देश में दलगत राजनीति ने एक नये विभाजन का स्वरूप गढना शुरू कर दिया है। नागरिकों की मानसिकता पर अब व्यक्तिवाद हावी होकर स्वार्थपरिता के हिंडोले पर झूलने लगा है। परिवादवाद पर आधारित पार्टियों के मध्य जनसेवकों की समाजसेवा का स्वरूप चाटुकारिता के रूप में परिवर्तित हो गया है। व्यक्तिगत …
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