
अरमान आसिफ
सिद्धार्थनगर जिले के देवलहवा ग्रांट गांव में सांस्कृतिक संगम की अद्भुत परंपरा है। यहां तो मुस्लिम शादियों में भी अगवानी, द्वारचार और कुआं पूजन होता है। गाजे-बाजे संग बारात आती है, अगवानी और द्वारपूजा की रस्में भी दोनों पक्ष निभाते हैं। यहां आकर बसे इन पठानों का दावा है कि हमारे पूर्वज क्षत्रिय थे तो उनकी परंपराएं आज भी सारे परिवार निभाते हैं।
लगभग सवा सौ साल पहले इस्लाम स्वीकारने के बाद सुल्तानपुर जिले के दो गांवों टैनी व हसनपुर से आकर कुछ परिवार सिद्धार्थनगर तत्कालीन नौगढ़ के गोबरहवा बाजार में बस गए थे। बाद में वे सब यहां से पांच किमी दूर एक बस्ती बना कर रहने लगे जिसे वर्तमान में देवलहवा ग्रांट गांव के नाम से जाना जाता है। यह गांव उस्का बाजार ब्लॉक में है।
यहां पर रहने वाले नमाज, रोजा, हज आदि फर्ज व सुन्नत को तो इस्लामिक रीति रिवाज के अनुसार ही मनाते हैं पर जब शादी की बारी आती है तो निकाह को छोड़ बाकी सारे काम हिन्दू रीति रिवाज से करते हैं। दो हजार आबादी वाले देवलहवा ग्रांट गांव में लगभग 15 सौ मुस्लिम समुदाय के लोग हैं। ये लोग आज भी वर्षों से चली आ रही अपने पुरखों की परम्परा को जीवित रखे हैं। ये लोग सिर्फ निकाह ही इस्लामिक तरीके से करते हैं बाकी सब कुछ हिन्दू रीति रिवाज से करते हैं।
पूर्वज ठाकुर थे
हिन्दूरीति रिवाज के अनुसार माड़ो डालना, मिट्टी छूने, गगरी में कूएं से पानी भरना, अगुवानी में दुल्हा-दुल्हन को पेड़ का पल्लू (सात पत्ते) छुलाने की भी परम्परा निभाई जाती है। यहां के पठानों का दावा है कि हमारे पूर्वज ठाकुर थे तो उनकी परंपराएं आज भी सारे परिवार निभाते हैं।
नाच-गाने की मनाही के बाद भी रहता है धूम-धड़ाका
इस्लाम में नाच-गाना की मनाही है, पर देवलहवा गांव के पठानों की शादी में डीजे बजना, नाच-गाना, किन्नरों के साथ युवाओं का डांस, अगुवानी के समय आतिशबाजी करना आम बात है।
मिट्टी छूने व कुआं पूजन करने जाती हैं महिलाएं
शादी में नदी या तालाब के किनारे मिट्टी छूने व कुआं पूजन करने विवाह के घर वाली महिलाएं जाती हैं। इस दौरान वह शादी के गीत गाती हुई जाती-आती हैं।
अगुवानी के समय ग्वालिन दूल्हे को लगाती है टीका
हिन्दू रीति रिवाज की तरह देवलहवा गांव के पठानों की जब आपस में शादी होती है तो अगुवानी के समय दुल्हे को पल्लू छुलाने के बाद ग्वालिन टीका लगाती है। लेकिन बाहर शादी होने पर बाकी परम्परा तो निभाते हंै पर टीका नहीं लगाते हैं।
सगरा खोदते हैं दुल्हे के फूफा
दूल्हे को नहलाने से पहले हिन्दू परंपरा के मुताबिक पहले फूफा सगरा खोदते हैं, जिसमें दूल्हे के नहाने का पानी जाता है। सगरा खोदने की एवज में दूल्हे के पिता फूफा को उपहार में कुछ न कुछ देते हैं। फूफा के न रहने पर यह परम्परा जीजा निभाते हैं।
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