डा. रवीन्द्र अरजरिया ज्ञान के बिना जीवन पशुवत है, स्वामी विवेकानन्द का यह आदर्श वाक्य सामाजिक मर्यादाओं, अनुशासन और अनुबंधों को रेखाकित करने के लिये पर्याप्त है। समाज और सामाजिकता के मध्य मानवीयता की स्थिति वर्तमान में हिचकोलें ले रही है। संस्कार नाम की संस्था कही विलुप्त सी हो गई …
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