Monday - 8 January 2024 - 3:50 PM

तो क्या दिल्ली पुलिस को ट्रंप के जाने का इंतजार है?

न्यूज डेस्क

दिल्ली सुलग रही है। घर जल रहा है, दुकानें जल रही है। हालात बेकाबू हो गए हैं और पुलिस तमाशबीन बनी हुई है। पुलिस के सामने उपद्रवी तमंचा लहरा रहे हैं, पत्थर फेंक रहे हैं और वह मूकदर्शक बनी हुई है। यह कहें कि पुलिस ने दिल्ली को उपद्रवियों के हवाले कर दिया है तो गलत नहीं होगा। अब सवाल उठता है कि आखिर दिल्ली पुलिस क्यों शांत हैं? आखिर पुलिस कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है?

दिल्ली पुलिस की खामोशी पर लगातार सवाल उठ रहा है। सोमवार को जिस तरह दिल्ली में उपद्रवियों ने तांडव किया वह निहायत ही शर्मनाक था। पुलिस के सामने ही उपद्रवी तांडव करते रहे और वह खामोश रही।

आखिर इस खामोशी की वजह क्या है? के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं, इस समय पूरी दुनिया की निगाह दिल्ली पर लगी हुई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप सोमवार शाम से अपने लावा लश्कर के साथ दिल्ली में मौजूद हैं। उनके साथ-साथ इंटरनेशनल मीडिया का भी जमावड़ा लगा हुआ है। जाहिर है ऐसी स्थिति में दिल्ली पुलिस ऐसा कोई कदम नहीं उठायेगी जिससे रंग में भंग पड़े।

तो फिर दिल्ली पुलिस ट्रंप के जाने का इंतजार कर रही है? इस सवाल पर वो कहते हैं, जाहिर है दिल्ली पुलिस को ट्रंप और इंटरनेशनल मीडिया के जाने का इंतजार है। आप देखिएगा इनके भारत से निकलते हुए पुलिस एक्टिव हो जायेगी।

दिल्ली में जिस बात की आशंका चुनाव के दौरान व्यक्त की जा रही थी आखिरकार वह सोमवार को हो ही गई। सीएए के समर्थक और विरोधी आपस में भिड़ गए और दिल्ली सुलग उठी। 24 फरवरी को उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मौजपुर, जाफराबाद, और चांदबाग समेत कई इलाकों में जमकर हिंसा हुई।

मंगलवार को भी इन इलाकों में माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है। मौजपुर और ब्रह्मपुरी इलाके में अब भी पत्थरबाजी हुई। हिंसा में अब तक 7 लोगों की मौत हो चुकी है, जिसमें हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल भी शामिल हैं। इसके अलावा खबर लिखे जाने तक 100 से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस घटना के बारे में बात करते हुए मंगलवार को दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि दिल्ली पुलिस को किसके आदेश का इंतजार है।

पिछले कुछ समय से दिल्ली पुलिस की भूमिका पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। जामिया का मामला हो या जेएनयू का, दोनों जगहों पर पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में थी। जिस तत्परता से पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी उस तरह से पुलिस एक्टिव नहीं दिखी। कई मामलों में पुलिस लीपापोती में जुटी रही।

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