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जलियांवाला बाग हत्याकांड के आज 100 साल पूरे हो गए। आज ही के दिन यानी 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में यह वीभत्स नरसंहार कांड हुआ था
बैशाखी के दिन इस हत्याकांड को अंजाम देने वाला आरोपी ब्रिगडियर जनरल आर डायर और लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ दायर थे।
इस हत्याकांड के बाद से आजादी की चाह न केवल पंजाब, बल्कि पूरे देश के बच्चे-बच्चे के सिर चढ़ कर बोलने लगी। उस दौर के हजारों भारतीयों ने जलियांवाला बाग की मिट्टी को माथे से लगाकर देश को आजाद कराने का दृढ़ संकल्प लिया।
वहीं, बदला लेने के लिए भारतियों में गज़ब का आक्रोश था। जिस समय यह कांड हुआ उस समय उधम सिंह वहीं मौजूद थे और उन्हें भी गोली लगी थी। उन्होंने तय किया कि वह इसका बदला लेंगे। आखिरकार 21 साल बाद उस नौजवान ने एक भरे हॉल में माइकल डायर को गोली मार कर जलियांवाला बाग का बदला ले लिया। जबकि 1927 में रेजीनॉल्ड डायर की मौत बीमारी की वजह से हो गई।
कॉक्सटन हॉल में मारी थी कई गोलियां
बता दें, की जब जलियांवाला बाग कांड हुआ था, उस समय शहीद उधम सिंह सिर्फ 20 साल के थे। उन्होंने उसी दिन ये प्रण किया था कि वो इस कांड का बदला जरुर लेंगे। डायर से बदला लेने के लिए उधम 1934 को लंदन गये थे। उन्होंने लम्बे समय तक डायर का पीछा किया और उसी दिन यानि 13 अप्रैल 1940 को एक किताब में रिवॉल्वर छुपा कर कॉक्सटन हॉल के अंदर घुसने में कामयाब हो गए, जहां माइकल ओ डायर भाषण दे रहा था और उस पर ताबड़तौड गोलिया बरसा दी जिससे वह मौके पर ही ढेर हो गया।
हालांकि, इसके बाद उधम सिंह को ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। पुलिस जब उधम सिंह को गिरफ्तार कर ले जा रही थी उस समय उधम सिंह मुस्करा रहा था और सर तान कर कहा, ‘मैंने माइकल ओ डायर को इसलिए मारा क्योंकि वो इसी लायक था। वो मेरे वतन के हजारों लोगों की मौत का दोषी था। मैंने जो किया मुझे उस पर गर्व है। मुझे मौत का कोई खौफ नहीं क्योंकि मैं अपने वतन के लिए बलिदान दे रहा हूं।
फांसी पर चढ़कर अमर हुए उधम
डायर के हत्या के लिए 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को ब्रिटिश पुलिस ने फांसी दे दी । लेकिन भारत के इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया। जब तक हिंदुस्तान रहेगा अमर उधम सिंह की इस वीर गाथा को भुलाया नहीं जा सकता।
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