फैज़ान मुसन्ना ‘ मदारपुरी ‘
 पाकिस्तान के बलूचिस्तान के क्वेटा में 12 अप्रेल को प्रमुख शिया कबीले हज़ारा बहुल इलाक़े में हुए बम धमाके में इस बिरादरी के 16 लोगो के मरे जाने की खबर आयी है। पाकिस्तान से ऐसी खबरों का आना कोई नयी या अनोखी बात नहीं है मगर एक प्रश्न गूंजता है की वहां ऐसा क्या है कि हकूमत नफरत फ़ैलाने वाले समूहों पर काबू नहीं हासिल कर पाती है।
पाकिस्तान के बलूचिस्तान के क्वेटा में 12 अप्रेल को प्रमुख शिया कबीले हज़ारा बहुल इलाक़े में हुए बम धमाके में इस बिरादरी के 16 लोगो के मरे जाने की खबर आयी है। पाकिस्तान से ऐसी खबरों का आना कोई नयी या अनोखी बात नहीं है मगर एक प्रश्न गूंजता है की वहां ऐसा क्या है कि हकूमत नफरत फ़ैलाने वाले समूहों पर काबू नहीं हासिल कर पाती है।
जिन्नाह की विचारधारा शिया थी
पाकिस्तान की कल्पना को साकार करने वाले मोहम्मद अली जिन्नाह इस्लाम की शिया विचारधार से संबध रखते थे। जिन्ना ने अपने कई भाषणों में इच्छा जाहिर की थी कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिये संविधान में व्यवस्था की जायेगी। उन्होने वहां के अल्पसंखयकों को भरोसा दिलाने की कोशिश भी की थी, कि मुस्लिम बहुलता से भयभीत होने की कतई जरूरत नहीं है। इससे इतर आज पाकिस्तान भाषाई , लैगिक और धार्मिक अल्पसंखयको के मौलिक अधिकारों की चरागाह में तबदील हो चुका है।
पाकिस्तान से अकसर धार्मिक स्थलों में गोलीबारी और बम धामाकों की खबरें आती रहती हैं। ऐसा नहीं है कि दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यक आतंकियो के निशाने से महफूज है ,मगर अधिकतर धमाके शिया सुमदाय और उनके धार्मिक स्थलों को निशाना बनाकर ही किये जाते है, जिसमें हताहत होने वालों की संख्या काफी अधिक होती है।
जिस समय भारत के दुर्भाग्यपूर्ण बटवारे की घटना हुयी उसके बाद से वहां के अल्पसंख्यकों में सबसे बडे समूह शिया समुदाय का जीवन कमोबेश शांतिपूर्ण था। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों विषेशकर शिया समुदाय के खिलाफ कटरता उस समय से बढी जब शिया विचारधारा के धुर विरोधी सऊदीअरब के इशारों पर नृत्य करने वाले तानाशाह जनरल ज़ियाउलहक ने रसूल के इस्लाम के स्थान पर अपना फौजी इस्लाम जनता पर थोपा ।
धर्मनिरपेक्ष संविधान को बदलने की कवायेद
जियाउलहक ने जुल्फिकार अली भुटटो के द्वारा स्थपित धर्मनिरपेक्ष संविधान को बदलने की कवायेद शुरू की । तानाशाह ने इसकी शुरूआत हदूद कानून जैसे अध्यादेशों से की, जिन पर अल्पसंख्यकों खासतौर से शिया समुदाय को खासा ऐतराज था । इसके माध्यम से जबरिया ज़कात यानि इस्लामी टैक्स वसूला जाने लगा । जकात के लिये बाकायादा बैकों में खाते खुलावाकर पैसे वसूले गये ,बैगर ये जाने कि आय स्त्रोत क्या है, जबकि शिया विचारधारा में जकात के साथ साथ खुमस भी दिया जाता है मगर इस शर्त के साथ कि आय वैध अथवा कानूनी ही होना चाहिए।
पाकिस्तान के शियों ने इसे अपनी आस्था पर हमला माना और यहीं से शुरू हुआ विरोधों का सिलसिला । इस जबरिया ज़कात के खिलाफ पाकिस्तान के शियों ने इस्लामाबाद में ऐतिहासिक विरोध दर्ज कराया। यहीं से पाकिस्तान में शियो की राजनैतिक सरगर्मी बढी और उन्होने दबाव समूह का निमार्ण किया।

