जुबिली न्यूज डेस्क
कई महीनों की तनावपूर्ण व्यापारिक स्थिति के बाद अमेरिका और चीन के संबंध अब एक नए मोड़ पर पहुंच गए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चीन के साथ रिश्तों को पटरी पर लाने की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच बढ़ते टैरिफ युद्ध को रोकना और वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर करना है।
ट्रंप का बदला रुख: आलोचना से प्रशंसा तक
अप्रैल में ट्रंप ने चीन को ‘अमेरिका का सबसे बड़ा खतरा’ बताया था और उस पर दशकों तक आर्थिक धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया था। इसके बाद उन्होंने चीनी वस्तुओं पर 145% तक का भारी आयात शुल्क लगा दिया। लेकिन अब स्थिति बदल गई है।
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ट्रंप ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ‘एक मजबूत नेता’ कहते हुए उनकी सराहना की।
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उन्होंने चीनी सामानों पर लगने वाले शुल्क में छूट की समयसीमा बढ़ा दी है।
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सितंबर से नवंबर के बीच दोनों देशों के बीच एक शिखर सम्मेलन आयोजित करने की योजना पर भी चर्चा हो रही है।
चीन को राहत, भारत पर सख्ती
अमेरिका के नए व्यापारिक फैसलों में चीन को थोड़ी राहत दी गई है, जबकि भारत और ब्राजील जैसे देशों को बड़ा झटका लगा है।
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चीन पर अब औसतन 30% शुल्क लगाया जा रहा है, जबकि भारत पर यह दर 50% तक बढ़ा दी गई है।
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भारत के लिए यह शुल्क 27 अगस्त से लागू होने की संभावना है।
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अतिरिक्त 25% शुल्क रूस से तेल खरीदने के कारण लगाया जा रहा है।
इनसिऐड बिजनेस स्कूल के अर्थशास्त्री एंटोनियो फातास का कहना है कि भारत अमेरिका के लिए चीन जितना महत्वपूर्ण नहीं है, न ही उसकी इतनी क्षमता है कि वह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को झटका दे सके।
छूट का असली कारण: अमेरिकी बाजार की जरूरतें
अमेरिका में छुट्टियों का मौसम आने वाला है, जिसके लिए खुदरा व्यापारियों को चीन से भारी मात्रा में सामान आयात करना होता है। अगर टैरिफ बढ़ता रहा, तो बाजार में सामान की कमी और कीमतों में उछाल जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।ट्रंप का लक्ष्य है कि टेक्नोलॉजी, ऊर्जा और रेयर अर्थ खनिजों जैसे अहम क्षेत्रों में चीन के साथ एक बड़ा व्यापार समझौता हो।
रेयर अर्थ: चीन का गुप्त हथियार
चीन दुनिया का लगभग 60% रेयर अर्थ खनिज और 90% रिफाइनिंग करता है। ये खनिज इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर मिसाइल गाइडेंस सिस्टम तक में इस्तेमाल होते हैं। अप्रैल में अमेरिका द्वारा भारी शुल्क लगाने के बाद चीन ने सात रेयर अर्थ एलिमेंट और परमानेंट मैग्नेट के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी, जिससे अमेरिकी उद्योगों को खासकर ऑटोमोबाइल सेक्टर को बड़ा झटका लगा।
अमेरिका की मांगें और चीन की रणनीति
अमेरिका चाहता है कि चीन:
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अमेरिकी सोयाबीन की खरीद को चार गुना बढ़ाए,
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टेक्नोलॉजी और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में लगाई गई पाबंदियों को हटाए,
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एनवीडिया जैसे एआई चिप्स तक पहुंच सीमित करे।
वहीं, चीन का फोकस है कि अमेरिकी प्रतिबंधों से राहत मिले और उच्च तकनीकी चिप्स तक पहुंच बनी रहे।
भारत के लिए चुनौतीपूर्ण समय
भारत अब ट्रंप प्रशासन की नजरों में ‘अच्छा पार्टनर’ नहीं रहा। उस पर अतिरिक्त 25% टैरिफ रूस से तेल खरीदने के चलते लगाया जा रहा है, जिससे भारतीय निर्यातकों पर बड़ा दबाव बनेगा।
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भविष्य की तस्वीर
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका-चीन के बीच यह समझौता नवंबर तक खिंच सकता है। अगर दोनों देशों के बीच सहमति बनती है, तो अमेरिकी कंपनियों को फायदा होगा, जबकि भारत, ब्राजील और अन्य सहयोगी देशों के लिए यह नुकसानदेह साबित हो सकता है।