डा. उत्कर्ष सिन्हा
व्लादिमिर पुतिन की यह भारत यात्रा भारत–रूस रणनीतिक साझेदारी को अगले दशक के लिए री‑सेट करने की कोशिश है, जिसमें रक्षा, ऊर्जा, परमाणु, व्यापार व टेक्नोलॉजी पर ठोस समझौते तय माने जा रहे हैं। साथ ही यह दौरा अमेरिका–पश्चिम के दबाव के बीच भारत की “रणनीतिक स्वायत्तता” (strategic autonomy) की लाइन को मज़बूत तर्क व वैकल्पिक विकल्प देता है, जिससे दबाव को बैलेंस करने में मदद मिलती है, लेकिन उसे पूरी तरह समाप्त नहीं करता।
यात्रा का समय, प्रतीक और राजनीति
पुतिन 4–5 दिसंबर 2025 को 23वें इंडिया–रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए नई दिल्ली पहुंचे हैं, जो चार साल के अंतराल के बाद उनकी पहली भारत यात्रा है और भारत–रूस रणनीतिक साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने का भी प्रतीक है। निजी डिनर, राजघाट पर श्रद्धांजलि, राष्ट्रपति द्वारा राजकीय भोज और हैदराबाद हाउस में औपचारिक शिखर वार्ता—ये सभी संकेत हैं कि दिल्ली और मॉस्को इस रिश्ते को दिखावटी नहीं, बल्कि “विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी” के स्तर पर बनाए रखना चाहते हैं।

यूक्रेन युद्ध के बाद से पुतिन का पश्चिमी राजधानियों में बड़ा बहिष्कार रहा है, ऐसे में दिल्ली की मेज़बानी मॉस्को के लिए कूटनीतिक सांस और भारत के लिए यह संदेश है कि वह पश्चिमी खेमेबंदी के बावजूद अपनी स्वतंत्र विदेश नीति जारी रखेगा।
रक्षा और सुरक्षा
रूस अब भी भारत का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता है—S‑400, ब्रह्मोस, सुखोई‑30 MKI, T‑90 टैंकों से लेकर साझा उत्पादन व तकनीक हस्तांतरण तक पूरा ढांचा खड़ा है। इस बार ध्यान दो बातों पर है: पहला मौजूदा प्रणालियों (S‑400, स्पेयर पार्ट्स, मेंटेनेंस) की डिलीवरी व सर्विसिंग और दूसरा , “मेक इन इंडिया” के तहत अधिक को‑प्रोडक्शन, जैसे मिसाइल, गोला‑बारूद, इंजन आदि का भारत में निर्माण, ताकि भविष्य में पश्चिमी प्रतिबंधों से सप्लाई चेन बाधित न हो।
रूस की संसद ने समय रहते RELOS (Reciprocal Exchange Logistics Agreement‑जैसा समझौता) को मंजूरी दी है, जिससे दोनों देशों की नौसेनाएं एक‑दूसरे की सुविधाओं का ईंधन, मरम्मत और लॉजिस्टिक के लिए इस्तेमाल कर सकेंगी, जो हिंद–प्रशांत और आर्कटिक दोनों में भारत की पहुंच बढ़ा सकता है।
ऊर्जा और तेल‑गैस
यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस भारत का सबसे बड़ा कच्चे तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है, और रियायती तेल ने भारत के चालू खाते और महंगाई पर बड़ा बफर दिया है; यह प्रवृत्ति आगे भी दीर्घकालिक अनुबंधों और पेमेंट मैकेनिज़्म (रुपया–रूबल या वैकल्पिक करेंसी) के ज़रिए मजबूत की जा सकती है।
गैस, LNG, कोयला, और उर्वरक आपूर्ति पर भी अलग‑अलग MOUs व लॉन्ग‑टर्म कॉन्ट्रैक्ट संभव हैं, ताकि भारत के ऊर्जा संक्रमण के दौरान सस्ती आपूर्ति सुनिश्चित रहे।
परमाणु ऊर्जा और टेक्नोलॉजी
तमिलनाडु का कुडनकुलम प्लांट भारत का अकेला ऐसा परमाणु संयंत्र है जो किसी दूसरे देश के सहयोग से बना है, और भारत–रूस संयुक्त बयान में इसे भविष्य के सहयोग की धुरी माना गया है।
