Monday - 24 November 2025 - 4:30 PM

उच्च शिक्षा में विरोधाभास: “प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस” और स्थायी शिक्षकों की आपूर्ति

प्रो.  अशोक कुमार
(पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर)

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली एक अभूतपूर्व चौराहे पर खड़ी है। एक ओर, सरकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप शिक्षा की गुणवत्ता और प्रासंगिकता को बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। इसी दिशा में “प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस” (PoP) योजना की शुरुआत की गई है, जिसका उद्देश्य अनुभवी उद्योग विशेषज्ञों को सीधे शिक्षण संस्थानों से जोड़ना है। दूसरी ओर, देश के केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों में स्थायी शैक्षणिक पदों की एक गंभीर कमी बनी हुई है, जो शिक्षण के बुनियादी ढांचे को कमजोर कर रही है। यह स्थिति एक तीखे विरोधाभास को जन्म देती है, जिसे ‘मकान बना नहीं और सोने के पलंग आ गए’ की उपमा से समझा जा सकता है।

प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस (PoP) योजना का लक्ष्य और औचित्य 

प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस योजना को संख्यात्मक कमी (Quantitative Gap) को भरने के लिए नहीं, बल्कि गुणात्मक और प्रासंगिक कमी (Qualitative and Relevance Gap) को दूर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

शिक्षा को उद्योग से जोड़ना

PoP का मुख्य उद्देश्य ऐसे पेशेवरों को कक्षा में लाना है जिनके पास अपने संबंधित क्षेत्रों (जैसे इंजीनियरिंग, मीडिया, वित्त, कला) में कम से कम 15 वर्षों का उत्कृष्ट पेशेवर अनुभव हो। पारंपरिक अकादमिक शिक्षक अक्सर गहन सैद्धांतिक ज्ञान से लैस होते हैं, लेकिन उन्हें उद्योग की वर्तमान गति और व्यावहारिक अनुप्रयोगों की जानकारी कम हो सकती है। PoP विशेषज्ञ छात्रों को नवीनतम उद्योग प्रवृत्तियों, व्यावसायिक नैतिकता, समस्या-समाधान कौशल और उद्यमिता के बारे में सीधे जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे पाठ्यक्रम रोजगारपरक (Employable) बन जाता है।

NEP 2020 का क्रियान्वयन

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का एक प्रमुख सिद्धांत बहु-विषयक शिक्षा (Multidisciplinary Education) और व्यावहारिक अनुभव पर जोर देना है। PoP की नियुक्ति इस लक्ष्य को तत्काल पूरा करने का एक प्रभावी और लचीला तरीका है, क्योंकि यह पारंपरिक भर्ती की जटिलताओं से बचता है। यह योजना शैक्षणिक संस्थानों को अपनी जरूरत के अनुसार अल्पकालिक विशेषज्ञता को शामिल करने की अनुमति देती है।

लचीलापन और त्वरित समाधान

PoP की नियुक्तियाँ PhD या NET/SET जैसी अनिवार्य शैक्षणिक योग्यताओं से मुक्त होती हैं और इन्हें संविदा या मानदेय के आधार पर किया जाता है। यह विश्वविद्यालयों को विशेषज्ञों को तेजी से और लचीले ढंग से नियुक्त करने की स्वतंत्रता देता है, जो वर्षों तक चलने वाली नियमित भर्ती प्रक्रिया के विपरीत है।

विरोधाभास: ‘बुनियादी’ शिक्षकों की उपेक्षा

PoP योजना के इन तर्कों के बावजूद, स्थायी शिक्षकों की कमी को प्राथमिकता न देना एक गंभीर विसंगति है।

गंभीर संख्यात्मक कमी

देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों, खासकर राज्य विश्वविद्यालयों में, हजारों की संख्या में स्थायी शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। ये असिस्टेंट प्रोफेसर ही कक्षा में शिक्षण का बुनियादी आधार होते हैं। वे न केवल पढ़ाते हैं, बल्कि पाठ्यक्रम का विकास करते हैं, अनुसंधान करते हैं, प्रशासनिक कार्य संभालते हैं और छात्रों को लंबी अवधि तक सलाह देते हैं। जब कक्षा में बुनियादी शिक्षक ही उपलब्ध नहीं हैं, तो पूरी शिक्षा प्रणाली अस्थिर हो जाती है।

दीर्घकालिक स्थिरता का अभाव

PoP नियुक्तियाँ अधिकतम चार वर्षों तक सीमित होती हैं और आमतौर पर पूर्णकालिक नहीं होती हैं। ये विशेषज्ञ संस्थान को दीर्घकालिक स्थिरता, शोध संस्कृति, और अकादमिक नेतृत्व प्रदान नहीं कर सकते। एक मजबूत शैक्षणिक संस्थान के लिए यह आवश्यक है कि उसमें स्थायी संकाय हो जो अनुसंधान और ज्ञान सृजन को निरंतर आगे बढ़ा सके।

‘शोपीस’ बनने का खतरा

यदि किसी विश्वविद्यालय में 50% पद खाली हैं और केवल कुछ PoP की नियुक्ति होती है, तो यह योजना कमी को छिपाने का एक दिखावटी प्रयास मात्र बनकर रह जाएगी। यह ‘सोने का पलंग’ एक अपूर्ण ‘मकान’ में एक महंगी वस्तु की तरह है, जो बुनियादी रहने की जरूरतों को पूरा नहीं करता।

