जुबिली स्पेशल डेस्क
बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल आरजेडी को बड़ा झटका लगा है। महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे तेजस्वी यादव से जिस प्रदर्शन की उम्मीद थी, नतीजे उससे बिल्कुल उलट निकले।
आरजेडी की कमजोर स्थिति ने राजनीतिक विश्लेषकों को भी हैरान कर दिया है। सबसे बड़ा सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि तेजस्वी के बड़े चुनावी वादों के बावजूद पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक मुस्लिम और यादव क्यों दूर हो गया?
आरजेडी की हार के 5 बड़े कारण
ताज़ा रुझानों और नतीजों में आरजेडी सिर्फ 27 सीटों पर सिमटती दिख रही है, जबकि कांग्रेस महज 5 सीटें हासिल करती नजर आ रही है। इस चुनाव में आरजेडी ने 50 यादव और 18 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन इन प्रयासों का लाभ वोटों में बदलता दिखाई नहीं दिया।

1. मुस्लिम वोटों का AIMIM की ओर खिसकना
कई मुस्लिम बहुल इलाकों में ओवैसी की AIMIM ने आरजेडी के वोट बैंक में सीधी सेंध लगा दी। बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं ने आरजेडी के बजाय AIMIM को प्राथमिकता दी, जिससे महागठबंधन की सीटों पर सीधा असर पड़ा।
2. मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव जेडीयू की ओर
जहां जेडीयू और आरजेडी के मुस्लिम उम्मीदवार आमने-सामने थे, वहां जेडीयू को साफ बढ़त मिलती दिखी। यह ट्रेंड आरजेडी की पारंपरिक सामाजिक समीकरणों पर बड़ा झटका साबित हुआ।
3. यादव मतदाताओं की नाराज़गी और वोटों का बिखराव
कई ऐसी सीटें थीं जहां यादव मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इस बार इन इलाकों में वोटों का बिखराव दिखाई दिया। यादव समुदाय का एक हिस्सा आरजेडी से दूरी बनाता दिखा, जिससे कई उम्मीदें धरी की धरी रह गईं।
4. जनसुराज पार्टी का एंट्री और विपक्षी वोट कटना
जनसुराज पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में उतरी और कई सीटों पर विपक्ष के वोट काटे। इसका नुकसान सीधे महागठबंधन को उठाना पड़ा, जो पहले ही कमजोर स्थिति में दिख रहा था।
5. सरकारी योजनाओं का असर और जातीय राजनीति की कमजोर पकड़
राज्य और केंद्र की सत्ताधारी पार्टी की योजनाओं ने परंपरागत जातीय समीकरणों पर बड़ा प्रभाव डाला। नीतीश कुमार की नीतियों का लाभ यादव सहित कई समुदायों तक पहुँचा, जिससे इन समूहों का झुकाव एनडीए की ओर बढ़ गया। इसका सीधा नुकसान आरजेडी को हुआ, जिसका वोट शेयर स्पष्ट रूप से गिरता नजर आया।
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