जुबिली न्यूज डेस्क
लखनऊ | उत्तर प्रदेश के संभल जिले को लेकर एक सनसनीखेज रिपोर्ट सामने आई है। न्यायिक जांच आयोग द्वारा दी गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि संभल की डेमोग्राफी में बड़ा बदलाव आ चुका है। रिपोर्ट के अनुसार, अब संभल में केवल 15% हिंदू जनसंख्या बची है, जबकि आज़ादी के बाद यह आंकड़ा करीब 45% था।
कैसे बदली डेमोग्राफी?
तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग ने रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि पिछले कुछ दशकों में हिंदू समुदाय का भारी पैमाने पर पलायन हुआ है। धार्मिक तनाव, दंगे, लव जिहाद और जबरन धर्मांतरण जैसे मुद्दों को इस बदलाव का कारण बताया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि संभल नगर पालिका क्षेत्र, जहां कभी हिंदू और मुस्लिम समुदाय लगभग बराबर थे, वहां अब हिंदू अल्पसंख्यक बन चुके हैं।
संभल हिंसा और जांच आयोग का गठन
यह रिपोर्ट 24 नवंबर 2024 को हुए दंगों के बाद गठित आयोग द्वारा तैयार की गई है। उस दिन संभल की एक मस्जिद में सर्वे के दौरान हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें कई लोग घायल हुए थे और इलाके में तनाव फैल गया था।
इसके बाद योगी सरकार ने तीन सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया, जिसमें शामिल थे:
-
रिटायर्ड जस्टिस देवेंद्र कुमार अरोड़ा (इलाहाबाद हाईकोर्ट)
-
रिटायर्ड IAS अमित मोहन
-
रिटायर्ड IPS अरविंद कुमार जैन
दंगों में मिले विदेशी हथियार, USA मेड गन बरामद
रिपोर्ट के सबसे चौंकाने वाले खुलासों में से एक यह है कि दंगों के दौरान विदेशी हथियार बरामद किए गए। सूत्रों के अनुसार, कुछ हथियारों पर ‘Made in USA’ की मार्किंग थी। इससे पूरे मामले में अंतरराष्ट्रीय एंगल की जांच की संभावना जताई जा रही है।
लव जिहाद और धर्मांतरण का भी जिक्र
सूत्रों के मुताबिक, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इलाके में लव जिहाद और संगठित धर्मांतरण की घटनाएं लगातार सामने आई हैं। रिपोर्ट में कुछ एनजीओ और सामाजिक संगठनों की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं।
सीएम योगी को सौंपी गई रिपोर्ट
आयोग की टीम ने रिपोर्ट को गोपनीय बताया है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर इसे सौंप दिया है। माना जा रहा है कि जल्द ही सरकार इस रिपोर्ट पर कोई बड़ा कदम उठा सकती है।
-
आज़ादी के बाद संभल में 45% थी हिंदू आबादी, अब घटकर रह गई 15%
-
2024 की हिंसा के बाद बना था जांच आयोग
-
विदेशी हथियार, लव जिहाद और धर्मांतरण की घटनाएं रिपोर्ट में दर्ज
-
रिपोर्ट सौंपी गई मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को
संभल की बदलती डेमोग्राफी का यह मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर बड़ा मुद्दा बन सकता है। चुनावी साल में ऐसी रिपोर्ट सरकार और विपक्ष दोनों के लिए अहम साबित हो सकती है।