
न्यूज डेस्क
नागरिकता संसोधन बिल पर विरोध जारी है। संसद और संड़क पर संग्राम के बावजूद यह बिल पास हो गया। फिलहाल इस बिल के विरोध में देश के कई राज्यों ने केन्द्र सरकार के खिलाफ विरोध का झंडा उठा लिया है।
संसद में जिस दिन यह बिल पेश किया गया, उसी दिन से असम, त्रिपुरा, मेघालय आदि राज्यों में हिंसा भड़की हुई है। बावजूद इसके
12 दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद ने बिल को मंजूरी दे दी, लेकिन सात राज्यों ने इस बिल को अपने यहां लागू करने से साफ इनकार कर दिया है।
बिल लागू न करने पर इन राज्यों का कहना है कि यह बिल धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला, संविधान और भारतीयता के खिलाफ है। बिल का विरोध करने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और केरल शामिल है।
वहीं इस मामले में पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी का कहना है कि राज्यों के पास केंद्र द्वारा लागू कानून को अपने यहां नहीं लागू करने का संवैधानिक हक तो है, लेकिन यह सही कदम नहीं होगा। आदर्श स्थिति ये है कि बातचीत से रास्ता निकलेे और मतभेद दूर हो।
कुछ कानूनी विशेषज्ञों की राय में नागरिकता केंद्र के दायरे में आने वाला विषय है। इसलिए राज्य सरकारों के इस बिल को नहीं लागू करने के निर्णय को केंद्र पलट सकता है। राज्यों की ओर से इसे नहीं लागू करने का ऐलान सही नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एके गांगुली ने कहा कि राज्य सरकारें नागररिकता से जुड़े कानून का अमल रोक नहीं सकतीं, क्योंकि नागररिकता से जुड़ा मुद्दा केंद्र सरकार के दायरे में आता है। उसे ही यह तय करने का हक है कि कौन इस देश का नागरिक होगा और कौन नहीं।
वहीं ममता बनर्जी सोमवार को कोलकाता में नागरिक संशोधन बिल के विरोध में बड़ी रैली करने जा रही हैं। हालांकि, केंद्र का कहना है कि संविधान की सातवीं सूची के तहत राज्य इस बिल को लागू करने से मना नहीं कर सकते।
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