वहीं जनरल जिया ने बडी चालाकी से काम लेते हुए शियों को बैंक के माध्यम से जकात जमा करने से छूट दी और उन्हे पाकिस्तानी समाज में चिन्हत करवा दिया। यहां तक की नागरिक प्रशासन, सेना और सरकारी सेवाओं में उन्हे चुन चुन कर प्रताडित किया जाने लगा । जल्द उन क्षेत्रों में नस्ली दंगे शुरू हो गये , जहां शिया अल्पसंख्यक समुदय और भी अल्पसंख्यक था। हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में खासतौर से गिलगिट-बाल्चिस्तान और पाराचिनार आदि प्रमुख थे। जब पाकिस्तान में जनरल जिया के खिलाफ अन्दोलन शुरू हुआ तो ये आशा बंधी कि शायद प्रजातन्त्र सर्मथक शक्तियां , शियों के विरूध पाकिस्तानी समाज में पनप रही नफरत पर काबू हासिल करने में सहयोग करेंगी।
मगर प्रजातन्त्र समर्थक शक्तियों ने अपनी सारी शक्ति जनरल को कुर्सी से हटाने में लगा दी। पाकिस्तानी राजनीत और समाज को निकट से जानने वालों के अनुसार जनरल विरोधी और प्रजतन्त्र सर्मथक वामदलों समेत अधिकतर पार्टियों का मत था कि लोकतन्त्र की बहाली के साथ ही शियों के प्रति नफरत के साथ साथ सभी मामले खुद बा खुद हल हो जायेगें। इसीलिए जियाउल हक को कुर्सी से उतारने में लगी लोकतंत्र सर्मथक तमाम शक्तियों ने पाकिस्तानी समाज में शियों के प्रति जनरल द्वारा घोले जा रहे जहर को गम्भीरता से नहीं लिया।
वहीं दूसरी तरफ जनरल जिया ने अपने विरूध सर उठा रहे लोकतंत्र समर्थक अन्दोलन को बुरी तरह कुचल दिया और अपदस्थ प्रधानमंत्री जुल्फिार अली भुटटो को फांसी दे दी। यह फांसी पाकिस्तानी समाज और राजनीत में एक अजीब मोड था ।
अफगानिस्तान पर सोवियत यूनियन का धावा
इसी दौरान उसके पडोसी देश अफगानिस्तान में सोवियत यूनियन ने धावा बोल दिया। अफगानिस्तान पर हुये अचानक हमले से पाकिस्तान की घरेलु समस्याएं पर्दे के पीछे चल गयी और वो इस युद्ध में अमरीका का निकटतम सहयोगी बन गया।
पाकिस्तान ने रूसी सेनाओं के खिलाफ धर्म युद्ध की घोषणा करते हुए सऊदी अरब के दान के सहारे चल रहे मदरसों में पढ रहे पाकिस्तानीयों की भर्ती ,जिहादीयों के रूप में शुरू कर दी। इन मदरसों में प्रमुख शिक्षा इस्लाम नहीं बल्कि शिया से नफरत है । आगे चलकर यही लडाके तालिबान कह लाये। अफगानिस्तान के युद्व में रूस के विरूद्व ईधन के रूप में झोकने के लिये वहां की नामचीन पंजाब और कराची विश्वविद्यालय जैसी शैक्षणिक सस्थांओं से भी युवाओं को वरगला कर भर्ती किया गया।
ईरानी इंक़ेलाब
इसी दौरान ईरान में जन्मे इस्लामी इंकलाब ने सम्पूर्ण विश्व खासतौर से मुस्लिम राष्ट्रों को प्रभावित किया था । यह इंक़ेलाब धर्म के नाम पर कायम बादशाहत के विरूध था और पूरे विश्व के शिया इसके समर्थक समझे जाते थे। सऊदी अरब के मित्र और सहयोगी पाकिस्तान में शिया मुसल्मानों की खासी तादाद है इस लिए यहाँ इरान के प्रभाव को कुचलना जरूरी था ।
जनरल जिया ने वही किया उन्होने पाकिस्तान की हवाओं में शिया मुसल्मानों के विरूध ऐसा जहर घोला कि तमाम युवा मस्तिष्क प्रदूषित हो गये और उन्होने पाकिस्तान के सबसे बडे अल्पसंख्यक के खिलाफ बन्दूक उठाने को ही जेहाद समझ लिया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनका निजी विचार हैं)
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