‘बैक डोर एंट्री’ की आशंकाएँ

PoP योजना पर लगने वाला सबसे गंभीर आरोप ‘बैक डोर एंट्री’ का है। यह आशंका योजना की संरचना में निहित लचीलेपन के कारण उत्पन्न होती है।

योग्यता में छूट और पारदर्शिता की कमी

चूंकि PoP नियुक्ति के लिए UGC के सामान्य योग्यता नियम (PhD, NET) लागू नहीं होते, इसलिए नियुक्तियाँ पूरी तरह से ‘उत्कृष्ट पेशेवर अनुभव’ की व्यक्तिपरक परिभाषा पर आधारित होती हैं। यदि चयन प्रक्रिया को पर्याप्त रूप से पारदर्शी नहीं रखा जाता, तो यह राजनीतिक या व्यक्तिगत लाभ के लिए दुरुपयोग का रास्ता खोल सकती है। आशंका यह है कि सेवानिवृत्त नौकरशाहों, या सत्ताधारी प्रतिष्ठान के करीबी व्यक्तियों को बिना किसी कठोर अकादमिक जाँच के इन प्रतिष्ठित पदों पर नियुक्त किया जा सकता है।

शैक्षणिक तटस्थता पर प्रश्न

एक शैक्षणिक संस्थान की तटस्थता और बौद्धिक स्वतंत्रता महत्वपूर्ण होती है। यदि PoP की नियुक्तियाँ योग्यता के बजाय संबंधों पर आधारित होती हैं, तो यह विश्वविद्यालय के भीतर शैक्षणिक माहौल को दूषित कर सकती है और अनुसंधान की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है।

स्थाई संकाय का मनोबल

नियमित शिक्षक, जो वर्षों तक कठोर शैक्षणिक प्रतिस्पर्धा (NET, PhD, प्रकाशन) से गुजरकर आते हैं, उन्हें यह देखकर निराशा हो सकती है कि उनके ही समकक्ष एक पद पर एक ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति हो रही है जिसने अकादमिक मार्ग का पालन नहीं किया है। यह स्थायी संकाय के मनोबल और प्रतिबद्धता को प्रभावित कर सकता है।

आगे का रास्ता: संतुलन स्थापित करना

PoP योजना को सफल बनाने और विरोधाभास को दूर करने के लिए संतुलन स्थापित करना आवश्यक है:

स्थायी भर्ती को प्राथमिकता: केंद्र और राज्य सरकारों को युद्ध स्तर पर एक निश्चित समय-सीमा के भीतर सभी स्वीकृत स्थायी शैक्षणिक पदों को भरने के लिए एक विशेष भर्ती अभियान चलाना चाहिए। नियमित भर्ती प्रक्रिया को सरल, तेज और पारदर्शी बनाने की जरूरत है।
PoP का उपयोग केवल पूरक के रूप में: PoP की नियुक्तियाँ कुल स्वीकृत पदों के एक छोटे से प्रतिशत (जैसा कि UGC द्वारा अनुशंसित 10-15%) तक सीमित रहनी चाहिए। उनका उपयोग मुख्य रूप से विशिष्ट, व्यावहारिक और अल्पकालिक पाठ्यक्रमों के लिए ही होना चाहिए, न कि बुनियादी शिक्षण भार को पूरा करने के लिए।
पारदर्शिता अनिवार्य: PoP चयन के लिए कठोर, योग्यता-आधारित और सार्वजनिक रूप से घोषित चयन प्रक्रिया होनी चाहिए। चयन समिति में उद्योग और अकादमिक जगत के निष्पक्ष विशेषज्ञों को शामिल करना अनिवार्य हो।
प्रदर्शन मूल्यांकन: नियुक्त PoP के लिए शिक्षण परिणामों और छात्र प्रतिक्रिया के आधार पर एक मजबूत प्रदर्शन मूल्यांकन ढाँचा होना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे वास्तव में संस्थान के शैक्षणिक लक्ष्यों में योगदान दे रहे हैं।

निष्कर्ष

प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस योजना अपने आप में एक सकारात्मक और दूरदर्शी पहल है जो भारतीय शिक्षा को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने की क्षमता रखती है। हालांकि, यह योजना एक ऐसे समय में लागू की जा रही है जब उच्च शिक्षा का बुनियादी ढाँचा – अर्थात् स्थायी शिक्षकों की आपूर्ति – गंभीर संकट में है। जब तक बुनियादी शिक्षकों की कमी को प्राथमिक चिंता मानकर हल नहीं किया जाता, तब तक PoP एक महँगा ‘सोने का पलंग’ ही बना रहेगा जो जर्जर ‘मकान’ की मूलभूत समस्याओं को हल नहीं कर पाएगा। भारतीय उच्च शिक्षा के भविष्य के लिए यह आवश्यक है कि स्थायी भर्ती की प्रक्रिया को तेज किया जाए, जिससे संस्थागत स्थिरता सुनिश्चित हो और PoP योजना गुणवत्ता वृद्धि के लिए एक प्रभावी पूरक उपकरण के रूप में कार्य कर सके, न कि शिक्षकों की कमी को छिपाने के लिए एक त्वरित उपाय के रूप में।

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