उत्कर्ष सिन्हा पिन्हां था दाम-ए-सख़्त क़रीब आशियान के उड़ने न पाए थे कि गिरफ़्तार हम हुए यानी “घर के पास ही जंजीरें छिपी हुई थीं, जिससे हम उड़ने से पहले ही उनमें फंसकर बंदी बन गए.’ मिर्ज़ा ग़ालिब का ये शेर उस फैसले की पहली लाइने हैं , जो कठुआ में …
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