Sunday - 22 June 2025 - 11:09 PM

विदेश नीति के भगवाकरण के कारण भारत दुनिया में अकेला पड़ गया है

उबैद उल्लाह नासिर

पंडित जवाहर लाल नेहरु द्वारा प्रतिपादित भारत की विदेश नीत राष्ट्रीय हितों के साथ साथ हमारे स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों के सुन्दर समावेश रही है।

भारत ने विश्वशांति, सद्भावना, और सभी देशों की स्वतंत्रता के लिए सदैव प्रयत्न किया और और किसी राष्ट्र का किसी अन्य कमज़ोर अविकसित राष्ट्र पर दादागिरी चलाने का सदैव विरोध किया, गुट निर्पेक्ष आन्दोलन नेहरु की दुनिया को सब से बड़ी देन है जिस से सोवियत संघ और अमरीका के नेत्रित्व वाली सैनिक गठजोड़ों से एशिया और अफ्रीका के नए नए आजाद हुए अविकसित देशों को दूर रखा और शीत युद्ध के माहौल में विश्व शान्ति सुनिश्चित की।

नेहरु की इन्हीं कोशिशों ने उन्हें दुनिया भर में शांति दूत का दर्जा दिलवाया था वह यूरोप में Prophet of Peace थे तो अरब देशों में “रसूल अल्सलाम” थे।

जो लोग आज भारत को विश्व गुरु बनाने की बात करते हैं उन्हें नहीं पता या वह जान बूझ कर इस सच्चाई को नकारते हैं कि सत्य और अहिंसा की शक्ति से महात्मा गाँधी और और अपनी वैश्विक नीतियों के कारण जवाहर लाल नेहरु ने भारत को आज़ादी से पहले ही विश्व गुरु बना दिया था और एशिया व अफीका के अधिकतर देशों ने गांधी जी के सत्य और अहिंसा के गुरु मन्त्र से न केवल अपनी आज़ादी हासिल की बल्कि दूसरे विश्व युद्ध की तबाहियों से मानवता को बचाए रखा।

दुनिया के 150 से अधिक देशों में गांधी और नेहरु के स्टेचू और उनके नाम पर सड़कें यूँ ही नहीं बन गयी है,संयुक्त राष्ट्र के बाद गुट निर्पेक्ष आन्दोलन दुनिया के देशों का सब से बड़ा गुट था जिसका नेत्रित्व भारत करता था , भारत आज भी गाँधी और नेहरु के नाम से यूँही नहीं पहचाना जाता है।

आज जब दुनिया तीसरे विश्व युद्ध नहीं बल्कि एटमी युद्ध के दहाने पर खड़ी है नेहरु जैसे नेता की ज़रूरत महसूस कर रही है जिन्होंने कोर्रिया, क्यूबा, कांगो, और सुएज जैसी समस्याओं को हल करा के दुनिया एटमी युद्ध की तबाही से बचा लिया था।

नेहरु की इस विदेश नीति पर देश में भी आम सहमति थी और सरकारों के बदलने से भी इस नीति में कोई विशेष बदलाव नही किया गया था।

सोवियत यूनियन के विघटन के बाद नए वैश्विक हालात को देखते हुए भारत ने अपनी विदेश और आर्थिक दोनों नीतियों में राष्ट्र हित को ध्यान में रखते हुए परिवर्तन किया लेकिन उसका मूल स्वरूपं नहीं बदलने दिया।

लेकिन मोदी जी ने सत्ता संभालने के बाद से भारत के इतिहास से नेहरु के नाम को ही मिटाने की अपनी मुहिम के तहत जहां देश के अंदर ही बहुत कुछ बदल दिया वहीं विदेश नीति में भी बड़ा परिवर्तन किया है।

वैसे तो पिछले दस वर्षों में मोदी ने लगभग 10 अरब रुपया खर्च कर के पूरी दुनिया का भ्रमण कर लिया लेकिन भारत की जो साख कभी बनी हुई थी वह कितना मिट गयी है इसका अंदाज़ा इसी से हो सकता है की हालिया ऑपरेशन सिन्दूर के बाद कोई भी देश भारत के समर्थन में खुल कर नहीं आया जबकि पाकिस्तान को IMF से खरबों डालर का क़र्ज़ भी मिल गया रूस और आज़रबाईजान से कई प्रोजेक्टों के लिए पैसा मिला चीन तो उसका विश्वासनीय मित्र है ही।

