Sunday - 7 January 2024 - 5:48 AM

भारत की जीडीपी पर विदेशी मीडिया ने क्या लिखा?

जुबिली न्यूज डेस्क

1996 से भारत में तिमाही नतीजों की गणना शुरू हुई है और तब से लेकर अब तक पहली बार जीडीपी में निगेटिव ग्रोथ देखने को मिली है। सोमवार को केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय ने जीडीपी आंकड़े जारी किए जिसमें यह नकारात्मक रूप से 23.9 फीसदी रही है।

जीडीपी ग्रोथ में इस कमी के लिए सरकार भले ही कोरोना महामारी और उसकी वजह से हुई तालाबंदी को जिम्मेदार बता रही है, लेकिन यह एकमात्र कारण नहीं है। कोरोना आने से पहले से ही अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही थी। कोरोना से पहले ही पांच साल में देश की जीडीपी 50 फीसदी कम हो गई थी। यह 8 से 4.2 पर आ गया था। रही सही कसर कोरोना महामारी ने पूरी कर दी।

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कोरोना महामारी की वजह से दुनिया के अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था को चोट पहुचाई है पर सबसे ज्यादा नुकसान भारत को हुआ है। अमरीका की अर्थव्यवस्था में जहां इसी तिमाही में 9.5 फीसदी की गिरावट है, वहीं जापान की अर्थव्यवस्था में 7.6 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

दुनिया में एक समय सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था रहे भारत के इस नए जीडीपी आंकड़े से जुड़ी खबरों और लेख को दुनियाभर के तमाम अखबारों और मीडिया हाउसेज ने अपने यहां जगह दी है। आइये जानते हैं किसने क्या कहा है?

अमेरिका : अर्थव्यवस्था का नुकसान आंकड़ों से ज्यादा

भारत की बदहाल अर्थव्यवस्था की खबर को अमेरिकी मीडिया ने अपने यहां जगह दी है। अमेरिका की मीडिया हाउस सीएनएन ने इस खबर को अपने यहां जगह दी है। उसने ‘भारतीय अर्थव्यवस्था रिकॉर्ड रूप से सबसे तेजी से सिकुड़ी’  शीर्षक से खबर लगाई है। इस खबर में कैपिटल इकोनॉमिक्स के शीलन शाह कहते हैं कि इसकी वजह से अधिक बेरोजगारी, कंपनियों की नाकामी और बिगड़ा हुआ बैंकिंग सेक्टर सामने आएगा जो कि निवेश और खपत पर भारी पड़ेगा।

वहीं अमरीकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी अपने यहां इस खबर को जगह दी है। अखबार लिखता है कि अर्थव्यवस्था के आंकड़ों के मामले में भारत की तस्वीर कुछ अलग है क्योंकि यहां अधिकतर लोग ‘अनियमित’  रोजगार में लगे हैं जिसमें काम के लिए कोई लिखित करार नहीं होता और अकसर ये लोग सरकार के दायरे से बाहर होते हैं, इनमें रिक्शावाले, टेलर, दिहाड़ी मज़दूर और किसान शामिल है।

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अर्थशास्त्री मानते हैं कि आधिकारिक आंकड़ों में अर्थव्यवस्था के इस हिस्से को नजरअंदाज करना होता है जबकि पूरा नुकसान तो और भी अधिक हो सकता है।

अखबार ने लिखा है कि 130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश की अर्थव्यवस्था कुछ ही सालों पहले 8 फीसदी की विकास दर से बढ़ रही थी जो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक थी, कोरोना महामारी से पहले ही इसमें गिरावट शुरू हुई। उदाहरण के लिए पिछले साल अगस्त में कार बिक्री में 32 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई जो दो दशकों में सबसे अधिक थी।

अखबार ने पूरी डिटेल दी है कि किस क्षेत्र में कितनी गिरावट आई है। अखबार ने लिखा है कि सिर्फ कृषि क्षेत्र से ही अच्छी खबर आई है जो मानसून की अच्छी बारिश के कारण 3 फीसदी से 3.4 फीसदी के दर से विकसित हुआ है।

 जापान : मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को जर्जर बनाया

जापान के अखबार में भी इस खबर को जगह मिली है। बिजनेस अखबार निकेई एशियन रिव्यू में भारतीय वित्त आयोग के पूर्व सहायक निदेशक रितेश कुमार सिंह ने एक लेख लिखा है जिसका शीर्षक है, ‘नरेंद्र मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को जर्जर बनाया।’

रितेश ने लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी की व्यापार समर्थित छवि होने के बावजूद वो अर्थव्यवस्था संभालने में अयोग्य साबित हो रहे हैं, 2025 तक अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन (खरब) डॉलर की इकोनॉमी बनाने का सपना अब पूरा होता नहीं दिख रहा है।

लेख में लिखा है कि भारत के सबसे आधुनिक औद्योगिक शहर से आने वाले मोदी ने वादा किया था कि वो अर्थव्यवस्था को सुधारेंगे और हर साल 1.2 करोड़ नौकरियां पैदा करेंगे। छह साल तक दफ्तर से आशावाद की लहर चलाने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था जर्जर हो गई है, जिसमें जीडीपी चार दशकों में पहली बार इतनी गिरी है और बेरोजगारी अब तक के चरम पर है।

रितेश लिखते हैं, विकास के बड़े इंजन, खपत, निजी निवेश या निर्यात ठप्प पड़े हैं। ऊपर से यह है कि सरकार के पास मंदी से बाहर निकलने और खर्च करने की क्षमता नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की इकलौती चूक सिर्फ अर्थव्यवस्था संभालना नहीं है बल्कि वो भ्रष्टाचार समाप्त करने के मामले में फेल हुए हैं।

इस लेख में अर्थव्यवस्था के नीचे जाने की वजह जीएसटी के अलावा, एफडीआई, 3600 उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाना और प्रधानमंत्री मोदी का सिर्फ कुछ ही नौकरशाहों पर यकीन करना बताया गया है।

वहीं ब्रिटेन के अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने इस खबर को ‘भारतीय अर्थव्यवस्था एक तिमाही के बराबर सिकुड़ी’  शीर्षक से प्रकाशित किया है।

अखबार ने लिखा है कि भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस की मार से पहले ही कमजोर हालत में थी लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी तालाबंदी ने मैन्युफ़ैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन जैसे उद्योगों पर बड़ा असर डाला और व्यावसायिक गतिविधियां तकरीबन ठप्प पड़ गईं।

अखबार ने आगे लिखा है कि आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इंटरव्यू के दौरान बेहद विश्वास से कहा था कि आरबीआई कमजोर आर्थिक स्थिरता या बैंकिंग प्रणाली को महामारी के झटके से बचा सकता है, इसमें अगले स्तर का आर्थिक प्रोत्साहन दिए जाने का अनुमान लगाया गया है।

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