डॉ प्रदीप कुमार सिंह इलाहाबाद ब्लूज एक सांस में बिना रुके पढ़ गया। कोई भी रचना यदि एक बार में पढ़ी जाए तो यह रचनाकार की सामर्थ्य का द्योतक होती है। तीन अंशों में स्मृतियां, मध्यांतर और वर्तमान में विभक्त यह गुदगुदाने वाली रचना, उस हर छात्र के अंदर अतीत …
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