बचने के लिए शिक्षा आवश्यक है। तकनीक का मालिक मनुष्य बना रहना चाहिए, तकनीक मनुष्य की मालिक न बन जाए।”
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि तकनीक का संतुलित और विवेकपूर्ण उपयोग तभी संभव है जब समाज संस्कारित हो।
“शिक्षा केवल जानकारी नहीं, संस्कार का माध्यम है”
भागवत ने कहा, “शिक्षा का अर्थ सिर्फ जानकारी रटना नहीं है। शिक्षा का उद्देश्य है मनुष्य को संस्कारवान बनाना। नई शिक्षा नीति में पंचकोशीय शिक्षा का जो प्रावधान है, वह समग्र विकास को ध्यान में रखता है।”
उन्होंने पंचकोशीय यानी पांच-स्तरीय शिक्षा को व्यक्तित्व निर्माण की आधारशिला बताया, जिसमें शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास शामिल है।
संदर्भ में क्यों महत्वपूर्ण है यह बयान?
भागवत का यह बयान ऐसे समय आया है जब देश में तेजी से डिजिटल और तकनीकी परिवर्तन हो रहे हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सोशल मीडिया और ग्लोबल कंटेंट की बाढ़ में युवा पीढ़ी के संस्कार और सामाजिक मूल्यों को लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं।
RSS प्रमुख ने स्पष्ट किया कि तकनीक से भागने की नहीं, बल्कि उसे सही दिशा में उपयोग करने की ज़रूरत है — और इसके लिए शिक्षा ही सबसे बड़ा साधन है।