उधर अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प एक दर्जन बार कह चूका है की भारत पाकिस्तान के बीच उस ने युद्ध विराम कराया यह भारत की उस घोषित नीति के खिलाफ है कि वह भारत पाकिस्तान के मामले में किसी अन्य देश को शामिल नहीं करेगा और तमाम समस्याएं आपस में ही सुलझाएगा।

कोढ़ में खाज उसने पहलगाम हत्याकांड के मास्टरमाइंड पाकिस्तानी सेना के प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को विशेष रूप से white house में आमंत्रित कर के डिनर कराया और अहम मुद्दों पर पाक्सितन के प्रधान मंत्री या अन्य मंत्रियों से नहीं बल्कि सेना प्रमुख से बात की I ऑपरेशन सिन्दूर के लिए समर्थन जुटाने और अन्य देशों के सामने भारत का स्टैंड क्लियर करने के लिए मोदी ने कई सर्दालीय प्रतिनिधि मंडल विभिन्न देशों में भेजे यह प्रतिनिधि मंडल कितने सफल हुए इसका अभी तक कोई विवरण सामने नहीं आया है I

मोदी ने जहाँ एक और देश की राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल कर देश को गाँधी नेहरु के बताये रास्ते और आंबेडकर के बनाये संविधान से दूर ले जाने का सफल प्रयत्न किया वही डिप्लोमेसी को भी इस ज़हर से अछूता नहीं रखा।

यूँ तो उन्होंने पाकिस्तान समेत अरब और मुस्लिम देशों की कई बार यात्राएं कीं वहां के सर्वोच्च नाग्रिक सम्मान भी हासिल किये फिलस्तीन भी गए फिलस्तीन समस्या के हल के लिए दो राज्य solution की भी हिमायत की किये लेकिन उनका स्पष्ट झुकाव इजराइल की और रहा है उनके दोस्त अडानी को वहां बड़े बड़े ठेके मिले हेफा रिफाइनरी में भी उनका पैसा लगा है, जो ईरान की बमबारी में तबाह हो चुकी है और भारतीय बेंकों को तगड़ा चूना लगा है, हद तो तब हो गयी जब इजराइल ने गज़ा को तबाह करन और फिलस्तीनियों का नरसंहार शुरू किया और भारत ने उसे असलहा भेजना शुरू किया अर्थात गाजा में 60-70 हज़ार फिलस्तीनियों के नरसंहार में गौतम गाँधी और नेहरु का देश सहभागी हो गया ज़ाहिर है यह देश में ही नहीं बल्कि सात समंदर पार देश में भी मुसलमानों से दुश्मनी के कारण उठाया गया क़दम था , यही नहीं संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में जब गाजा में युद्ध विराम का प्रस्ताव आया तो भारत ने उससे दूरी बना ली जो एक प्रकार से ग़ज़ा नरसंहार का खुला समर्थन था।

यहाँ दलील यह दी जाती है की इजराइल ने कारगिल युद्ध में भारत को असलहा दिया था इसलिए उसके एहसान का बदला चुकाने के लिए भारत ने इजराइल को हथियार दिए लेकिन यह दलील देने वाले बुनियादी फर्क भूल जाते हैं कि भारत ने कारगिल युद्ध पाकिस्तान से अपनी ज़मीन वापस लेने के लिए मजबूरन लड़ा था जो अन्तर्राष्ट्रीय कानून के तहत भारत का अधिकार है जबकि इजराइल का गज़ा पर हमला और वहां नरसंहार खुला हुआ युद्ध अपराध है, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने भी इसे युद्ध अपराध माना है और इसरायली प्रधान मंत्री नितिन्याहू के खिलाफ अरेस्ट वारंट भी जारी किया है।