नए यूनिट्स के अलावा “स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर” (SMR) और ईंधन चक्र व नॉन‑पावर एप्लिकेशन पर भी बातचीत की संभावना बताई जा रही है, जिससे भारत के कम‑कार्बन ऊर्जा लक्ष्य को सहारा मिल सकता है।
व्यापार, कनेक्टिविटी और नई अर्थव्यवस्था
भारत–रूस व्यापार में असंतुलन (भारत का भारी व्यापार घाटा) एक प्रमुख चिंता है, इसलिए “2030 तक रणनीतिक आर्थिक सहयोग का कार्यक्रम” जैसा रोडमैप प्रस्तावित है, जो मैन्युफैक्चरिंग, फार्मा, कृषि‑प्रोसेसिंग, हथियार निर्माण और अपारंपरिक सेक्टरों में साझेदारी बढ़ाने की दिशा देगा।
इंटरनेशनल नॉर्थ–साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC), आर्कटिक रूट और रूसी सुदूर‑पूर्व (Far East) में भारतीय निवेश—ये तीनों भारत को मध्य एशिया, यूरोप और उत्तरी समुद्री मार्ग में रणनीतिक आर्थिक उपस्थिति देने वाले बिंदु हैं, जिन पर इस यात्रा में नई सहमति और प्रोजेक्ट‑विशेष घोषणाएं हो सकती हैं।
फाइनेंशियल पेमेंट सिस्टम पर भी चर्चा महत्वपूर्ण होगी. रूसी “मिर” कार्ड और भारतीय RuPay के बीच इंटरऑपरेबिलिटी, राष्ट्रीय भुगतान प्रणालियों के लिंक, और डॉलर पर निर्भरता घटाने वाले विकल्प CAATSA और अन्य वित्तीय प्रतिबंधों के जोखिम को घटा सकते हैं।
डिजिटल टेक्नोलॉजी, स्पेस (गगनयान में रूसी सहयोग) और साइबर सुरक्षा को भी भविष्य के सहयोग के प्रमुख क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया जा रहा है।
अमेरिका का दबाव और भारत को मिलने वाली “राहत”
अमेरिका का मुख्य दबाव दो मोर्चों पर है—रूसी हथियारों की खरीद (खासकर S‑400) और बड़ी मात्रा में रियायती रूसी तेल आयात, जिन पर CAATSA जैसे कानूनों का साया बना रहता है। इस यात्रा से भारत को अमेरिका‑पश्चिमी दबाव से निकलने में तीन प्रकार की “मदद” मिलती है:
वैकल्पिक क्षमता और लीवरेज
अगर रूस से सस्ती ऊर्जा, महत्त्वपूर्ण हथियारों के स्पेयर और को‑प्रोडक्शन की दीर्घकालिक गारंटी मिलती है तो भारत के पास वास्तविक विकल्प मौजूद रहते हैं; इससे अमेरिका से डील करते समय भारत “नो‑ऑप्शन” की स्थिति में नहीं रहता और सौदेबाज़ी की क्षमता बढ़ती है।
रूस भारत को संयुक्त R&D और मैन्युफैक्चरिंग में अधिक स्पेस दे रहा है, जो पश्चिमी आपूर्तिकर्ताओं के मुकाबले भारत की रक्षा‑आत्मनिर्भरता को तेज़ कर सकता है; यह बात वॉशिंगटन को भी ध्यान में रखनी पड़ती है।
राजनीतिक संदेश और रणनीतिक स्वायत्तता
यूक्रेन युद्ध के बीच पश्चिम का “आइसोलेशन नैरेटिव” जब भारत जैसे बड़े लोकतंत्र के साथ खुले शिखर, सैन्य लॉजिस्टिक समझौते और ऊर्जा कॉन्ट्रैक्ट में बदलता दिखता है तो यह संकेत जाता है कि वैश्विक व्यवस्था बहुध्रुवीय है और अमेरिका अकेला नियम निर्माता नहीं है।
भारत QUAD और अमेरिका के साथ इंडो‑पैसिफिक सहयोग जारी रखते हुए रूस के साथ यह स्तर बनाए रखता है, तो “दोहरी संरेखण” (dual alignment) की उसकी नीति एक बार फिर वैध ठहरती है; इससे वॉशिंगटन पर भी यह दबाव रहेगा .
Jubilee Post | जुबिली पोस्ट News & Information Portal
