शाखाएं मौसम हवायें सब उसी के खिलाफ हैं बस इसीलिए वो पत्ते आवारा हुए जा रहे हैं कलम दवात दिख रहे हैं आज कल मयखाने में ज़रूर कुछ लोग आज शायर बने जा रहे हैं । जंग ज़रूरतें और ज़िम्मेदारियों के बीच छिड़ी हुई है , और बेचारे ख्वाब हार …
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रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है….
रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है रात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहीं.. कांच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता है ख़ाली-ख़ाली कोई बजरा सा बहा जाता है .. चाँद की …
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