
डॉ. उत्कर्ष सिन्हा
जैसे ही इस बात के संकेत मिलने लगे कि बिहार विधान सभा के चुनाव निर्धारित वक्त पर ही होंगे वैसे ही बिहार के सियासी मैदान में हलचल तेज हो गई। बिहार वैसे भी अपने दल बदलू नेताओं और नए नए राजनीतिक समीकरणों के लिए जाना जाता रहा है, शायद ही ऐसा कोई चुनाव हुआ हो जब गठबंधनों के स्वरूप न बदले हों । बीते चुनावों में जो दल एनडीए में रहा होगा कोई गारंटी नहीं है कि इस बार के चुनावों में भी वो उसी पाले में रहे। चुनावों की तो छोड़िए, सरकार बनने के बाद भी मुख्य पार्टी जेडीयू ने महागठबंधन छोड़ कर एनडीए का रास्ता पकड़ लिया था।
लेकिन बीते चुनाव में जो नारा लगा था ‘बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है’ उस नारे की धार कमजोर पड़ चुकी है, सुशासन बाबू के ब्रांड नेम से पहचाने जाने वाले नीतीश कुमार पर लगातार हमले हो रहे हैं और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों से ले कर गठबंधन के सहयोगी तक सवाल करने से नहीं चूक रहे।
बिहार के एक बड़े नेता और नीतीश सरकार के मंत्री श्याम रजक ने पार्टी छोड़ कर राष्ट्रीय जनता दल में वापसी कर ली है, तो राष्ट्रीय जनता दल के भी 3 विधायक नीतीश के पाले में चले गए।
ये घरवापसी भी गजब चीज है, अक्सर चुनावों के वक्त ही पुराने घर की याद आती है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में बहुतों की अंतरात्मा जागेगी और घरवापसी का सिलसिला तेज होगा।
क्या चल रहा है बिहार में और सियासत के दंगल में कैसी नई टीमें उतारने वाली है, आज करेंगे इसी पर बात।
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