जुबिली स्पेशल डेस्क
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार सियासी समीकरण लगातार बदल रहे हैं। कभी लगता है कि दोनों गठबंधनों में सब कुछ ठीक है, तो कुछ ही घंटे बाद नया विवाद खड़ा हो जाता है। एनडीए ने अपनी स्थिति किसी तरह संभाल ली है, लेकिन महागठबंधन में पेच अब भी उलझे हुए हैं।
सबसे बड़ा सस्पेंस वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) के प्रमुख मुकेश सहनी को लेकर है — जो फिलहाल महागठबंधन में तो हैं, लेकिन उनका अगला कदम किस दिशा में होगा, यह किसी को नहीं पता।
मुकेश सहनी की प्रेस कॉन्फ्रेंस टली, सस्पेंस बरकरार
मुकेश सहनी ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी। पहले यह दोपहर 12 बजे तय थी, फिर इसे 4 बजे और उसके बाद 6 बजे तक टाल दिया गया। अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि सहनी शाम की प्रेस कॉन्फ्रेंस में क्या ऐलान करते हैं — क्या वे महागठबंधन में बने रहेंगे या नया रास्ता चुनेंगे?
‘सन ऑफ मल्लाह’ की सियासी पारी
बॉलीवुड से लौटे ‘सन ऑफ मल्लाह’ मुकेश सहनी ने बिहार में राजनीति की शुरुआत एक नई सामाजिक पहचान के साथ की थी। उन्होंने खुद को निषाद समाज (मल्लाह समुदाय) का नेता बताया — जिसकी बिहार में करीब 2.6% आबादी है।
शुरुआती दिनों में सहनी ने इस वर्ग को संगठित करने की कोशिश की, लेकिन अब तक वे स्थायी राजनीतिक ज़मीन नहीं बना पाए हैं।
बीजेपी ने तैयार कर लिया ‘मल्लाह कार्ड’
मुकेश सहनी की राजनीति के जवाब में बीजेपी ने भी निषाद समाज को साधने की तैयारी कर ली है। पार्टी ने केंद्र में राजनारायण निषाद को मंत्री बनाया है, वहीं मुजफ्फरपुर के पूर्व सांसद अजय निषाद की भाजपा में वापसी के साथ उनकी पत्नी रमा निषाद को औराई सीट से टिकट दिया गया है।
बीजेपी मानती है कि समाज के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रभावशाली निषाद नेताओं को आगे कर, वह इस समुदाय को अपने पाले में रख सकती है।
महागठबंधन में सीमित विकल्प
महागठबंधन में रहते हुए भी मुकेश सहनी का भविष्य अनिश्चित दिख रहा है। वे खुद को उपमुख्यमंत्री पद का दावेदार बताते हैं, लेकिन सीट बंटवारे पर सहमति अब तक नहीं बन पाई है।
पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने चार सीटें जीती थीं, मगर बाद में सभी विधायक भाजपा में शामिल हो गए। इस समय वीआईपी के पास एक भी विधायक नहीं है, लेकिन सहनी अब भी राजनीतिक प्रभाव बनाए रखने की कोशिश में हैं।
अत्यधिक बारगेनिंग से खतरे में भविष्य
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि मुकेश सहनी बार-बार सीटों और पदों को लेकर अत्यधिक दबाव बनाते रहे, तो उनकी राजनीतिक साख को नुकसान हो सकता है।
सूत्रों के मुताबिक, नीतीश कुमार पहले ही निषाद समाज से तीन टिकट दे चुके हैं, जिससे इस वर्ग में सहनी का प्रभाव कमज़ोर पड़ सकता है।
ऐसे में अगर वे रणनीतिक गलती करते हैं, तो अत्यधिक बारगेनिंग के चलते उनकी राजनीतिक जमीन और नेतृत्व—दोनों पर खतरा मंडरा सकता है।