जुबिली स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पर रूस से तेल आयात बंद करने का लगातार दबाव बना रहे हैं। 4 अगस्त की रात उन्होंने धमकी दी कि यदि भारत रूसी तेल खरीदना जारी रखता है, तो उस पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाया जाएगा, जो 7 अगस्त 2025 से लागू हो जाएगा।
हालांकि, भारत की ओर से अब तक कोई झुकाव नहीं दिखा है। इसके पीछे मुख्य कारण आर्थिक मजबूरी और रणनीतिक हित हैं। रूस से आयातित सस्ता तेल भारतीय रिफाइनरियों को 1–1.5 डॉलर प्रति बैरल का अतिरिक्त ग्रॉस रिफाइनरी मार्जिन (GRM) प्रदान करता है। यदि यह छूट बंद होती है, तो भारतीय ऑयल कंपनियों के मुनाफे पर बड़ा असर पड़ सकता है।
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भारत-रूस तेल व्यापार के आंकड़े क्या कहते हैं?
- FY2018-FY2022: रूस से भारत का क्रूड आयात मात्र 1.5% था
- FY2023: यह बढ़कर 19.3% हुआ
- FY2024-FY2025: रूस से आयात अब 33-35% तक पहुंच गया है
इस बढ़ोतरी का मुख्य कारण रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूसी तेल की कीमतों में गिरावट और वैश्विक बाजार में सस्ती डील्स मिलना है। JM Financial की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका यह दबाव रूस पर कूटनीतिक रूप से शांति वार्ता के लिए बना रहा है, लेकिन इससे भारत को आर्थिक झटका लग सकता है।
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तेल कंपनियों पर पड़ सकता है भारी असर
यदि भारत रूस से तेल खरीदना बंद करता है, तो इसका सबसे बड़ा असर इन कंपनियों पर होगा:
- OMCs (IOCL, BPCL, HPCL): FY26 तक EBITDA में 8-10% की गिरावट
- MRPL / CPCL: EBITDA में 20-25% तक नुकसान
- Reliance Industries: EBITDA पर 2% का असर
रूसी तेल पर 3-4 डॉलर प्रति बैरल की छूट रिफाइनरियों के लिए गेमचेंजर रही है, और इसका बंद होना भारत की ऊर्जा रणनीति को झटका दे सकता है।
क्रूड की कीमतें आसमान छू सकती हैं
अगर भारत रूस से तेल लेना बंद करता है, और चीन या अन्य देश इसकी भरपाई नहीं करते, तो ग्लोबल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमतें तेज़ी से बढ़ सकती हैं।
उदाहरण के लिए
- चीन पहले ही रोज़ाना 2-2.5 मिलियन बैरल रूसी तेल खरीदता है
- उसकी कुल दैनिक मांग 16.5 मिलियन बैरल है
इसका मतलब है कि अगर भारत हटता है, तो ग्लोबल डिमांड और सप्लाई में असंतुलन पैदा होगा।
भारत का कहना है कि ऊर्जा नीति का उद्देश्य देशवासियों को सस्ती और स्थिर दरों पर ऊर्जा उपलब्ध कराना है। ऐसे में रूस से तेल खरीदना न सिर्फ एक रणनीतिक विकल्प है, बल्कि आर्थिक अनिवार्यता भी है।
अमेरिका की धमकियों और टैरिफ के बावजूद, भारत फिलहाल अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करना चाहता।