जुबिली न्यूज डेस्क
पटना, बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के शताब्दी समारोह के मौके पर आयोजित कार्यक्रम उस समय हंगामे की भेंट चढ़ गया, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने बड़ी संख्या में मदरसा शिक्षकों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। राजधानी पटना के ज्ञान भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री का भाषण चल ही रहा था कि आक्रोशित शिक्षक उनके सामने कागज़ लहराने लगे और नारेबाजी शुरू कर दी।
क्या था मामला?
शिक्षकों का आरोप है कि वर्ष 2011 में नीतीश कुमार ने वादा किया था कि राज्य के 2459 मदरसों को ग्रांट के तहत वेतन दिया जाएगा। लेकिन अब तक सिर्फ 1646 मदरसे ही इस योजना का लाभ ले पाए हैं, बाकी मदरसे आज भी मानदेय से वंचित हैं।
शिक्षकों को उम्मीद थी कि इस ऐतिहासिक मौके पर मुख्यमंत्री उनके मानदेय को लेकर कोई बड़ा ऐलान करेंगे, लेकिन जैसे ही उनके भाषण में इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट बात नहीं हुई, नाराज़गी बढ़ गई और सभागार में शोरगुल मच गया।
हंगामे का वीडियो आया सामने
घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसमें साफ देखा जा सकता है कि कुछ शिक्षक मुख्यमंत्री की ओर कागजात बढ़ा रहे हैं और पुलिसकर्मी उन्हें रोकने की कोशिश कर रहे हैं। बाद में खुद नीतीश कुमार ने कुछ शिक्षकों से उनके ज्ञापन लिए, लेकिन माहौल बिगड़ता देख उन्हें कार्यक्रम स्थल से बाहर निकाल दिया गया।
सीएम ने गिनाईं सरकार की उपलब्धियां
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि उनकी सरकार ने 2005 से अब तक अल्पसंख्यक समुदाय के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। उन्होंने दावा किया कि राज्य में पहले हालात बेहद खराब थे, लेकिन अब मुस्लिम समुदाय की शिक्षा और सामाजिक स्थिति बेहतर हुई है। उन्होंने कहा, “हमारी सरकार ने सभी वर्गों के लिए काम किया है, पहले झगड़े होते थे, अब शांति है।”
शिक्षकों की नाराजगी
हालांकि, मदरसा शिक्षकों ने आरोप लगाया कि उन्हें कार्यक्रम में यह कहकर बुलाया गया था कि उनके वेतन और ग्रांट को लेकर मुख्यमंत्री बड़ा ऐलान करेंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उनकी मांग थी कि सभी 2430 गैर-अनुदानित मदरसों को सरकार मानदेय दे और वादे के अनुसार सभी को समान दर्जा मिले।
बोर्ड का इतिहास
बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना वर्ष 1922 में हुई थी। बाद में 1981 में इसे अधिनियम के तहत स्वायत्तता मिली। वर्तमान में राज्य में 1942 अनुदानित और करीब 2430 गैर-अनुदानित मदरसे हैं, जिनमें हजारों शिक्षक कार्यरत हैं।
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मदरसा शिक्षा बोर्ड के 100 साल पूरे होने पर आयोजित यह समारोह ऐतिहासिक तो जरूर था, लेकिन सरकार और शिक्षकों के बीच बढ़ते असंतोष की तस्वीर भी दिखा गया। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या नीतीश सरकार इन शिक्षकों की मांगों पर कोई ठोस कदम उठाएगी या यह मामला भी अन्य आंदोलनों की तरह लंबा खिंच जाएगा।