अभी ईरान पर इजराइल के हमले की भी भारत ने खुल कर आलोचना नहीं की है लेकिन इजराइल के प्रति उसकी हमदर्दी जग ज़ाहिर है और जिसे उनका पालतू “गोदी मीडिया “ बार बार झूटी एक तरफ़ा प्रो इजराइल ख़बरें फैला कर ज़ाहिर करता रहता है ,हमें ध्यान रखना चाहिए की अरब देशों और ईरान से भारत के ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं आज भी हमारे सामाजिक और आर्थिक हित व रिश्ते उन से जुड़े हैं।

भारत के लगभग डेढ़ करोर लोग विभिन्न अरब देशं में नौकरी और कारोबार करते हैं और उनकी भेजी धनराशि भारत की विदेश मुद्रा का एक बड़ा साधन है।याद दिला दें की अटल जी ने जब दूसरा परमाणु परीक्षण किया था तब अमरीका समेत सभी यूरोपी देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया था जिससे निपटने के लिए अटल सरकार ने रिसर्जेंट इंडिया बांड जारी किये थे इस बांड में सब से अधिक पैसा अरब देशों में कार्यरत भारतीयों ने ही भेजा था।

गोवा और पांडिचेरी के मुक्ति संग्राम में मिस्र्र के राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर ने यदि सुएज नहर से पुर्तगाल का युद्धक जहाज़ भारत आने दिया होता तो गोवा मुक्त संग्राम भारत को बहुत मंहगा पड़ता इसी तरह नरसिम्हा राव जी के समय में जब पाकिसतानी साज़िश से मानव अधिकार आयोग की सिफारिश पर भारत पर प्रतिबंध लगने का खतरा था तो ईरान ने पाकिस्तानी प्रस्ताव का विरोध कर के भारत को एक बहुत बड़ी समस्या से बचा लिया था।

आज ईरान पर अमरीका ने फिर धोके से हमला कर के सभी अंतर्राष्ट्रीय नियमों का ही खुला उल्लंघन नहीं किया है बल्कि दुनिया के सामने एटमी और तीसरे विश्व युद्ध का रास्ता खोल दिया है।

विश्व शान्ति और स्थिरता तथा आर्थिक तबाही वाले इस अमरीकी दुस्साहस पर प्रधान मंत्री मोदी ने ईरानी राष्ट्रपति से बात की और तनाव कम करने तथा क्षेत्र में शांति स्थापित करने की बात कही सवाल यह है की तनाव अमरीका और इजराइल ने बढाया है तो ईरान को यह उपदेश क्यों ? क्या मोदी चाहते हैं कि ईंरान अपने ऊपर होने वाले इस कायरता पूर्ण हमले पर चुप बैठा रहे ?

देश की राजनीति के भगवाकरण के बाद मोदी सरकार ने विदेशनीति का भी भगवाकरण कर दिया है diplomacy एक गम्भीर और दूरदृष्टि वाला विषय है ,ज़बरदस्ती की राष्ट अध्यक्ष के गले पड़ना बेमतलब की, खी खी हंसी ,लफ्फाजी ,हास्य्स्पाद वस्त्रों का चयन राष्ट्र अध्यक्षों को झूला झुलाना आदि से डिप्लोमेसी और विदेश नीति नहीं चलती दुखद है की मोदी के सामने जय शकर जैसा करियर डिप्लोमेट भी हंसी का पात्र बना हुआ है भारत की विदेश नीति संक्रमण स्थित में है इसे संभालें की तुरंत आवश्यकता है एक बात का और ध्यान रखना आवश्यक है आपके घरेलु हालत आपके आपके अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर असर अवश्य डालते हैं चाहे लोकतंत्र की बात हो चाहे अल्पसंख्यकों की स्थित की बात हो चाहे प्रेस की आज़ादी की बात हो इत्यादि इत्यादि में भारत की INTERNATIONAL RANKING बहुत नीचे आ चुकी है इसे सुधारे बिना भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वह स्थान दोबारा नहीं पा सकता जो गांधी नेहरु दे गए थे और जिसे बाद के सभी प्रधानमंत्रियों ने काफी हद तक बचाए और बनाए रखा था मग र्जिसे मोदी ने मटियामेट कर दिया है।

Radio_Prabhat
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